रायपुर: राज्य गठन के 20 साल बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने पहली बार 15 अगस्त के दिन काला झंडा नही फहराया गया है. पुलिस अधिकारियों ने इसका कारण माओवादियों की ग्रामीणों में कम होती पकड़ और और सुरक्षाबलों के प्रति बढ़ता विश्वास बताया है.
शानिवर को 73 वें स्वतंत्रता दिवस पर पिछले नक्सलियों ने अपने पकड़ वाले करीब 400 गांवों में काला झंडा नही फहराया. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार यह खबर राज्य सरकार और पुलिस के बड़े अधिकारियों के बीच एक विशेष चर्चा का विषय बनी हुई है.
वहीं दूसरी ओर दोनों इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में भी देख रहें हैं. माओवाद विरोधी ऑपरेशन्स में तैनात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यह विगत कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों और राज्य सरकार द्वारा ग्रामीणों का भरोसा जीतने की लगातार कोशिश का परिणाम है. इसके साथ ही केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस द्वारा माओवादियों के खिलाफ लगातार कड़ी कार्रवाई और मानवाधिकार हनन की घटनाओं में आई कमी ने भी नक्सलियों को रक्षात्मक तरीका अपनाने को मजबूर कर दिया है.
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माओवाद विरोधी अभियान के प्रमुख और बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने बताया, ‘विगत कुछ सालों से नक्सलियों द्वारा काले झंडे फहराने की घटनाएं कम हो रही थीं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि इस स्वतंत्रता दिवस में नक्सलियों द्वारा काला झंडा फहराने की कोई घटना सामने नही आई. साथ ही स्थानीय ग्रामीणों में स्वतंत्रता दिवस के प्रति अभूतपूर्व उत्साह भी दिखा. यह एक बहुत ही सकारात्मक बदलाव है जो स्थानीय प्रशासन, सुरक्षा बलों और ग्रामीणों के बीच बढ़ते विश्वास को दर्शाता है.’
बस्तर आईजी का कहना है कि सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ ग्रामीणों के बीच पारस्परिक मेल-जोल भी निरंतर बढ़ाया है जिससे ग्रामीण भी अब नक्सलियों के आकर्षण से दूर होने लगे हैं.
दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘जिले में करीब 40-50 गांव ऐसे हैं जहां नक्सलियों का बहुत अधिक प्रभाव है लेकिन इस वर्ष वहां से भी काला झंडा फहराने की कोई खबर नही आई. साफ जाहिर है की माओवादियों की ग्रामीणों के बीच पकड़ कमजोर हो रही है. उनके अपने साथी उनको छोड़कर सरेंडर कर रहें हैं और सरकार द्वारा चलाई जा रही पुनर्वास योजना का लाभ ले रहे हैं. पिछले ढाई महीने में दंतेवाड़ा जिले के 1600 चिन्हित ईनामी सहित दूसरे वांछित नक्सलियों में से करीब 104 ने सरेंडर कर दिया है. निश्चित तौर पर यह बहुत बड़ा बदलाव है.’
गौरतलब है कि दंतेवाड़ा के नक्सली गढ़ मारजूम गांव में स्वतंत्रता के 73 सालों में इस वर्ष पहली बार ग्रामीणों ने तिरंगा फहराया. पल्लव का कहना है कि मारजूम के लोगों में माओवाद के प्रति विश्वास कम हुआ है जिससे उन्होंने स्वतंत्रता दिवस समारोह में काफी उत्साह दिखाया.
संवेदनशील नक्सली जिला माने जाने वाले नारायणपुर जिले से भी इस वर्ष नक्सलियों द्वारा काला झंडा न फहराए जाने पर एसपी मोहित गर्ग का कहना है, ‘सुरक्षा बालों को 14-15 अगस्त को ज्यादा एलर्ट रहना पड़ता है क्योंकि नक्सलियों द्वारा कला झंडा फहराने जैसी घटनाओं को अंजाम इसी दौरान दिया जाता है. पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा एरिया डॉमिनेशन का इम्पैक्ट तो रहता ही है लेकिन पिछले 2-3 सालों में नक्सलवाद से पीड़ित गांव वालों के बीच जाना और उनके प्रति सहानभूति दिखाने के साथ उनकी मदद के लिए आगे आने से भी संभव हुआ है. अब ग्रामीण प्रो गवर्नमेंट होने लगे हैं. मानवाधिकार हनन की शिकायतें भी करीब न के बराबर ही रही हैं. सरकार द्वारा विकास और पुनर्वास की जो कोशिश की जा रही है उसका परिणाम है कि लोग नक्सलियों से दूर हो रहें हैं.’
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ऐसा ही कुछ सुकमा जिले के एसपी सलभ कुमार कहना है, ‘इसमें दो बातें हैं, एक तो सुरक्षा बलों द्वारा एरिया डॉमिनेशन की कार्रवाई दूसरा गांव वालों का नक्सलियों से दूरी बनाना. कई स्थानों में नक्सली अब ग्रामीणों के बीच आने से भी घबराने लगे हैं. उनको भी एहसास है कि धीरे-धीरे कई गांव उनके हाथ से निकलते जा रहे हैं.’
सुकमा के एसपी आगे कहते हैं, ‘केंद्रीय सुरक्षा बल और राज्य पुलिस के जवान दोनों ही ग्रामीणों के बीच जाकर उनको इसका महत्व भी समझते हैं और उनसे संवाद स्थापित करते हैं. इसके अलावा स्थानीय प्रशासन भी कई नक्सली होल्ड वाले गांवों तक अब अपनी पहुंच बना चुका है.’