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Friday, 22 November, 2024
होमदेशवायरल वीडियो के बाद बाबा का ढाबा वाले दंपति की जिंदगी बदली, लेकिन 'बंगला और करोड़ो कैश' की बात सही नहीं

वायरल वीडियो के बाद बाबा का ढाबा वाले दंपति की जिंदगी बदली, लेकिन ‘बंगला और करोड़ो कैश’ की बात सही नहीं

अब बाबा का ढाबा के इस बुजुर्ग दंपति को न केवल लोग सपोर्ट कर रहे बल्कि पेटीएम, जौमेटो से लेकर पेप्सी जैसे प्रमुख ब्रांड्स ने स्पॉन्सर किया है.

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नई दिल्ली: 12 अक्तूबर को दोपहर को दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर के ब्लॉक ए के हनुमान मंदिर के सामने भीड़ लग गई. ये भीड़ पांच दिन पहले वायरल हुई एक वीडियो का नतीजा है जिसे इन्स्टाग्राम पर 30 मिलियन और फ़ेसबुक पर 50 मिलियन से ज़्यादा लोगों ने देखा.

वीडियो में एक 80 साल का बुजुर्ग दंपत्ति रोता हुआ कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अपना फ़ूड स्टॉल ‘बाबा का ढाबा’ न चलने की बात कह रहा था.

इस पूरी कहानी का एक सिरा ले जाता है फ़ूड ब्लॉगर गौरव वसन की ओर. जो पिछले 8 साल से स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स को प्रमोट करने में जुटे हुए हैं. 3 साल पहले बनाए ‘स्वाद ऑफिशियल’ (Swad Official) नाम से उनके यूट्यूब चैनल का ये 136वां वीडियो है जो फ़ूड ब्लॉगिंग के इतिहास में सबसे ज़्यादा चर्चित वीडियो में से एक गिना जा रहा है.

अब बाबा का ढाबा के इस बुजुर्ग दंपति को न केवल लोग सपोर्ट कर रहे बल्कि पेटीएम, जौमेटो से लेकर पेप्सी जैसे प्रमुख ब्रांड्स ने इसे स्पॉन्सर कर रहे.

 

वीडियो वायरल होने के बाद बाबा का ढाबा जिसकी हालत काफी अच्छी हुई है | फोटो- ज्योति यादव, दिप्रिंट

यह दपंति फेसबुक पेज ह्यमून ऑफ बाम्बे (Human of Bombay) पर भी चर्चित हुआ है.

लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू भी है. इस एकाएक चर्चा ने ब्रांडों के बीच आपसी खींचतान भी पैदा कर रहा है. अब वायरल वीडियो के पांच दिन बाद एक ब्रांड सुबह अपने पोस्टर चिपकाता है तो दूसरा ब्रांड दोपहर होते-होते उसे हटा देता है और अपना पोस्टर चिपका देता है.

एकाएक चर्चित

दिप्रिंट जब 12 अक्टूबर की दोपहर को पहुंचा तो देखा कि कांता प्रसाद और उनके दो बेटे स्टॉल पर खाना परोस रहे हैं और मेन्यू में मटर पनीर की सब्ज़ी, दाल, चावल और रोटी हैं. भीड़ ज़्यादा है तो कांता प्रसाद को 4 किलो पनीर और 4 किलो मटर अतिरिक्त मंगवाना पड़ता है.

ढाबे के बाहर टमाटर काटती बादामी देवी | फोटो- ज्योति यादव, दिप्रिंट

कांता प्रसाद की पत्नी गहरे गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई बादामी देवी बग़ल में बेंच पर बैठ कर टमाटर काट रही हैं.

बीच-बीच में पेप्सी की मार्केटिंग वाले दूसरे ब्रांड्स के पोस्टर्स को लेकर कांता के बेटों को हड़का रहे हैं कि ये अलाउड नहीं है.

कांता प्रसाद के बड़े बेटे एक लोकल अस्पताल में वार्ड बॉय का काम करते थे और छोटा बेटा स्वीगी में डिलीवरी बॉय का. लॉकडाउन में दोनों की ही नौकरी चली गई थी. लेकिन अब पिता का वीडियो वायरल होने के बाद दोनों ने ही उनके साथ स्टॉल पर काम करना शुरू कर दिया है.

