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Friday, 22 November, 2024
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सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं: संघ प्रमुख मोहन भागवत

हिंदी मासिक 'विवेक' के साथ साक्षात्कार में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां सभी पंथों के साथ समान व्यवहार किया गया है जबकि पाकिस्तान ने अन्य मतावलंबियों को वे अधिकार नहीं दिए.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का कहना है कि वास्तव में हमारा ही एकमात्र देश है जहां पर सब पूजा पद्धतियों के लोग बहुत समय से एक साथ रहते आए हैं और सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं. हिंदी मासिक ‘विवेक’ के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि हमारे यहां सभी पंथों के साथ समान व्यवहार किया गया है जबकि पाकिस्तान ने अन्य मतावलंबियों को वे अधिकार नहीं दिए.

भारत में मुस्लिमों व इसाईयों की स्थिति के संदर्भ में भागवत का कहना था, ‘महाराणा प्रताप की सेना में कई मुसलमान थे जिन्होंने अकबर को हल्दीघाटी में रोका. इतिहास के हर मोड़ पर सब लोग साथ खड़े थे. जब भारत एवं भारत की संस्कृति के प्रति भक्ति जागती है व भारत के पूर्वजों की परंपरा के प्रति गौरव जागता है, तब सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं. जिनके स्वार्थों पर आघात होता है, वे लोग बार-बार अलगाव व कट्टरता फैलाने का प्रयास करते हैं. वास्तव में हमारा ही एकमात्र देश है जहां पर सब के सब लोग बहुत समय से एक साथ रहते आए हैं. सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं…. हमारे यहां मुसलमान हैं, हमारे यहां इसाई हैं. उनके साथ किसी ने कोई बुरा नहीं किया. उन्हें तो यहां सारे अधिकार मिले हुए हैं, पर पाकिस्तान ने तो अन्य मतावलंबियों को वे अधिकार नहीं दिए.’

भागवत ने कहा, ‘बाबा साहेब आंबेडकर भी यह मानते थे कि जनसंख्या की अदला-बदली होनी चाहिए. परंतु उन्होंने भी यहां जो लोग रह गए उन्हें स्थानांतरित करना पड़े, ऐसा संविधान नहीं बनाया. उनके लिए भी एक जगह बनाई गई.’

सरसंघचालक ने एक प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट किया कि पूंजीवाद और समाजवाद असफल मॉडल हैं और अब एक तीसरे रास्ते की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘तीसरा पर्याय कहां है? ये तीसरा पर्याय हमारे यहां है… अर्थ और काम को अनुशासन में रखकर मोक्ष की ओर चलाने वाला धर्म हमारे पास है. शरीर-मन-बुद्धि को अनुशासन में रख कर आत्मा परमात्मा की ओर उसको ले जाती है और इसलिए व्यक्ति समष्टी और सृष्टि, तीनों की उन्नति और इन सब का भाव परमात्मा की ओर. यह बेसिक दृष्टि है और इसके आधार पर हमको सारे जीवन की पुनर्रचना करनी होगी. सोचना भी पड़ेगा, रिसर्च भी करना पड़ेगा. यह एक मूलभूत दृष्टि है जो सनातन काल से चली आ रही है. यह शाश्वत है. इसका कैसा प्रस्तुतीकरण होगा, आज का खाका या स्वरूप क्या होगा, उसको आज के संदर्भ और परिस्थिति में बैठा कर सोचना होगा. आज ऐसे प्रयोग अनेकों स्थान पर हो रहे हैं, अभी तो सरकार ने भी ऐसे कुछ प्रयोग किए हैं हम भी कर रहे हैं तो उन को आगे बढ़ाना पड़ेगा.’

