पटना: छात्र राजनीति के दिनों से राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को जानने वाले राजद के तमाम पुराने नेता पिछले काफी समय से खुद को दरकिनार महसूस कर रहे हैं.
कभी बिहार की राजनीति की धुरी माने जाने वाले ये वरिष्ठ नेता, हालांकि, इस तरह अलग-थलग कर दिए जाने के लिए लालू के बेटे तेजस्वी यादव को नहीं बल्कि खुद लालू यादव को दोषी ठहराते हैं.
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘पार्टी में जो कुछ भी हो रहा है वह तेजस्वी के कारण नहीं है. अभी भी सारे फैसले लालू ही लेते हैं. बात दरअसल यह है कि लालू की प्राथमिकता अब उनका परिवार हो गया है और सामाजिक न्याय या यह सुनिश्चित करना नहीं कि उनके पुराने सहयोगियों का अपमान न हो.’
गुरुवार, 10 सितंबर का दिन राजद के लिए बहुत ही बुरा था क्योंकि इसके सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह, जिनके बारे में माना जाता था कि आखिरी क्षणों तक लालू का साथ नहीं छोड़ेंगे, ने घोषणा की कि उन्होंने पार्टी का साथ छोड़ दिया है.
लालू को लिखे पत्र में 75 वर्षीय पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘मैं कर्पूरी ठाकुर (बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री) के निधन के बाद पिछले 32 वर्षों से आपके पीछे खड़ा हूं. लेकिन अब और नहीं.’ उन्होंने राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं से माफी मांगी और घोषणा की कि वह अब पार्टी के साथ नहीं हैं हमेशा उन्होंने जिसका साथ दिया था.
रघुवंश प्रसाद इस समय कोविड के बाद इलाज के लिए एम्स, दिल्ली के आईसीयू में भर्ती हैं.
शाम तक रघुवंश को दिया गया लालू का जवाब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
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We will talk once you are well. You are not going anywhere: RJD leader Lalu Yadav in a letter to Raghuvansh Prasad Singh
Raghuvansh Prasad Singh had resigned from the party, earlier today and is currently admitted at All India Institute of Medical Sciences (AIIMS), Delhi. pic.twitter.com/wGu68MTsCJ
— ANI (@ANI) September 10, 2020
पत्र में लालू ने लिखा, ‘मैंने मीडिया द्वारा चलाई गई चिट्ठी देखी और इस पर यकीन नहीं कर सकता. अभी भी मेरा परिवार और राजद परिवार चाहता है कि पूरी तरह ठीक होने के बाद आप हमारे साथ रहें। चार दशकों में हमने तमाम राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों पर चर्चा की है. आपके जल्द ठीक होने की कामना है. फिर हम बैठेंगे और बात करेंगे.’ इस पर रांची के बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के अधीक्षक की मुहर थी.
राजद नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयान नहीं देने के लिए कहा गया है.
नाम न देने की शर्त पर एक राजद विधायक ने कहा, ‘रघुवंश बाबू को पार्टी में बनाए रखने के लिए यह लालूजी का अंतिम प्रयास है. लेकिन अगर वह छोड़ देते हैं, तो यह चुनावों के ऐन पहले एक बड़ी क्षति होगी. लालूजी के बाद वही पार्टी के सबसे कद्दावर नेता हैं जो ईमानदारी और वफादारी की मिसाल हैं. हालांकि चुनाव भले ही हार गए हो, लेकिन अब भी सभी दलों में उनका बड़ा सम्मान है.’
रघुवंश को क्यों लगा अलग-थलग पड़े
सिंह 2019 के लोकसभा चुनावों में राजद की हार के बाद से ही अलग-थलग महसूस कर रहे थे.
