बेंगलुरु: देश में लॉकडाउन की घोषणा से पहले मार्च में ही बंद हो चुके केरल के सबरीमाला स्थित अयप्पा मंदिर ने शनिवार को श्रद्धालुओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. मंदिर तब से पहली बार ऐसे समय पर खुला है जब राज्य में कोविड-19 मामलों में तेजी नजर आ रही है.
देश में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को केरल में ही सामने आया था. यद्यपि शुरुआत में केरल कोरोनावायरस महामारी से प्रभावी ढंग से निपटने में सफल रहा था लेकिन जुलाई से राज्य प्रशासन मामलों में लगातार आ रही तेजी से निपटने में चुनौतियों का सामना कर रहा है.
10 अक्टूबर को केरल में 11,755 मामलों के साथ अब तक एक दिन में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई.
16 अक्टूबर तक केरल ने कुल मामलों की संख्या 3,252,12 तक पहुंच गई थी जिसमें 95,000 से ज्यादा सक्रिय केस हैं. 16 अक्टूबर तक मृतकों की संख्या 1,113 है, जबकि राज्य भर में 643 हॉटस्पॉट बन चुके हैं. राज्य वार रूम के आंकड़े बताते हैं कि 16 अक्टूबर को केरल में 7,283 नए पॉजिटिव केस सामने आए.
सरकार ने मंदिर फिर खोलने की घोषणा 28 सितंबर को की थी. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने पिछले हफ्ते पत्रकारों से कहा था, ‘सबरीमाला हमारे राज्य में सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है लेकिन कोविड महामारी के मद्देनजर इस बार कोई धार्मिक अनुष्ठान सांकेतिक रूप से घटाए बिना मंडला मकरविलाक्कू तीर्थयात्रा को सीमित संख्या में श्रद्धालुओं के साथ आयोजित करने का फैसला किया गया है.
सबरीमाला में मंडला मकरविलक्कू तीर्थयात्रा 16 अक्टूबर से शुरू हुई और 20 जनवरी 2021 तक चलेगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य ने इस सीजन की तैयारी भी की हैं. उन्होंने बताया, ‘स्वास्थ्य विभाग भक्तों के पहाड़ पर चढ़ने के दौरान मास्क अनिवार्य होने की व्यवस्था की स्वास्थ्य पहलू से जांच करेगा. चूंकि नदी में सार्वजनिक स्नान की अनुमति नहीं दी जा सकती है, ऐसे में पंपा और एरुमेली में स्नान के लिए स्प्रिंकलर या शॉवर सिस्टम की व्यवस्था की जाएगी. मकरविलाक्कू से संबंधित थिरुवभरणम जुलूस में कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन सुनिश्चित किया जाएगा.’
कोविड प्रबंधन समिति से जुड़े एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि जरूरी है कि लोग तय दिशानिर्देशों का पालन करें नहीं तो उनके खिलाफ महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी. डॉक्टर ने कहा, ‘हमें भक्तों की भावनाएं अपने ध्यान में रखनी होंगी, लेकिन साथ ही उन्हें अपने और अपने साथ मौजूद अन्य भक्तों की भलाई को भी ध्यान में रखना होना.’
अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि तीर्थयात्रा के इस सीजन के दौरान कई तरह की पाबंदियां रहेंगी. कोविड पूर्व समय में यात्रा सीजन के दौरान प्रतिदिन 50,000 से 1.5 लाख के बीच भक्त मंदिर की परिक्रमा करते थे, लेकिन अब उस संख्या को प्रति दिन 250 पर ही सीमित किया गया है और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और बच्चों को तीर्थयात्रा का हिस्सा बनने अनुमति नहीं होगी.
केरल के स्वास्थ्य सचिव राजन खोबरागडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘स्वास्थ्य विभाग की तरफ से सभी आवश्यक व्यवस्थाएं करने के साथ उपयुक्त दिशानिर्देश भी जारी किए जाएंगे. लोगों को भी बेहद सतर्क रहने की जरूरत है.’
कोविड संक्रमण रोकने की व्यवस्था की
श्रद्धालुओं को अपना विवरण पंजीकृत कराने की अनुमति देने के लिए केरल पुलिस की तरफ से एक वर्चुअल क्यू सिस्टम संचालित किया जा रहा है. इस प्रणाली के माध्यम से बुकिंग करने वालों को ही आवंटित समयसीमा में नीलाक्कल और पंबा बेसकैंप में प्रवेश की अनुमति होगी. यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसे मंदिर में जाने की अनुमति होगी श्रद्धालुओं के लिए एक फिटनेट सर्टिफिकेट भी अनिवार्य किया गया है. सरकारी अधिकारियों के अनुसार पहले दिन 246 लोगों ने शनिवार के लिए वर्चुअल क्यू सिस्टम से बुकिंग कराई थी.
आगमन और दर्शन के बीच भक्तों को 48 घंटे के भीतर गर्भगृह और बेसकैंप छोड़ने को कहा जाएगा.
भक्तों, खासकर अन्य राज्यों से आने वालों के लिए कोविड-निगेटिव प्रमाणपत्र लाना और पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाने के रास्ते में बेसकैंप पर स्थापित केरल स्वास्थ्य विभाग की हेल्थ फैसिलिटी में एक एंटीजेन टेस्ट क्लियर करना जरूरी होगा.
यद्यपि मंदिर के कपाट शुक्रवार को हो खोल दिए गए थे, भक्तों को दर्शन की अनुमति शनिवार से ही मिली, जो मलयालम महीने थुलम का पहला दिन भी था.
‘हिंदू वोट बैंक गंवाना नहीं चाहती सरकार’
राज्य में राजनीतिक विरोधियों और अन्य वर्गों के बीच इसे लेकर अलग-अलग तरह की चर्चाएं हो रही हैं कि केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने कोविड मामलों में तेजी के बावजूद मंदिर को खोलने का फैसला क्यों किया.
इस बीच, केरल भाजपा के नेताओं ने दावा है कि यह फैसला दर्शाता है कि सरकार नहीं चाहती है कि ‘हिंदुओं का एक वर्ग उससे अलग’ हो. स्थानीय नागरिक कार्यकर्ताओं का भी यह कहना है कि सरकार वित्तीय कारणों से इसके लिए बाध्य हो सकती है, क्योंकि सबरीमाला मंदिर को मिले दान से त्रावणकोर देवस्थान बोर्ड (टीडीबी) को काफी मदद मिलती है जो राज्य के नियंत्रण में है.
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सबरीमाला मंदिर सरकार के लिए टीडीबी के तहत आने वाले अन्य मंदिरों के संचालन के लिहाज से राजस्व का एक बड़ा स्रोत है. टीडीबी के अध्यक्ष एन. वासु ने बताया कि मंदिर को 2019 में यात्रा सीजन के दौरान एक दिन में लगभग 3 करोड़ रुपये का दान मिला था. मंदिर के संचालन पर प्रतिमाह औसतन 50 करोड़ का खर्च आता है, जिसमें वेतन भुगतान भी शामिल है. उन्होंने कहा, ‘हमें एक गंभीर नकदी संकट का सामना करना पड़ा है और टीडीबी प्रशासन के तहत आने वाले 1,200 से अधिक मंदिरों को कर्मचारियों वेतन का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने की जरूरत है.’
राजनीतिक विरोधियों का कहना है कि 2018 में मासिक धर्म की आयु वाली महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उपजा आंदोलन भी सबरीमाला को खोलने और तीर्थयात्रा की अनुमति देने के सरकार के फैसले की एक और वजह हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की सदियों पुरानी परंपरा के खिलाफ था. सरकार ने इसे लागू करने का फैसला किया था, लेकिन उसे विरोध प्रदर्शन और कई समूहों की तरफ से महिलाओं को मंदिर में जाने के रोकने की धमकी जैसी कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा.
केरल के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘यह एक अन्य कारण है कि माकपा सरकार ने ऐसा कोई जोखिम नहीं उठाया. वे अपने खुद के (हिंदू) वोट बैंक को गंवाना नहीं चाहते हैं जिन्होंने 2018 के फैसले का विरोध किया था.’
कांग्रेस मंदिर फिर खोले जाने पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. लेकिन सामाजिक और धार्मिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर, जो सबरीमाला मंदिर के वरिष्ठतम पुजारी और अयप्पा धर्म सेना के प्रमुख कंदरारू महेश्वरारू के पोते हैं, ने सरकार के फैसले का स्वागत किया और तीर्थयात्रा के वित्तीय महत्व के बारे में बताया.
उनके मुताबिक तीर्थयात्रा के दौरान सबरीमाला में करीब तीन करोड़ श्रद्धालु आते हैं. उन्होंने कहा कि यह महामारी के दौरान बंद रखे जाने का फैसला लेने वाले पहले कुछ मंदिरों में शामिल है. ईश्वर ने कहा, ‘यह देखते हुए कुछ संतुलित व्यवस्था किए जाने की जरूरत है कि सबरीमाला का प्रबंधन संभालने वाले त्रावणकोर देवस्थानम बोर्ड के तहत 1248 अन्य मंदिर भी आते हैं. यह करीब 1100 मंदिरों के लिए फंड की व्यवस्था करता है और अकेले सबरीमाला मंदिर से हर साल 155 करोड़ का राजस्व मिलता है.
उन्होंने कहा, ‘यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक माहौल का समय है. हमें आध्यात्मिक आस्था और कोविड-19 प्रोटोकॉल के कड़ाई से पालन के बीच कुछ संतुलन बनाना होगा. इस समय अन्य राज्यों से सबरीमाला आने वाले भक्तों को किसी भी प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.’
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