श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर सरकार ने ज़मीनों के वो सब ट्रांसफर रद्द कर दिए हैं, जो जम्मू-कश्मीर स्टेट लैण्ड (वेस्टिंग ऑफ ओनरशिप टु द ऑक्युपेंट्स) एक्ट 2001 किए गए थे- जिसे रोशनी एक्ट भी कहा जाता है- जिसके तहत 20 लाख कनाल या 2.5 लाख एकड़ ज़मीन, मौजूदा मालिकान के नाम ट्रांसफर की जानी थी.
शनिवार को इस आशय का सरकारी आदेश जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के 9 अक्तूबर के उस फैसले को लागू करने के सिलसिले में आया है, जिसमें रोशनी एक्ट को असंवैधानिक, क़ानून-विरोधी और असमर्थनीय क़रार दिया गया था.
प्रमुख सचिव और राजस्व विभाग को कहा गया है कि एक्ट के तहत सरकारी ज़मीन के बड़े हिस्से को फिर से प्राप्त करने के लिए एक योजना तैयार करें. हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक़ कुल 6,04,602 कनाल (75,575 एकड़) सरकारी ज़मीन को नियमित करके उसके मालिकों को सौंप दिया गया था. इसमें 5,71,210 कनाल (71,401 एकड़) जम्मू में, और 33,392 कनाल (4174 एकड़) कश्मीर में है.
शनिवार को जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘सरकार के प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग ऐसी रूपरेखा और प्लान तैयार करेंगे, जिससे कब्जा करने वालों को सरकारी ज़मीन से निकाला जा सके और 6 महीने में उस ज़मीन को फिर से हासिल किया जा सके. सरकार के प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग, रद्द किए जाने के बाद इन ज़मीनों से मिले पैसे के इस्तेमाल के लिए रूपरेखा तैयार करेंगे.
आदेश के अनुसार, रसूख़दार लोगों की पूरी पहचान, जिनमें मंत्री, विधायक, नौकरशाह, सरकारी अधिकारी, पुलिस अधिकारी, व्यवसायी वग़ैरह शामिल हैं और उनके रिश्तेदार या ऐसे लोग, जो उनकी ओर से बेनामी रखे हुए हैं, जिन्होंने रोशनी एक्ट के तहत फायदा उठाया है. उन सब के नाम एक महीने के भीतर सार्वजनिक किए जाएंगे.
क्या है रोशनी एक्ट
जम्मू-कश्मीर स्टेट लैण्ड (वेस्टिंग ऑफ ओनरशिप टु द ऑक्युपेंट्स) एक्ट 2001, या रोशनी एक्ट, फारूक़ अब्दुल्लाह सरकार ने 2001 में बनाया था.
इस एक्ट के तहत, जिस सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है, बाज़ार मूल्य के हिसाब से क़ीमत अदा करके, उसे नियमित कराया जा सकता है, या मालिकों के नाम किया जा सकता है. एक्ट के तहत ज़मीन पर अतिक्रमण का कट-ऑफ साल 1990 रखा गया था.
इस योजना का मक़सद बिजली का इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए, 25,000 करोड़ रुपए जुटाना था. इसीलिए इसे रोशनी एक्ट भी कहा गया.
लेकिन 2014 में, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ने अनुमान लगाया था, कि 2007 से 1013 के बीच अतिक्रमित भूमि के तबादले से, कुल 76 करोड़ रुपए ही वसूल हो पाए थे.
केस में प्रगति
दिप्रिंट से बात करते हुए, जम्मू स्थित वकील शकील अहमद ने कहा, कि उन्होंने 2011 में एक शख़्स एसके भल्ला के ज़रिए, हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें ज़मीन के एक बड़े हिस्से को वापस लेने की बात कही गई थी, जो जम्मू-कश्मीर के कुछ असरदार लोगों के क़ब्ज़े में थी, जिनमें नौकरशाह, राजनेता और पुलिस अधिकारी शामिल थे.
अहमद ने कहा, ‘हम ग़रीबों को नहीं बल्कि अमीरों को निशाने पर लेना चाहते थे, जिन्होंने ताक़त के बूते सरकारी ज़मीन क़ब्ज़ा ली थी. उनमें से ज़्यादातर ने ये ज़मीन बाज़ार क़ीमत पर नहीं, बल्कि मिट्टी के दाम ख़रीदी थी’.
उन्होंने कहा कि सरकारी ज़मीन का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिस पर 200 साल से लोगों का क़ब्ज़ा चला आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में ये अतिक्रण बढ़ गया था.
अहमद ने कहा, ‘मिसाल के तौर पर गुज्जर और बकरवाल समुदायों को ले लीजिए, जो 100 या 200 साल से उस ज़मीन पर रह रहे हैं. उस ज़माने में जम्मू-कश्मीर में ज़मीनें ऐसे ही पड़ी रहतीं थीं, और कोई कहीं भी रह सकता था. मगर उसके बाद से चीज़ों को एक दिशा दी गई है, लेकिन उस ज़मीन पर फिर भी क़ब्ज़ा होता रहा’.
2013-2014 में हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश दिया, कि उस पूरी सरकारी ज़मीन की निशानदेही करे, जो रोशनी एक्ट के तहत ट्रांसफर की गई थी.
2018 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल, सत्यपाल मलिक ने रोशनी एक्ट को रद्द कर दिया था, जिसका मतलब था कि सरकारी ज़मीन के मालिकाना हक़ हासिल करने के सिर्फ लंबित आवेदन रद्द किए जाएंगे और जिन मामलों में संपत्ति के अधिकार पहले ही ट्रांसफर किए जा चुके हैं, वो बने रहेंगे. लेकिन के हाईकोर्ट के 9 अक्तूबर आदेश ने उसे बदल दिया.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अच्छी चीज़ ये है कि सारी ज़मीन ट्रांसफर नहीं हुई है. उन ज़मीनों को वापस लेने के लिए हम दिन-रात लगकर काम करेंगे, जो ट्रांसफर की जा चुकी हैं. उसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है’.
इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के उन सियासी, नौकरशाही और पुलिस के हल्क़ों में बेचैनी की लहर फैल सकती है, जिनपर अकसर इस एक्ट से फायदा उठाने के आरोप लगते रहे हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )