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Friday, 22 November, 2024
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आईआईटी के अध्ययन में पता लगा, लॉकडाउन में डुबकी लगाने लायक हुआ गंगा का पानी, जलीय जीवों को भी जीवन मिला

सी-गंगा के एक अध्ययन से पता चलता है कि हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी जैसे स्थानों पर नदी के पानी में विभिन्न मानदंडों में सुधार दिखा, हालांकि पानी की गुणवत्ता पूरी तरह ठीक होने में अभी कसर बाकी है.

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नई दिल्ली: सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज (सी-गंगा) की तरफ से किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में गंगा और उसकी सहायक नदियों के कुछ प्रदूषित हिस्सों में पानी की गुणवत्ता कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान काफी सुधरी है.

आईआईटी कानपुर के नेतृत्व में हुए अध्ययन में पाया गया कि हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी जैसी जगहों पर, जहां अमूमन गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित रहती है, पानी की गुणवत्ता मापने के लिए उपयोग होने वाले प्रमुख मापदंडों में पिछले कुछ महीनों में सुधार हुआ है.

यह सुधार मुख्यत: सीमित औद्योगिक और पर्यटन गतिविधियों, होटल, रेस्तरां और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के बंद रहने और लॉकडाउन के दौरान नदी में नहाने और कपड़े धोने पर लगी पाबंदी के कारण नजर आया है.

यह अध्ययन पहले और दूसरे चरण के लॉकडाउन के दौरान 18 अप्रैल से 17 मई के बीच उत्तराखंड के देवप्रयाग से उत्तर प्रदेश के वाराणसी के बीच करीब 60 स्थानों पर किया गया था.

बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले गंगा पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती है. हालांकि, सी-गंगा को लॉकडाउन के कारण केवल उत्तराखंड और यूपी सरकारों से ही इस अध्ययन की अनुमति मिली थी.

आईआईटी कानपुर के नेतृत्व में सी-गंगा की स्थापना 2016 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की सहायता के लिए हुई थी, जिसका उद्देश्य गंगा नदी बेसिन का सतत विकास करना था.

आईआईटी कानपुर के अलावा, सी-गंगा के अन्य पार्टनर आईआईटी रुड़की और आईआईटी दिल्ली भी इस अध्ययन के संचालन में शामिल थे.


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प्रमुख नतीजे

अध्ययन, जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट के पास मौजूद है, से पता चलता है कि खाली उन जगहों को छोड़कर जहां सीवेज और औद्योगिक कचरे वाले नाले नदी या सहायक नदियों में गिरते हैं, अधिकांश स्थल पर गंगा नदी की मुख्य धारा में क्रिटिकल डिसॉल्वल्ड ऑक्सीजन (सीडीओ) का स्तर पूर्व-लॉकडाउन की तुलना में इतना बेहतर हो चुका है कि यह जलीय जीवों और वनस्पतियों के अनुकूल हो गया.

बेहतर पानी की गुणवत्ता और स्वस्थ जैव विविधता के लिए सीडीओ का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक होना चाहिए। सीडीओ का स्तर 3 मिलीग्राम/लीटर और 5 मिलीग्राम/लीटर के बीच होने का मतलब है कि पानी की गुणवत्ता मामूली रूप से प्रभावित है और 3 मिलीग्राम/लीटर से कम होने का आशय है कि गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित है.

अध्ययन के मुताबिक उत्तराखंड में विभिन्न उद्गम स्थलों से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा के 2500 किलोमीटर से ज्यादा लंबे स्ट्रेच में 5 फीसदी से भी कम हिस्सा ऐसा था जहां सीडीओ का स्तर जलीय जीवों और वनस्पतियों के लिए अपर्याप्त था.

कानपुर में भैरो घाट और चकेरी से एकत्र किए गए नमूनों में सीडीओ का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक था, जबकि शहर के कुछ अन्य हिस्सों, जैसे बिठूर और पांडु नदी के संगम स्थल पर पानी की गुणवत्ता थोड़ी कम (3 मिलीग्राम/लीटर और 5 मिलीग्राम/लीटर के बीच) पाई गई.

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि उत्तर प्रदेश में गंगा के मुख्य हिस्से में कोलीफॉर्म की कुल मात्रा दैनिक धार्मिक गतिविधियों और नहाने आदि के लिहाज से बेहतर थी, जिसमें मानव स्वास्थ्य के लिए कम से सीमित जोखिम तक की स्थिति थी.

कोलीफॉर्म बैक्टीरिया मनुष्यों और जानवरों के मल में पाए जाते हैं और निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में इनकी मौजूदगी पानी में बीमार करने वाले जीवाणुओं और विषाणुओं के होने का संकेत देती है.

इससे पहले, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2019 में किए एक अध्ययन में पाया था कि गंगा में कोलीफॉर्म की कुल संख्या निर्धारित सीमा से कई सौ गुना अधिक थी, जिससे पानी नहाने के लायक नहीं रह गया था.

