कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न संकट के मद्देनजर जेईई प्रवेश परीक्षा को टालने के लिए खासा हंगामा होने में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है. कोविड के मामले हर दिन लगातार बढ़ने को देखते हुए परीक्षा टालने के लिए दबाव बनाए रखने की जरूरत महसूस होती है.
परीक्षा टलने के खिलाफ मुखर होने की मुख्य वजह यह है कि जेईई के आयोजन में किसी भी तरह की देरी अब आईआईटी की परेशानी बढ़ा देगी क्योंकि संस्थान अप्रैल 2021 या उसके आस-पास नए बैच में प्रवेश लेने के समय छात्रों की बढ़ी संख्या संभालने में असमर्थ होंगे. अगर अतिरिक्त सिलेबस और ज्यादा छात्र संख्या ही चिंता का विषय है, तो दिल्ली विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय ऐसी समस्या के समाधान की राह दिखाते हैं.
यह भी पढ़ें : भारतीय विश्वविद्यालयों में सुधार लाने के लिए एनईपी की जरूरत नहीं लेकिन यूजीसी राह में बाधा बनी हुई है
1972-73 और फिर 1982-83 के शैक्षणिक सत्र के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय का कामकाज कई महीनों तक शिक्षण कार्य ठप रहने की वजह से बाधित रहा. फिर भी प्रबंधन के पूरी कुशलता बरतने से विश्वविद्यालय को किसी भी प्रमुख कारण से अपने अकादमिक कैलेंडर को लंबा खींचना या बढ़ाना नहीं पड़ा. शायद जेईई का आयोजन करने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के अतीत से कुछ सीख ले सकते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय दिखा सकता है राह
दिल्ली विश्वविद्यालय ने शिक्षण के लिए गर्मियों और सर्दियों के अवकाश के दौरान उपलब्ध अतिरिक्त दिनों का उपयोग किया और सिलेबस पर बहुत ही सावधानी से ध्यान दिया. अगर आईआईटी व्यापक स्तर पर और और बेहतर समन्वय के साथ इन उपायों को अपनाते हैं तो शिक्षण दिवसों में कमी की समस्या हल हो सकती है और साथ ही थोड़े बदले तरीके के साथ बहुत ज्यादा ब्रेक के बिना क्लास अटेंड करने से छात्रों पर भी बहुत ज्यादा बोझ नहीं बढ़ेगा.
मैंने जिस बात की वकालत कर रहा हूं उस पर मैंने विभिन्न आईआईटी में कार्यरत अपने कुछ साथियों से बातचीत भी की है और मुझे उनकी तरफ से कोई बड़ी असहमति नहीं दिखी. तो, ऐसी कार्ययोजना पर अमल करने में आखिर नुकसान क्या है?
ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए नए बैच का शेड्यूल निर्धारत समय से थोड़ा आगे बढ़ाना पढ़े लेकिन इस वर्ष की तुलना में यह विलंब कम ही होगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परीक्षा स्थगित करके छात्र संख्या दोगुनी होने से बचा जा सकता है. और जिन छात्रों को शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए प्रवेश दिया जाएगा, उन्हें अपने सत्र की शुरुआत में मामूली देरी का ही सामना करना पड़ेगा. किसी भी हाल में इस सत्र में भर्ती किए गए बैच की चौथे और अंतिम वर्ष की पढ़ाई अपने निर्धारित समय के आसपास ही पूरी हो जाएगी.
आवश्यकता से अधिक पढ़ाया जाता है
शिक्षण सामग्री नए सिरे से तय करने का क्या? आलोचक कहेंगे कि आईआईटी स्नातकों का ज्ञान आधा-अधूरा रह जाने का खतरा है. मैं आईआईटी में अपने दोस्तों के साथ चर्चा और वहां पढ़ाई जाने वाली तमाम ऐसी सामग्री जो एकदम निरर्थक साबित होती है, के आधार पर एक बार फिर अपनी बात तर्कसंगत होने का दावा कर सकता हूं.
मैं दुनियाभर में शायद ही कभी किसी ऐसे छात्र से मिला हूं, जिसने स्नातक स्तर पर हमारी तरफ से दी गई शिक्षा को एकदम न्यूनतम स्तर पर भी सही अर्थों में आत्मसात किया हो. दूसरी ओर, सालों में मिली सीख और सहकर्मियों के साथ चर्चा के आधार पर मेरा दृढ़ विश्वास है कि ज्ञान को जितना कम थोपा जाएगा, उतना ही उपयोगी साबित होगा.
यह भी पढ़ें : इंडियन यूनिवर्सिटीज की फैकल्टी में लगभग हर किसी का प्रमोशन हो जाता है, 1970 में ये नुकसान डीयू ने शुरू किया
बहरहाल, मैं पाठ्यक्रम में बहुत ज्यादा या आमूलचूल बदलाव की वकालत नहीं कर रहा हूं. जरूरत यह है कि बहुत सोच-समझकर कुछ सीमित सामग्री निर्धारित कर ली जाए. इसके लिए एक बार कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. एक बार जब यह नया रूप ले लेगा तो इस पर अमल करना एकदम आसान हो जाएगा.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की सफलता
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संख्या दोगुनी न होने देने का प्रत्यक्ष उदाहरण मौजूद है, जहां 1980 में इससे भी ज्यादा विकट स्थिति बन गई थी. विश्वविद्यालय का शैक्षणिक कैलेंडर तय समय से तीन साल पीछे था. लेकिन बेहद सक्रिय और दूरदर्शी नेतृत्व की वजह से विश्वविद्यालय अवकाश अवधि का अधिकांश समय शिक्षण कार्य में इस्तेमाल करने में सक्षम हो सका और पाठ्य सामग्री को बहुत सोझ-समझकर और सलीके से तय किया गया. तीन साल होते-होते शैक्षणिक कैलेंडर फिर से ट्रैक पर था.
मैं ऐसे कई छात्रों से परिचित हूं, जिन्होंने उस दौर में गणित और अन्य विषयों में इस विश्वविद्यालय से अपना स्नातक पूरा किया है और बाद में अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट स्थान हासिल करते हुए आगे बढ़े.
मैं यह भी बता दूं कि कई बार आईआईटी के ऐसे स्नातक छात्रों के बीच पहुंचा हूं जिनका अमूमन यही कहना होता है कि उन पर लेसन और टेस्टिंग का इतना ज्यादा बोझ होता है कि उन्हें किसी विषय पर सोचने और सीखने का ठीक से समय ही नहीं मिलता. शायद जेईई-नीट प्रवेश परीक्षा की तारीख स्थगित करने के बहाने एक अच्छी शुरुआत की जा सकती है.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर लॉजिस्टिक की बात करें तो परीक्षा टलने की स्थिति से निपटना किसी भी आईआईटी के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसी यूनिवर्सिटी जितना कठिन नहीं होगा. दरअसल, कोई भी आईआईटी दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी औसत कॉलेज से बड़ा नहीं है और इसमें तो 70 से अधिक कॉलेज हैं.
अगर जेईई का आयोजन कराने के लिए जिम्मेदार निकाय इन कुछ बिंदुओं पर ध्यान देता है, तो शायद कुछ अच्छा नतीजा निकलकर सामने आए.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस-चांसलर, एक विख्यात गणितज्ञ और शिक्षाविद हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)