बादामी देवी के चेहरे पर खुशी और गर्व का भाव भी है कि उनके दूर के रिश्तेदार के बेटे आज मिलने आए हैं जो कई सालों में नहीं आए थे. पूछने पर रिश्तेदार भी कहते हैं कि बाबा-दादी वायरल हो गए इस बात की ख़ुशी है.

भीड़ से एक आदमी बोलता है वीडियो वायरल होने के बाद वह भावुक होकर वैष्णोदेवी के नजदीक कटरा से ट्रेन से दिल्ली पहुंचा. पंजाब के एक दूसरे युवा ने बताया कि ये वीडियो फ़ेसबुक पर देखा तो वह भी इस फूड स्टॉल का खाना खाने चला आया.

कुछ दूरी पर कचरा बिन रहे विनोद भी ख़ुश है कि किसी दिन कोई उनका भी वीडियो बनाकर वायरल करा देगा.

वीडियो वायरल होने के चक्कर में ही पलवल से लेकर नोएडा के तमाम छोटे यूट्यूबर्स इस ढाबे को घेर कर खड़े हैं. एक यूट्यूबर को इस बात का मलाल है कि ये वायरल खबर उसे क्यों नहीं मिली.

ट्विटर पर कांता प्रसाद का वीडियो वायरल होने के बाद स्थानीय विधायक आम आदमी पार्टी के सोमनाथ भारती अगले दिन ही स्टॉल पर पहुंच गए. उसके बाद सोनम कपूर, प्रियंका चोपड़ा से लेकर बड़े-बड़े फ़िल्म स्टार्स ने कांता प्रसाद की मदद करने की इच्छा ज़ाहिर की.

वीडियो वायरल होने के बाद ढाबे पर ज्य्यादातर लोग सेल्फी लेने पहुंच रहे | फोटो- ज्योति यादव, दिप्रिंट

दिप्रिंट ने देखा कि तब से हर रोज़ कांता प्रसाद के पास खाने से ज़्यादा सेल्फ़ी खिंचाने वाले लोगों की भीड़ लग रही है. उनके बड़े बेटे आज़ाद हिंद कहते हैं, ‘शाम को घर जाकर ही राहत की सांस ले पाते हैं.’

इस दौरान आस पास के कुछ लोग लोकल गार्जियन की तरह व्यवहार भी कर रहे हैं. वो कांता प्रसाद को बता रहे हैं कि मीडिया से और यूट्यूबर्स से क्या बोलना है.

लाखों लोगों की तरह संघर्ष की कहानी

टमाटर काटते हुए बादामी कहती हैं, ‘मैं रोज़ सुबह 3 बजे उठती हूं. 6 बजे तक घर के काम निपटाती हूं. फिर हम दोनों ऑटो करके स्टॉल पर आ जाते हैं. शाम के 6 बजे तक काम करते हैं. जब से लॉकडाउन हुआ तबसे हम दोनों ग्राहकों की राह तकते रहते थे और फिर घर चले जाते थे. दिन का 60 रुपया तो किराए में चला जाता है. शाम को खाना बचाकर घर ही ले जाते थे. घर का राशन भी ख़त्म होने लगा था.’

1960 में रोज़गार के लिए यूपी के आज़मगढ़ से दिल्ली आए कांता प्रसाद का जीवन उन लाखों प्रवासी मज़दूरों की तरह ही रहा जो यूपी और बिहार जैसे छोटे शहरों से निकलकर दूसरे बड़े शहरों में आकर बसे हैं. प्रसाद ने शुरुआत शाहदरा में रहने से की जिसको कि यमुना पार कहते हैं. फिर 1988 में मालवीय नगर की झुग्गियों (जगदम्बा कैंप) में आकर रहने लगे. शुरू में कांता प्रसाद ने फलों की रेहड़ी लगाई थी. बाद में लाइसेंस मिल गया तो 1990 में बाबा का ढाबा शुरू किया.