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की तरफ से लॉकडाउन अवधि के दौरान फर्रुखाबाद, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी जैसे प्रमुख शहरों में गंगा के पानी की गुणवत्ता का जो आकलन किया गया उसमें भी लॉकडाउन पूर्व की तुलना में काफी सुधार दिखा है.

दिप्रिंट को मिली रिपोर्ट बताती है कि उपरोक्त सभी स्थानों पर पानी की गुणवत्ता बी कैटेगरी की है जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानदंडों के अनुसार स्नान आदि के लिहाज से उपयोगी है.

कुछ हिस्सों में पानी की गुणवत्ता अब भी खराब

सीगंगा के अध्ययन में पाया गया कि नदी के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन के बावजूद पानी की गुणवत्ता में मामूली सुधार ही हुआ है.

अध्ययन में पाया गया कि गंगा में जिन जगहों पर सीवेज और औद्योगिक कचरा लाने वाले नाले या सहायक नदियां मिलती है वहां गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य के लिहाज से हल्के से मध्यम जोखिम वाली हो सकती है.

इसके अलावा, सीडीओ के स्तर और कोलीफॉर्म की कुल मौजूदगी के लिहाज से यह स्थिति कुछ प्रमुख सहायक नदियों के क्षेत्र विशेष में पाई गई, जैसे हिंडन (मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा के मध्य बहने वाली नदी), यमुना (दिल्ली में), काली (मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद के बीच), रामगंगा (मुरादाबाद और रामनगर) और गोमती (लखनऊ में बहने वाली) आदि का कुछ हिस्सा.

इन जगहों पर सीडीओ का स्तर 3 मिलीग्राम/ लीटर और 5 मिलीग्राम/लीटर के बीच था और कुछ हिस्सों में 3 मिलीग्राम/लीटर से कम था, और यह जलीय वनस्पतियों और जीवों के प्रतिकूल पाया गया. इन हिस्सों पर कुल कोलीफॉर्म का स्तर भी मानव स्वास्थ्य के लिए मामूली या काफी जोखिम वाला होने के कारण स्नान आदि के लिए असुरक्षित माना गया.


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‘कुल मिलाकर गंगा जल की गुणवत्ता में और सुधार जरूरी’

आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और सी-गंगा के संस्थापक प्रमुख विनोद तारे के अनुसार, लॉकडाउन की वजह से सीवेज और औद्योगिक कचरा कम गिरने के कारण नदी में पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है.

तारे ने दिप्रिंट को बताया, ‘हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी जैसी जगहों पर पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या लॉकडाउन के कारण कई गुना कम हो गई. इसके कारण सीवेज जेनरेशन भी काफी कम रहा.’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, उत्तर प्रदेश में कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में टेनरियां आदि बंद रहने के कारण औद्योगिक कचरा निकलना कम हो गया. इससे आम तौर पर नदी में गिरने वाले औद्योगिक कचरे में काफी कमी आई.

हालांकि, तारे ने आगाह किया कि लॉकडाउन के कारण कुछ हिस्सों में सीडीओ का स्तर ठीक हो जाने का मतलब यह नहीं है कि गंगा में पानी की समग्र गुणवत्ता में सुधार हो गया है.

उन्होंने कहा, ऐसा नहीं है कि सीवेज जेनरेशन बंद हो गया है. यह अभी भी उन शहरों और कस्बों में निकल रहा है, जहां से गंगा बहती है. और एक बार उद्योग और व्यवसाय फिर से खुलने पर सीवेज और औद्योगिक कचरे का उत्पादन बढ़ जाएगा. सीवेज ही कोलीफॉर्म को बढ़ाता है. जब तक नदी के पूरे स्ट्रेज में वैज्ञानिक रूप से सीवेज प्रबंधन के कदम नहीं उठाए जाते, तब तक नदी के पानी की गुणवत्ता में पूरी तरह सुधार संभव नहीं है.

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस अध्ययन के नतीजे सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन में अंतर को खत्म करने में मददगार साबित होंगे.

अपना नाम न देने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘उद्योगों के बंद होने के कारण प्रयागराज और कानपुर आदि में गंगा का बहाव उल्लेखनीय रूप से बढ़ने के साथ गंगा के मुख्य क्षेत्र में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा काफी बढ़ी है. हालांकि, नालों में घुलित ऑक्सीजन का स्तर लॉकडाउन से पूर्व वाले स्तर पर ही रहा जो समस्या का एक मुख्य कारण है.’

उन्होंने कहा, ‘एनएमसीजी नालों और सहायक नदियों के जरिये मल और औद्योगिक कचरा सीधे गंगा में गिरने से रोकने के कई उपाय कर रहा है, जैसे नालों के मुहाने पर जाली लगाना आदि. कचरा निष्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए विभिन्न स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा शोधन संयंत्र लगाने का काम भी चल रहा है.

जल संसाधन मंत्रालय के तहत आने वाला एनएमसीजी गंगा की स्वच्छता के लिए 20,000 करोड़ रुपये का कार्यक्रम चला रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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