सूरत: कोविड के कारण हुए राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद सूरत के प्रवासी श्रमिकों में से 10 प्रतिशत ही शहर में वापस आये हैं और अक्टूबर में या दीवाली के बाद लगभग 70 प्रतिशत श्रमिकों के वापस आने की उम्मीद है.
प्रमुख विनिर्माण केंद्र सूरत ने मार्च में हुए लॉकडाउन की घोषणा के बाद 18 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों का पलायन देखा हैं. यह शहर बड़ी संख्या में कपड़ा, हीरा और रासायनिक उद्योगों का प्रमुख केंद्र है. यहां उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के प्रवासियों की बड़ी संख्या आती है. 2013 की यूनेस्को की एक रिपोर्ट में पाया गया था कि सूरत की 58 प्रतिशत आबादी आंतरिक प्रवासी थी.
गुजरात कपड़ा संघर्ष मजदूर यूनियन के अध्यक्ष कामरान अहमद उस्मानी ने कहा, ‘अब तक, केवल 10 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक शहर लौट आए. हम अक्टूबर या नवंबर या दिवाली के बाद कम से कम 70 प्रतिशत श्रमिकों की वापसी उम्मीद कर रहे हैं.’
गुजरात में पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता कृष्णकांत चौहान ने कहा, ‘लॉकडाउन से पहले शहर में 20 लाख से अधिक श्रमिक एम्प्लॉयड थे. लॉकडाउन के बाद 18 लाख प्रवासी श्रमिक अपने गृह राज्यों में वापस चले गए.
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में यह दावा किया था कि प्रवासी श्रमिक वापस लौट रहे हैं और उद्योगों ने परिचालन फिर से शुरू कर दिया है.
हालांकि, जमीन पर चीजें अलग हैं. अधिकांश कारखाने उत्पादन क्षमता के केवल 20 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं. सूरत लौटने वाले श्रमिकों ने दिप्रिंट को बताया कि वापस न आने के पीछे परिवहन की कमी एक बड़ी वजह थी.
परिवहन और बंद कारखानों का अभाव
प्रवासी श्रमिक विवेक और पुखराज दो महीने पहले राजस्थान के भीलवाड़ा से सूरत आए थे.
विवेक ने कहा, ‘हमें वापस आने के लिए ट्रेन के टिकट के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ी. मैंने 1,300 रुपये का भुगतान किया, जो शहर के सचिन औद्योगिक क्षेत्र में एक कपड़ा उद्योग में काम करता है. ‘लेकिन वापस न आना एक रास्ता नहीं था क्योंकि मेरे ऋण को चुकाने के लिए पैसे कमाने की ज़रूरत थी, जो कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही बढ़ रहे हैं.’
हालांकि, विवेक और पुखराज की तरह कई श्रमिक सूरत तक ट्रेन या बस टिकट नहीं ले सकते हैं.
उस्मानी ने कहा कि यह श्रम घाटे का एक प्रमुख कारण था.
उन्होंने कहा, ‘प्रवासी श्रमिकों के न लौटने के पीछे सबसे बड़ा कारण परिवहन की उपलब्धता है. वर्तमान में, केवल एक या दो ट्रेनों को प्रतिदिन तैनात किया जा रहा है, जिससे बहुत फर्क नहीं पड़ता है. उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए हमें अपने श्रमिकों को वापस लाने के लिए सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता है.’
इस बीच, एक्टिविस्ट कृष्णकांत ने कारखानों के या तो बिल्कुल नहीं चलने का इशारा किया या अपनी क्षमता के एक अंश पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘अधिकांश कारखाने बंद हैं. वे केवल 20 प्रतिशत उत्पादन क्षमता पर चल रहे हैं. मजदूरों को शहर वापस आने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है.’
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राहुल मध्य प्रदेश के सतना के एक प्रवासी श्रमिक, जो लॉकडाउन के बाद अपने गांव वापस नहीं लौटे, क्योंकि वे इसे अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते थे. उन्होंने कहा, पहले चौबीस घंटे सातों दिन की पारी हुआ करती थी. लेकिन अब श्रम की कमी के कारण, केवल दिन की पाली है.’
जीआरएच लक्ष्मी फैक्ट्री में एक प्रबंधक, जो हथकरघे को डाई करते हैं, ने कहा कि जिन फैक्ट्रियों ने अपने कामगारों का ख्याल रखा है, वे ही अब तक काम कर रहे हैं.
प्रबंधक ने बताया, ‘हमने लॉकडाउन के दौरान भी अपने श्रमिकों का ख्याल रखा. सूरत में केवल 15 प्रतिशत फैक्ट्री मालिकों ने अपने श्रमिकों की देखभाल की. वर्तमान में जो कारखाने चल रहे हैं, वे ऐसे हैं जिन्होंने अपने श्रम का ध्यान रखा. दूसरों को श्रम अनुबंध करना मुश्किल हो रहा है.
ठेकेदार मजदूरों को वापस बुला रहे हैं
श्रमिकों को वापस आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई कारखाने मालिकों ने दैनिक मजदूरी में वृद्धि की है. हालांकि, प्रवासी श्रमिकों को इस कदम पर संदेह है और फैक्ट्री मालिकों ने उन्हें बताया कि यह केवल तब तक ही होगा जब तक कि अन्य श्रमिक वापस नहीं लौटते.
वर्तमान में रंगाई उद्योग में काम कर रहे उत्तर प्रदेश के बांदा के एक प्रवासी श्रमिक ओम प्रकाश ने कहा, ‘श्रम की कमी के कारण, हमें काम करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में लगभग हर दिन 100 रुपये अतिरिक्त दिए जा रहे हैं. मैं वापस आ गया क्योंकि मेरे ठेकेदार ने मुझे बुलाया और कहा कि काम फिर से शुरू हो गया था.’
प्रकाश और कई अन्य प्रवासी श्रमिकों ने दिप्रिंट को बताया कि लॉकडाउन से पहले जो मजदूर दिल्ली या मुंबई में काम कर रहे थे, वे अब सूरत में काम तलाश रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि दिल्ली और मुंबई में श्रमिकों को किराए के लिए भारी जमा राशि का भुगतान करना पड़ता है, जो कि कई श्रमिक लॉकडाउन के बाद नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘कपड़ा क्षेत्र में काम करने वाले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक प्रवासी श्रमिक राजकिशोर भी उनके ठेकेदार द्वारा उन्हें बुलाए जाने के बाद वापस आ गए. ज्यादातर श्रमिक वापस नहीं आ रहे हैं क्योंकि वे वायरस से डरते हैं. जो भी अभी वापस आ रहा है, वह असहाय है.’
उस्मानी ने कहा, ‘प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के लिए कई ठेकेदार उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गांवों में गए. लेकिन कई वायरस से डरते हैं और लॉकडाउन की घोषणा के बाद जिस तरह से व्यवहार किया गया, उससे नाराज हैं.’
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