पुराने दिनों की बात करते करते हुए बादामी बताती हैं, ‘हमारी शादी जब हुई तो मेरी उम्र 3 साल की थी और कांता प्रसाद की 5 साल की. जवान होते-होते गौना हो गया. जब ससुराल गई तो उसके कुछ दिन बाद ही हम दिल्ली के लिए निकल पड़े थे. मुझे यक़ीन था कि कांता प्रसाद और मैं कुछ न कुछ ज़रूर जुगाड़ कर लेंगे. जब बाबा का ढाबा लगाया तो मैं सब्जी काटती थी और कांता सब्ज़ी बनाते थे.’

हालांकि कांता प्रसाद और बादामी देवी अचानक मिले इस अभूतपूर्व प्रेम के लिए अभिभूत हैं लेकिन उनकी अपनी शिकायत भी है. वो नाराज़गी भरे लहजे में कहते हैं, ‘देश में हमारे जैसे लाखों प्रवासी मज़दूर हैं जो पेट पाल रहे हैं लेकिन कोई उनकी ओर ध्यान नहीं देता.’

दो कमरों का ‘बंगला’ 

शाम के 5 बजे परिवार के सदस्यों ने स्टाल बंद कर दिया और दिप्रिंट कांता प्रसाद और बादामी देवी के साथ जगदम्बा कैंप की तंग और बदबूदार गलियों को पार करते हुए उनके दो कमरों के मकान में पहुंचा.

मालवीय नगर के जगदंबा कैंप झुग्गी एरिया में कांता प्रसाद के दो कमरे वाले घर के बाहर लगी नेमप्लेट | फोटो- ज्योति यादव, दिप्रिंट

घर में घुसते हुए कांता प्रसाद कहते हैं, ‘मुझे किसी ने कहा कि आपको तो सलमान खान ने बंगला दे दिया है. ये ही है हमारा बंगला.’

इन दो कमरों 10 लोग रहते हैं. जिसमें हम, दो बेटे, एक बहू, एक बेटी और दामाद और पांच नाती रहते हैं. कांता प्रसाद कहते हैं, ‘यही दो कमरे हैं जिसमें सोना, उठना, बैठना, काम करना होता है. बच्चे पढ़ाई करते हैं. दो करोड़ रुपए की अफ़वाह भी उड़ी है. लोगों ने पैसे बहुत दिए हैं लेकिन वो करोड़ों में नहीं हैं.

वह कहते हैं कि हमें भी पता है कि ये तीन-चार दिन की भीड़ है उसके बाद सब वैसा ही हो जाएगा जैसा पहले था.’

इतनी ही देर में उनके फ़ोन पर एक मैसेज की रिंगटोन बजती है. कांता प्रसाद कहते हैं कि पांच दिन से लगातार कोई न कोई खाते में पैसे भेज रहा है. ये उसी का मैसेज है. संकरे कमरे में लोगों द्वारा दिया गया नया सामान भी है- एक छोटा कूलर, एक नई मिक्सी, एक नया ऑनर कंपनी का फ़ोन, आटे के पैकेट.

कांता कहते हैं कि चौथी क्लास तक ही पढ़ पाए हैं. उनके बेटों की पढ़ाई छठी क्लास तक ही हो पाई है. लेकिन कांता प्रसाद इसके पीछे अपनी ग़रीबी के साथ-साथ टेक्नोलॉजी को भी दोष देते हैं. वो कहते हैं, ‘वीडियो गेम्स के चक्कर में पढ़ाई छोड़ दी. मैं और बादामी क्या-क्या करते. कमा कर पेट पालते या इनको बैठकर पढ़ाते.’

टेक्नोलॉजी के चलते रातों रात बदले अपने जीवन को लेकर वो अब काफी दार्शनकि भाव में नजर आ रहे हैं, इसको लेकर अब कम नकारात्मक हैं.

कहते हैं, ‘मोबाइल फ़ोन में सौ बीमारियां हैं तो एक अच्छाई. हमारे जैसे लोगों की मदद हो पाई वो अच्छाई है लेकिन जो लोग सिर्फ़ फ़ोन में लगे रहते हैं वो बुराई है.’

 

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