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Friday, 22 November, 2024
होमदेशभारत में कोविड के बढ़ते केस के पीछे हैं जेन एक्स और मिलेनियल्स, 21-50 वर्ष आयु वर्ग में हैं 61 प्रतिशत केस

भारत में कोविड के बढ़ते केस के पीछे हैं जेन एक्स और मिलेनियल्स, 21-50 वर्ष आयु वर्ग में हैं 61 प्रतिशत केस

इस हफ्ते के शुरू में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा, कि 20, 30 और 40 की उम्र के लोग, जिनमें से अधिकांश में लक्षण नहीं हैं, कोविड-19 महामारी को आगे बढ़ा रहे हैं.

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नई दिल्ली: वो युवा हैं काफी हद तक अपने से बड़ों के मुक़ाबले सामाजिक तौर पर ज़्यादा सक्रिय हैं और कोविड-19 के सम्पर्क में आने पर, उन्हें अकसर बीमारी महसूस ही नहीं होती.

इस हफ्ते के शुरू में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि 20, 30 और 40 की उम्र के लोग, जिनमें से अधिकांश में लक्षण नहीं हैं. कोविड-19 महामारी को आगे बढ़ा रहे हैं.

यही रुख़ भारत में भी नज़र आ रहा है, जहां इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के आंकड़ों से पता चला है कि भारत में अभी तक दर्ज कुल 27,32,992 मामलों में से, 61.31 प्रतिशत में, 21 से 50 वर्ष की आयु के लोग शामिल हैं.

ये संख्या इस आयु वर्ग के- जिसमें जेनरेशन एक्स (लगभग 1960 से 1970 के दशक के बीच पैदा हुए), मिलेनियल्स (1980 से 1990 के मध्य दशक के बीच पैदा हुए) और जेनरेशन ज़ेड (1990 के दशक से लगभग 2010 के बीच पैदा हुए) शामिल है- कुल जनसंख्या में इन वर्गों के अनुपात से बहुत अधिक है.

2011 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार, 36.3 प्रतिशत भारतीय, 20 से 44 वर्ष की आयु के बीच हैं.

ये रुख़ (कोविड के) पांच सबसे अधिक प्रभावित राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश- में भी दिखता है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि युवाओं के बीच इस बीमारी का होना, आश्चर्य की बात नहीं है, और इसकी ऐतिहासिक मिसाल, 1918 के स्पेनिश फ्लू में मिलती है. उनका कहना है कि इसका कारण ये है, कि युवा लोग बुज़ुर्गों के मुक़ाबले, घरों से कहीं ज़्यादा बाहर निकलते हैं.

आंकड़े बोलते हैं

महाराष्ट्र में, जो भारत में कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित है. कुल मामलों में 56.34 प्रतिशत, 20 से 50 के आयु वर्ग से हैं.

31 से 40 वर्ष की आयु के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं. कुल 1,27,110 या 21 प्रतिशत केस इसी वर्ग में हैं.

कुल मामलों में 17.55 प्रतिशत लोग, 21 से 30 आयु वर्ग के हैं, जबकि 17.76 प्रतिशत लोग 41 से 50 आयु वर्ग के हैं, जिनमें डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी, दूसरी बीमारियों की प्रवृत्ति भी होती है.

यूपी में 18 अगस्त तक दर्ज कुल 1,67,510 मामलों में 49.84 प्रतिशत या 83,486 मामले 20 से 40 आयु वर्ग के हैं. कुल मामलों के लगभग 8.34 प्रतिशत- 13,970 मामले- 60 वर्ष से अधिक के हैं.

तमिलनाडु में 20 अगस्त तक दर्ज 3,61,435 मामलों में 82 प्रतिशत- या 2,98,124 मामले- 13 से 60 वर्ष की आयु के थे. जबकि 46,055 मामले, 60 वर्ष से अधिक आयु के थे.

आंध्र प्रदेश में 20 अगस्त तक, 3,16,000 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 78,603 मामले 21-30 वर्ष के बीच के हैं. 74,731 मामले 31-40 आयु वर्ग में हैं और 61,935 मामले 41-50 वर्ष के बीच हैं. और 48,227 मामले 51-60 आयु वर्ग में हैं.

18 अगस्त तक, कर्नाटक में 2,40,948 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 80,659 उस दिन एक्टिव थे. एक्टिव मामलों की सबसे अधिक संख्या-55,453 केस- 21-30 आयु वर्ग में है. 31-40 आयु वर्ग में 53,033 एक्टिव केस हैं, और अन्य 41,787 मामले 41-50 आयु वर्ग में हैं. 29,474 केस ऐसे हैं जिनमें 60 वर्ष से अधिक आयु है.

20-50 आयु वर्ग में बीमारी की गंभीरता भी कम हो सकती है, और परिणाम भी ज़्यादा अनुकूल हो सकते हैं. इस महीने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, कोविड-19 से होने वाली कुल मौतें में 11 प्रतिशत 26-44 के आयु वर्ग में हैं, जबकि 45-60 आयु वर्ग में ये संख्या 37 प्रतिशत है.

18 अगस्त को डब्लूएचओ के वेस्टर्न पैसिफिक रीजनल डायरेक्टर, ताकेशी कसाई ने बताया कि कैसे ‘महामारी में बदलाव’ हो रहा है.

उन्होंने कहा, ‘जो लोग 20, 30 और 40 की उम्र के हैं, वो इस महामारी को ज़्यादा फैला रहे हैं. बहुतों को तो पता भी नहीं है कि वो संक्रमित हैं. इससे कमज़ोर लोगों तक संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है: जैसे बुज़ुर्ग लोग, लम्बी देखभाल में चल रहे बीमार लोग, घनी आबादी और कम मेडिकल सेवाओं वाले इलाक़ों में रहने वाले लोग.’