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राबड़ी देवी के सरकारी आवास 10 सर्कुलर रोड पर हुई पार्टी की एक बैठक में रघुवंश प्रसाद ने लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को निष्कासित करने की मांग की, क्योंकि उन्होंने राजद प्रत्याशियों के खिलाफ ही अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे. लेकिन उनके सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
इस साल के शुरू में उन्होंने लालू को एक पत्र लिखकर पार्टी के कामकाज का ढर्रा सुधारने की मांग की थी और तेजस्वी यादव के लोकसभा चुनाव में हार के बाद करीब चार महीने तक एकदम गायब रहने की कड़ी आलोचना की थी. पार्टी ने उनके पत्र का जवाब तक नहीं दिया था.
ताबूत में अंतिम कील तब लगी जब राजद ने बाहुबली से राजनेता रामा सिंह को शामिल कर लिया और उन्हें इस विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारने का फैसला किया गया. रामा सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में लोजपा उम्मीदवार के रूप में रघुवंश प्रसाद को हराया था.
पूर्व केंद्रीय मंत्री के करीबी विश्वस्त नेता ने कहा, ‘वह पार्टी छोड़ते नहीं, लेकिन हर दिन उनका अपमान हो रहा था और लालू ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया.’
रघुवंश प्रसाद अकेले नहीं
राजद में खुद को दरकिनार पाने वालों में रघुवंश प्रसाद अकेले वरिष्ठ नेता नहीं हैं. पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी एक और ऐसे नेता हैं, जो हालांकि अभी राजद के साथ ही हैं, लेकिन उन्होंने पटना में पार्टी कार्यालय जाना बंद कर दिया है.
राजद के सूत्रों ने बताया कि एक अन्य दिग्गज नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, जो इस समय कोविड पॉजिटिव होने के कारण इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हैं, भी जब तक बुलाया नहीं जाता पार्टी कार्यालय नहीं जाते हैं.
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘राज्यसभा और परिषद (विधान परिषद) के उम्मीदवारों के चयन से लेकर हर निर्णय तक खुद लालू ने किया है. उन्होंने कभी भी उम्मीदवारों पर या गठबंधन के लिए हमसे सलाह नहीं ली. यहां पटना में मैंने टिकट के इच्छुक कई दावेदारों को घंटों बाहर इंतजार करते देखा है और तेजस्वी उनसे मिलने की भी जहमत नहीं उठाते.’
परिवार सबसे पहले
राजद प्रमुख के लिए परिवार पार्टी से ऊपर आता है जैसा कि पिछले छह वर्षों में देखा गया है.
2014 में उन्होंने अपने करीबी नेता राम कृपाल यादव के दावों की अनदेखी कर अपनी बेटी मीसा भारती को पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से टिकट दिया. इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए और तब से दो बार मीसा को हरा चुके हैं.
इसके बाद लालू ने मीसा को राज्यसभा भेजा, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं के लिए कुछ नहीं किया, जो 2014 में भी हार गए थे.
2019 में तेज प्रताप यादव ने सारण जाकर उस समय वहां पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार और अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ प्रचार किया. उन्होंने कहा था कि सारण एक पारिवारिक सीट है और चंद्रिका बाहरी प्रत्याशी हैं. लेकिन तब भी लालू ने तेजप्रताप को रोकने के लिए कुछ नहीं किया.
2019 में लालू ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता ए.ए. फातिमी से मधुबनी संसदीय सीट से चुनाव लड़ने को कहा था. लेकिन बाद में तेजस्वी ने ऐलान कर दिया कि फातिमी को टिकट नहीं दिया जाएगा और वह चाहें तो पार्टी छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं.
नाराज फातिमी जल्द ही पार्टी छोड़कर जदयू में शामिल हो गए और लालू ने फिर भी उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं किया.
ऐसा लगता है कि राजद आने वाले समय में एक ऐसे विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रही है, जिसमें उसके अधिकांश वरिष्ठ नेता या तो पार्टी से बाहर चले गए होंगे या खुद को काफी लो-प्रोफाइल बना चुके होंगे.
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