‘काशी विश्वनाथ और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन भी क्या भविष्य में चलाया जायेगा?’ इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, ‘हमको नहीं पता, क्योंकि हम आंदोलन करने वाले नहीं हैं. राम जन्मभूमि का आंदोलन भी हमने शुरू नहीं किया, वह समाज द्वारा बहुत पहले से चल रहा था. हमने आंदोलन प्रारंभ नहीं किया, कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में हम इस आंदोलन से जुड़े. कोई आंदोलन शुरू करना यह हमारे एजेंडे में नहीं रहता है. हम तो शांतिपूर्वक संस्कार करते हुए प्रत्येक व्यक्ति का हृदय परिवर्तन करने वाले लोग हैं. हिंदू समाज क्या करेगा, यह मुझे पता नहीं, यह भविष्य की बात है. इस पर मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूं. मैं इतना बताना चाहता हूं कि हम लोग कोई आंदोलन शुरू नहीं करते.’

राम मंदिर निर्माण के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘पूजा पाठ करने के लिए हमारे पास बहुत मंदिर हैं. इस के लिए इतना लंबा प्रयास करने की हिंदू समाज को कोई जरूरत नहीं थी. वास्तविकता यह है कि ये प्रमुख मंदिर इस देश के लोगों के नीति एवं धैर्य को समाप्त करने के लिए तोड़े गए थे. इसलिए हिंदू समाज की तब से ही यह इच्छा थी कि ये मंदिर फिर से खड़े हो जाएं. स्वतंत्र होने के बाद वे खड़े हो रहे हैं, लेकिन केवल प्रतीक खड़े होने से काम नहीं चलता. जिन मूल्यों एवं आचरण के वे प्रतीक हैं, वैसा बनना पड़ता है.’

उन्होंने कहा, ‘श्रीराम भारत के बहुसंख्यक समाज के लिए भगवान हैं और जिनके लिए भगवान नहीं भी हैं, उनके लिए आचरण के मापदंड तो हैं ही. भगवान राम भारत के उस गौरवशाली भूतकाल का अभिन्न अंग हैं, जो भूतकाल भारत के वर्तमान और भविष्य पर गहरा प्रभाव डालता है. राम थे, हैं, और रहेंगे. जबसे श्रीराम प्रकट हुए हैं तब से यह विषय है और आगे भी चलेगा. श्री रामजन्मभूमि का आंदोलन जिस दिन ट्रस्ट बन गया उस दिन समाप्त हो गया.’

नई शिक्षा नीति के संदर्भ में सरसंघचालक ने कहा कि कुछ चीज़ें ठीक हुई है लेकिन राह अभी लंबी है. उन्होंने शिक्षा के विषय में संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा, ‘हमें पढ़ना है लेकिन पैसे के लिए नहीं. लेकिन पढ़ाई आपको भूखा रखने के लिए भी नहीं है. अगर आप पढ़ोगे तो अपना जीवन ठीक से चला सकोगे इतना आत्मविश्वास होना चाहिए… हमारी शिक्षा दुनिया के संघर्ष में खड़ा होकर अपना और अपने परिवार का जीवन चला सके इतनी कला और इतना विश्वास देने वाली होनी चाहिए. दूसरा इस दुनिया से मैंने लिया है तो इस दुनिया को मैं वापस करूंगा, इसके लिए मुझे जीना है. तीसरी बात यह जीवन जीते समय जो शिक्षा मुझे मिली है, उसके आधार पर सब अनुभवों में से मैं जीवन के लिए कुछ सीख लूंगा, जीवन के उतार-चढ़ावों में से जाते समय मैं जीवन के आनंद को ग्रहण करूंगा. सकारात्मक दृष्टिकोण निर्माण होगा. शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए. अभी जो शिक्षा नीति बनी है उसमें कुछ कदम इस तरफ बढ़े हैं, यह अच्छी बात है. लेकिन इसे पूर्णता नहीं माननी चाहिए. पूर्ण नीति सरकार जब भी बनाएगी तब बनाएगी, पर तब भी इसका क्रियान्वयन केवल शिक्षा व्यवस्था नहीं करती है, धर्म और समाज भी करता है. सब मिलाकर इस वातावरण को बनाकर हमें चलना है.’

(लेखक दिल्ली आधारित थिंक टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी है)


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