27 जुलाई को अपनी एक रिपोर्ट में ब्लूमबर्ग ने ख़बर दी ‘मामलों की नई लहर मिलेनियल्स और जेनरेशन ज़ेड के संक्रमण से आ रही है, जिसमें फिर से लगी पाबंदियों के बावजूद, कमी आती नहीं दिख रही है’ और कहा था कि अब सोशल डिस्टेंसिंग की पाबंदियों को, न्यायोचित ठहराना मुश्किल हो रहा है.

‘बिना लक्षण वाले, सक्रिय लोग’

20-50 आयु वर्ग के बीच कोविड-19 ज़्यादा होने के बारे में बात करते हुए दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जिनॉमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर डॉ अनुराग अगरवाल ने कहा कि इस आयु वर्ग के लोग, ‘सामाजिक और पेशेवर रूप से सबसे अधिक सक्रिय हैं, ख़ासकर जब देश लॉकडाउन से बाहर आ रहा है.’


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उन्होंने आगे कहा, ‘ये लोग सबसे अधिक सक्रिय हैं. इनके अंदर लक्षण भी नहीं पाए जाते, इसलिए अगर लोग तबीयत ख़राब होने पर, घर में रहने की गाइडलाइन्स का पालन भी करें, तो इन्हें तबीयत ख़राब ही नहीं लगती.’ उन्होंने ये भी कहा, ‘असल मुद्दा यही है और यही उन्हें एक ड्राइविंग फोर्स बनाता है. आने वाले दिनों में, ये मसला और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा, जब स्कूल और कॉलेज खुलेंगे, जब भी वो होता है.’

दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेज़ के डायरेक्टर डॉ एसके सरीन ने जो कोविड-19 पर केंद्र शासित सरकार की एक समिति के प्रमुख भी हैं, कहा कि युवा लोगों के महामारी को आगे बढ़ाने की घटना कोई नई बात नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप 102 साल पहले के स्पेनिश प्लू को देखें, तो उस बीमारी को प्रधान रूप से – 70-80 प्रतिशत की हद तक- 20-40 आयु वर्ग के लोगों ने फैलाया था, लेकिन मरने वाले 60 से ऊपर के ज़्यादा थे.’

‘ये बात आज भी सही है और किसी भी संक्रामक बीमारी के लिए सही है. युवा लोग ज़्यादा घुमंतू होते हैं, ज़्यादा लापरवाह भी होते हैं और नियम भी ज़्यादा तोड़ते हैं. वो मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं. अपने मास्क उतार लेते हैं और आम जगहों पर खा लेते हैं. वो घुलते मिलते भी ज़्यादा हैं. हम देख रहे हैं कि क्या हम इस रवैये को बदल सकते हैं, और उन्हें बदलाव के दूत बना सकते हैं.’

लेकिन, आंध्र प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण आयुक्त, भास्कर कातामानेनी इससे सहमत नहीं हैं.

“मुझे नहीं लगता कि हम ये कह सकते हैं कि एक विशेष आयु वर्ग में मामले बहुत अधिक हैं. ये समान रूप से बटे हुए हैं, बस बात ये है कि बढ़ी उम्र के लोगों में ये ज़्यादा है, जिसका कारण ज़ाहिर है- अन्य बीमारियां.

दूसरे राज्यों में भी यही प्रवृत्ति

हरियाणा में, 16 अगस्त तक दर्ज कुल 47,153 मामलों में, 13,186-लगभग 28 प्रतिशत- 25-34 आयु वर्ग से हैं. अन्य 9,250 या 19.6 प्रतिशत मामले, 35-44 आयु वर्ग से हैं, और 7,360 या 1.6 प्रतिशत मामले, 15-24 आयु वर्ग से हैं. इसका मतलब है कि कुल मामलों में, 63 प्रतिशत 15-44 आयु वर्ग से हैं.

पंजाब में, 15 अगस्त तक दर्ज कुल 29,931 मामलों में से, 7,592 या 25 प्रतिशत, 25 से 34 वर्ष के बीच के हैं. अन्य 5,734 मामले या 19 प्रतिशत, 35-44 आयु वर्ग के हैं. 15-24 आयु वर्ग में ये संख्या, 3,788 या 12.7 प्रतिशत है. इस तरह पंजाब के कुल मामलों में, 57 प्रतिशत 15 से 44 आयु वर्ग से हैं. इसके अलावा 5,480 मामले और हैं, जो 45 से 54 आयु वर्ग से हैं.

नागालैण्ड में, राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 81 प्रतिशत मामले 18-44 आयु वर्ग से हैं. 45 से 75 की आयु के लोग, कुल संख्या का 15.7 प्रतिशत हैं.

नागालैण्ड के इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्वेलेंस प्रोग्राम के नोडल ऑफिसर, डॉ न्यान किकॉन ने बताया, ‘युवा आबादी में 98 प्रतिशत मामले बिना लक्षण वाले हैं.’

लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि बीमारी से निपटने की राज्य की मुख्य रणनीति में, ये कोई महत्वपूर्ण फैक्टर नहीं रहा है. उनका कहना था, ‘रणनीति सामने विकसित हो रही समस्याओं के हिसाब से बदलती रहती है, जो हर ज़िले और लोगों के समूहों में अलग-अलग हो सकती है.’

अनीशा बेदी, अंगना चक्रबर्ती, प्रशांत श्रीवास्तव, मानसी के इनपुट के साथ

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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