scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेश106 किमी दूर साइकिल से बेटे को परीक्षा दिलाने जाने का पिता का संघर्ष काम आया, आनंद महिंद्रा ने की मदद की पेशकश

106 किमी दूर साइकिल से बेटे को परीक्षा दिलाने जाने का पिता का संघर्ष काम आया, आनंद महिंद्रा ने की मदद की पेशकश

बेटे का परीक्षा सेंटर दूर था, बसें भी नहीं थी. इसलिए 3 दिन का राशन साथ ले ब्यादिपुरा निवासी शोभाराम साइकिल पर ही चल दिए.

Text Size:

नई दिल्ली: हाल ही में लॉकडाउन के दौरान हमने ज्योति कुमारी की कहानी सुनी थी. बिहार की वो लड़की जो कथित तौर पर लगभग 1200 किमी साइकिल चला कर अपने पिता को घर लेकर लौटी थी. बच्चों के प्रयासों को हम सभी सराहते हैं. अमूमन मां बाप के बच्चों के लिए किये गए कामों को कर्त्तव्य परायणता की दृष्टि से ही देखा जाता है. लेकिन उसके पीछे छुपे संघर्ष और लोहे सी इच्छा शक्ति को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता.

ऐसी ही एक घटना सामने आई है मध्य प्रदेश से. धार जिले के ब्यादिपुरा गांव के रहने वाले मजदूर शोभाराम परिहार के बेटे आशीष की 10वीं की बोर्ड परीक्षा शुरू होने वाली थी. दरअसल शिवराज चौहान सरकार द्वारा 10वीं और 12वीं की परीक्षा में किसी कारणवश अनुत्तीर्ण रह गए बच्चों को एक मौका और देने के लिए ‘रुक जाना नहीं’ योजना चलायी गयी है. इसी के तहत आशीष का पहला पेपर 18 अगस्त को था. लेकिन परीक्षा सेंटर था उसके गांव से 106 किमी दूर. बस की या अन्य किसी वाहन की कोई सुविधा नहीं. ऐसे में पिता ने निर्णय लिया की वो साइकिल पर ही जायेंगे, चाहे कितना ही दूर हो. 17 अगस्त को दोनों बाप-बेटे आने साथ 3 दिन का राशन बांध कर चल पड़े.

पर संघर्ष की गूंज इतनी दूर तक सुनाई दी की महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन और शीर्ष उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी पिता की इस कर्मठता को सराहते हुए बच्चे की पढाई में पूरी सहायता करने की पेशकश की.

नहीं जानते कौन हैं आनंद महिंद्रा

दिप्रिंट से खास बातचीत में शोभाराम ने बताया की उन्होंने महिंद्रा स्कूटर के बारे में तो सुना है, पर आनंद महिंद्रा कौन है ये नहीं जानते. ‘वो शायद कोई बड़े आदमी होंगे. हमें बताया गया है कि हमें मदद दी जायेगी. जान कर ख़ुशी हो रही है क्योंकि हम तो यही चाहते हैं की बच्चे आगे अच्छे से पढ़ लिख जाए.’


यह भी पढ़ें : राष्ट्रपति ने एक लड़के को रेसिंग साइकिल गिफ्ट की जो अपने सपने को पूरा करने के लिए धोता हैं बर्तन


पेशे से मजदूर शोभाराम के 3 बच्चे हैं. उनकी कमाई का कोई निश्चित जरिया नहीं है.उन्होंने कहा, ‘कभी 100 रुपये कमा लेता हूं, कभी 200. कई बार तो हफ्ते भर तक कोई कमी नहीं होती.’ लॉकडाउन की वजह से कमाई और भी कम हो गयी. उनके अनुसार, लॉकडाउन में स्कूल बंद हो जाने और पढ़ाई पूरी न ही सकने की वजह से बेटा 10वीं में अच्छे नंबर नहीं ला पाया.

‘मैं तो सिर्फ 12वीं तक पढ़ा हूं. दिन भर काम की तलाश में थका हरा रात को घर लौटता हूं. बच्चों पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. इनकी मां भी बीमार रहती है. ऐसे में कौन पढ़ायेगा. मास्टर जी ने तो स्कूल बंद होने के साथ ही पढ़ना छोड़ दिया था.’

शोभाराम के अनुसार, उन्हें एक बार भी ख्याल नहीं आया कि वो कैसे इतनी दूर बिना किसी मदद के साइकिल चलते जायेंगे. कोई बस या वहां नहीं जा रहा था. हम क्या करते. कोई और उपाय नहीं था. रास्ते में बरसात भी हुई. चोर-डाकुओं का भी दर था, पर रस्ते में अनजान लोगों ने हमारी मदद भी की. जैसे तैसे रास्ता पूछते हुए हम पहुंच गए.’

इसी तरह बाप और बेटा परीक्षा सेंटर पर अगले दिन परीक्षा से कुछ ही समय पहले पहुंच गए. शोभाराम के चेहरे पर इस बात का सुकून था की बेटा बोर्ड की परीक्षा दे पायेगा.

आशीष, उनका बेटा, अभी तक तीन पेपर दे चुका है और चौथे की तैयारी कर रहा है. जैसे ही इनकी कहानी वायरल हुई, प्रशासन हरकत में आया और इनके रहने खाने का सब इंतज़ाम किया. फिलहाल दोनों बाप-बेटे एक सरकारी होस्टल में रह रहे हैं.

प्रशासन पूरी मदद को तैयार

वहीं जिला शिक्षा अधिकारी दिनेश दुबे ने दिप्रिंट से कहा कि शोभाराम की हर संभव मदद की जा रही है. ‘बच्चे को प्रशासन की तरफ से पढ़ने का माहौल दिया गया है. उसके खाने-रहने की व्यवस्था भी की गयी है. 24 को परीक्षा ख़त्म होने के बाद उन्हें गाड़ी द्वारा वापस छोड़ने का इंतज़ाम भी किया जाएगा.’


यह भी पढ़ें :वाशिंगटन में गांधी की प्रतिमा पर स्प्रे पेंट किए जाने के बाद अमरीकी राजदूत ने मांगी माफ़ी


पर परीक्षा सेंटर इतनी दूर क्यों बनाया गया, इस पर अधिकारी का कहना है कि अभ्यर्थियों की सूची स्टेट बोर्ड द्वारा दी गयी थी. चूंकि ऑनलाइन फॉर्म भरे गए थे, इससे ये पता लगाना मुश्किल था की किसने कहां से फॉर्म भरा है. ‘इस योजना के तहत परीक्षा की सारी व्यवस्था जिले को हो करनी पड़ती हैं. चूंकि परम्परागत परीक्षा की तुलना में इसमें कम अभ्यर्थी होते हैं. उनके लिए सेंटर भी कम ही होते हैं. क्यूंकि मात्र 2500 अभ्यर्थियों को परीक्षा देनी थी, इसलिए जिले में ही सेंटर बनाये गए.’

आगे क्या बनना है, इस सवाल पर आशीष के पास दो शब्द हैं – बड़ा अफसर. उसे ख़ुशी है की उसके पिता के संघर्ष को पहचान मिली है. वो सिर्फ चाहता है कि उसकी मदद हो जाये ताकि जीवन में कुछ अच्छा कर सके.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments