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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशदो शहरों ने कोविड को कड़ी टक्कर दी, लेकिन डाटा की पारदर्शिता में मुंबई ने दिल्ली को पीछे छोड़ दिया

दो शहरों ने कोविड को कड़ी टक्कर दी, लेकिन डाटा की पारदर्शिता में मुंबई ने दिल्ली को पीछे छोड़ दिया

विशेषज्ञों का कहना है कि विश्वसनीय डाटा सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति तैयार करने में बहुत मायने रखता है. एक अहम पहलू यह है कि मुंबई ने इसमें महारत हासिल कर ली है.

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मुंबई/नई दिल्ली: भारत के दो सबसे महत्वपूर्ण शहरों- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और वाणिज्यिक राजधानी मुंबई– ने कोविड-19 महामारी का आघात सहा है. दोनों जगह कोरोनोवायरस के 1 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं. लेकिन जो बात उन्हें अलग करती है, वह है डाटा के प्रति उनका नजरिया.

एक तरफ मुंबई जहां कोविड से संबंधित अपना सारा डाटा नियमित रूप से सार्वजनिक करता है, ये आम लोगों और विशेषज्ञों के देखने के लिए उपलब्ध है. लेकिन दिल्ली के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.

मुंबई के पास न केवल अपने सभी 24 प्रशासनिक वार्डों के बारे में एक जगह जानकारी मुहैया कराने के लिए एक विस्तृत डैशबोर्ड है, बल्कि बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की तरफ से जारी किया जाने वाला डेली बुलेटिन बहुत छोटी-छोटी जानकारियां दिए जाने के कारण कई पृष्ठों का हो जाता है.

दिल्ली में भी एक कोविड-19 डैशबोर्ड है जो कुछ आंकड़े उपलब्ध कराता है, लेकिन यह डायरेक्टरी जैसा अधिक होता है. इसमें लैब, अस्पतालों आदि के फोन नंबर और पते आदि होते हैं, साथ में लोगों के पालन के लिए कुछ दिशानिर्देश रहते हैं. दिल्ली में डेली बुलेटिन बमुश्किल एक पेज लंबा होता है और महामारी के शुरुआती दिनों की तुलना में काफी अस्पष्ट होता है, जब यह काफी विस्तृत तस्वीर पेश करता था.

विशेषज्ञ विस्तृत आंकड़े जारी करने के विशेष जोर देते हैं, क्योंकि इससे जमीनी स्तर पर सही हालात का पता लगाने में मदद मिलती है.

दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डॉ. दिलीप मावलंकर ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में डाटा थर्मामीटर या किसी अन्य चिकित्सकीय उपकरण की तरह है, और आगे इलाज के लिए रणनीति बनाने में मददगार होता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘डाटा का सही प्रबंधन एक मरीज के लिए सीटी स्कैन या नियमित रूप से किसी व्यक्ति का तापमान लेने जितना ही महत्वपूर्ण है. अगर तापमान बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है. अगर यह नीचे जाता है, तो इसका मतलब है कि कुछ असर हो रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई सटीक विश्वसनीय डाटा उपलब्ध नहीं है, तो विशेषज्ञ इस महामारी का मुकाबला करने की रणनीति बनाने में असमर्थ होंगे. डाटा में जितनी बारीक जानकारियां उपलब्ध होंगी, उतना ही बेहतर होगा.’

मुंबई बनाम दिल्ली

मुंबई में शुक्रवार तक कुल 1,14,287 कोविड-19 मामले दर्ज किए गए, जिसमें 87,074 ठीक हो चुके, 20,569 सक्रिय केस और 6,350 मौतें शामिल हैं. दिल्ली में 10,705 सक्रिय केस, 1,20,930 मरीजों के ठीक होने और 3,963 मौतों के साथ कुल 1,35,598 कोविड-19 मामले सामने आए हैं.

1 जून तक दिल्ली विस्तृत बुलेटिन जारी कर रहा था जिसमें पॉजिटिव मामलों (सक्रिय और ठीक हो चुके), विभिन्न अस्पतालों और कोविड केयर सेंटर में भर्ती मरीजों की संख्या, उनकी आयु आदि का ब्रेकअप और टेस्ट कितने बढ़े इसकी जानकारी होती थी. कुछ दिनों तक तो लैब में लंबित रिपोर्ट का विवरण भी दिया जाता था. हालांकि, इनमें जिलेवार आंकड़ों की कमी थी.

अब, बुलेटिन में पॉजिटिव मामलों की संख्या (कुल और डेली अपडेट), कोविड केंद्रों में बेड की संख्या–भरे और खाली- और परीक्षण किए जाने से जुड़ी संख्या का ब्योरा ही होता है. मई और जून में कुछ दिनों तो कोई स्वास्थ्य बुलेटिन जारी ही नहीं किया गया.

DelhiFightsCorona.in का डैशबोर्ड सक्रिय मामलों की संख्या, मृत्यु, ठीक होने वालों की संख्या और कितने टेस्ट जैसे आंकड़ों के साथ खुलता है. इसके अलावा आप इसमें अलग-अलग अस्पतालों में बेड की उपलब्धता और उन क्षेत्रों की जानकारी ले सकते हैं जो कंटेनमेंट जोन में शामिल हैं. लेकिन इसमें राष्ट्रीय राजधानी में बीमारी के ट्रेंड से जुड़े अन्य आंकड़े बहुत कम हैं.

दूसरी तरफ. मुंबई में Stopcoronavirus.mcgm.gov.in/key-updates-trends का डैशबोर्ड शहर के सभी 24 वार्डों में उच्च-जोखिम वाले, सिम्पटमैटिक, एसिम्पटमैटिक और गंभीर रोगियों की कुल संख्या के अलावा कुल सक्रिय मामले, पॉजिटिविटी रेट, अस्पतालों में उपलब्ध आईसीयू बेड, पिछले 24 घंटों में की गई कांटैक्ट ट्रेसिंग (कितनी संख्या में कांटैक्ट ट्रेस किए गए. अगर उन्हें टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया तो कितने घर या स्वास्थ्य केंद्रों में क्वारंटाइन किया गया). कुल कितने टेस्ट हुए लैब में लंबित रिपोर्ट की संख्या, कितने क्षेत्र कंटेनमेंट क्षेत्र घोषित, कितने भवन/क्षेत्र सील किए गए आदि श्रेणियों में विस्तृत डाटा उपलब्ध कराता है.

बीएमसी ने मई में इस डैशबोर्ड पर काम करना शुरू किया और 7 जून को यह फंक्शनल हो गया था.

हालांकि, यह सारा डाटा बिंदुवार चार्ट के साथ डैशबोर्ड में फीड किया जाता है, बीएमसी हर दिन अलग से एक विस्तृत हेल्थ बुलेटिन भी जारी करती है जिसमें मौतों, कुल मामलों की संख्या, संक्रमण बढ़ने की दर, मामले दोगुने होने की दर और अस्पताल में बेड की उपलब्धता का ब्योरा रहता है.

मुंबई में वार्ड स्तर के वार रूम

मुंबई में डाटा प्रबंधन के लिए दो प्रमुख सूत्रों प्रौद्योगिकी और अनुशासन को अपनाया गया है.

मुंबई अपने भारी-भरकम डाटा को कई श्रेणियों में बांटकर उन्हें उपयोगी बनाने में सक्षम है, हर श्रेणी के डाटा का प्रबंधन दो लोगों के जिम्मे होता है. तकनीकी और डाटा विशेषज्ञ 24 अलग-अलग वार्ड-स्तरीय वार रूम का प्रबंधन संभालते हैं.

हर सुबह बीएमसी का मेन वार रूम आईसीएमआर की वेबसाइट से पॉजिटिव मामलों का डाटा डाउनलोड करता है, जहां इसे विभिन्न लैब से मिली जानकारी के आधार पर अपलोड किया जाता है. फिर पिनकोड के जरिये एक एल्गोरिदम इस डाटा को छांटता है, और फिर आगे फॉलोअप के लिए इसे संबंधित 24 वार्डों में भेज दिया जाता है.

मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में अतिरिक्त नगर आयुक्त अश्विनी भिडे ने कहा, ‘वार्ड स्तर के वार रूम के लिए…24 घंटे (पूरे दिन) के लिए तीन अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं, जिनमें रेजिडेंट डॉक्टर, मेडिकल स्टूडेंट, टीचर और कुछ अन्य कर्मचारी शामिल हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘एक बार वार्ड की सूची मिल जाती है तो फिर ये पॉजिटिव पाए गए लोगों को यह पूछने के लिए कॉल करते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं. यदि वे अस्वस्थ हैं, तो उन्हें अस्पताल रेफर जाता है, यदि वे एसिमप्टमैटिक हैं तो टीम ऑक्सीमीटर (रक्त प्रवाह में ऑक्सीजन स्तर जांचने वाला उपकरण) के साथ घर जाकर उनका परीक्षण करती है और फिर तय करती है कि उन्हें अस्पताल भेजा जाए या घर में ही आइसोलेशन में रहने की अनुमति दी जाए.’

उन्होंने कहा कि इन वार रूम की वजह से मुंबई में डाटा सुव्यवस्थित करने में मदद मिली है.

भिडे ने बताया, शुरुआत में सभी अस्पतालों से आने वाली जानकारी एकत्र करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. बाद में हमने विभिन्न श्रेणियां तय कीं और इनमें हर एक की जिम्मेदारी तय की ताकि जवाबदेही हो. परीक्षणों का डाटा प्रबंधन संभाल रहा व्यक्ति उस श्रेणी के लिए जवाबदेह है. जो व्यक्ति मौतों या सक्रिय केस का डाटा संभाल रहा है, वही यह सुनिश्चित करेगा कि यह अपडेट होता रहे.’

उन्होंने कहा, ‘इन श्रेणियों में छांटने के बाद हमारे पास इसे समान रूप से केंद्रीय प्रणाली में भेजने की व्यवस्था है जो इसे सीधे डैशबोर्ड पर पहुंचा देती है.’

मुंबई के किस नजरिये ने सारे डाटा इनपुट को सुव्यवस्थित करने में मदद की. कोई भ्रम न हो, इसके लिए अधिकारियों ने सभी लैब और अस्पतालों को आईसीएमआर पोर्टल पर उपलब्ध कराए जाने वाले डाटा के लिए एक टेम्पलेट दी.


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भिडे ने बताया, ‘पहले रिपोर्ट में फोन नंबर, पते शामिल नहीं होते थे, उनमें केवल नाम होते थे, और इससे बहुत भ्रम की स्थिति रहती थी. हमने तब सभी आवश्यक जानकारियां लेने के उद्देश्य से एक मानक गूगल फार्म बनाया, जिसे ही अब सभी लैब और अस्पतालों में भरा जाता है.’

दिल्ली में कोई समर्पित केंद्रीकृत वार रूम नहीं है. इसके सभी 11 जिलों के जिलाधिकारी मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारियों की मदद से आंकड़ों का प्रबंधन कर रहे हैं.

बुनियादी स्तर पर मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) की तरफ से मरीज का ब्योरा (आयु, लक्षण, लिंग आदि) जुटाया जाता है और उन्हें संबंधित चिकित्सा अधिकारियों के पास भेजा जाता है, जो तब यह डाटा डीएम के साथ साझा करते हैं.

एक डीएम ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले दिन से ही डाटा के लिए कोई केंद्रीकृत प्रणाली नहीं है और स्वास्थ्य विभाग डीएम द्वारा भेजे गए डाटा पर निर्भर रहता है.’

दक्षिण दिल्ली जैसे कुछ जिलों में एक समर्पित वार रूम है, जहां क्षेत्रीय स्तर पर डाटा जुटाकर कोविड पोर्टल पर अपलोड किया जाता है. हालांकि, पोर्टल की जानकारी केवल सरकारी अधिकारियों के लिए ही उपलब्ध है.

दिप्रिंट ने इस रिपोर्ट के संदर्भ में टिप्पणी के लिए दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक नूतन मुंडेजा, स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के अलावा स्वास्थ्य सचिव पद्मिनी सिंगला के कार्यालय से कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क के कई प्रयास किए, लेकिन इसे प्रकाशित करने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

भ्रम से बचने के लिए उचित प्रारूप

मुंबई का डैशबोर्ड गंभीर, सिम्पटमैटिक और एसिम्पटमैटिक मरीजों की स्थिति पर रियल टाइम डाटा भी मुहैया कराता है, वार्ड-स्तरीय वार रूम मरीजों के इलाज से जुड़ी जानकारी की लगातार ट्रैकिंग का एक अन्य कार्य भी करता है.

भिडे ने बताया, ‘मरीज चलते-फिरते रहते हैं. कुछ एसिम्पटमैटिक मरीज कोविड केयर सेंटर जाते हैं. यदि उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है तो उन्हें विशेष कोविड अस्पतालों में भेज दिया जाता है. कुछ को घर भेज दिया जाता है. इन सबको को हमारी वार्ड स्तर की टीम ट्रैक करती रहती है और आंकड़ों को नियमित रूप से अपडेट करती है.’

दिल्ली में ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. भिडे के अनुसार, उनके द्वारा तैयार प्रणाली ने डाटा में किसी भी तरह की गड़बड़ी पकड़ने में भी मदद की है.

भिडे ने कहा, ‘जब हमने यह वार्ड-स्तरीय प्रणाली शुरू की तो हम सभी अस्पतालों को बारीकी से ट्रैक कर पाते थे और पाया कि बहुत सारी मौतों की सूचना नहीं दी जा रही थी. वह भी कागजात तैयार करने में लगने वाले समय के कारण. अब सभी अस्पतालों को एक गूगल फॉर्म और एक डेथ समरी फॉरमेट मुहैया कराया गया.’

इधर, दिल्ली में कोविड से मौत के आंकड़ों पर मई से सवाल उठाए जा रहे हैं. अंतिम संस्कार स्थलों, नगरपालिका परिषदों और दिल्ली सरकार से मिल रहे आंकड़ों में अंतर ने इन आरोपों को बढ़ावा दिया कि दिल्ली सरकार मौतों की संख्या कम करके बता रही है.

दिप्रिंट से ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया, और आंकड़ों में इस अंतर के लिए ऑडिट कमेटी की तरफ से आंकड़ों को जांचने और सत्यापित करने में लगने वाले लंबे समय को जिम्मेदार ठहराया. ऐसा होने पर भी डाटा सुव्यवस्थित करने का कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया है. हाल में 17 जुलाई तक नगर निगम और दिल्ली सरकार के आंकड़ों में 500 का अंतर था.

दिप्रिंट ने 2 जुलाई को मुंबई में कोविड से मौतों पर महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी की तरफ से जारी डाटा में अंतर की सूचना दी थी, लेकिन राज्य के डाटा में केवल दो का अंतर था.


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बेड की उपलब्धता पर नजर रखना

शुरू में रियल टाइम में अस्पतालों में बेड की उपलब्धता संबंधी आंकड़ों का अभाव मुंबई में एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया जो व्यापक स्तर पर कोरोनावायरस से जूझ रही थी. लेकिन इसके बाद बीएमसी ने इस समस्या को दूर कर लिया.

भिडे ने कहा, ‘दो चीजें हैं जो हम ट्रैक करते हैं-मौजूदा समय में कितने बेड भरे हुए हैं और कितने बेड बढ़ाए जा रहे हैं. हर दिन सारी जानकार डैशबोर्ड पर देनी होती है. यह सब भी वार्ड स्तर पर किया जाता है, जहां कोविड केयर सेंटर में भरे और खाली बेड की संख्या पर बारीक नजर रखी जाती है. यह सब जानकारी दैनिक आधार पर सभी वार्डों से आती है और रियल टाइम में अपडेट की जाती है.’

इसी तरह के इरादे के साथ दिल्ली सरकार ने भी जून में एक एप लांच किया था-दिल्ली कोरोना-जो बेड की उपलब्धता पर रियल टाइम डाटा अपडेट करने के लिए बनाया गया था, लेकिन पोर्टल पहले दिन से ही बेमेल आंकड़ों को लेकर आरोपों के घेरे में है.

अव्यवस्थाओं को दूर किया गया

मुंबई ने अपना वार रूम स्थापित करने के लिए पीडब्ल्यूसी जैसे प्राइवेट प्लेयर की मदद ली.

भिडे ने बताया कि पारदर्शिता का मौजूदा स्तर हासिल करने के लिए उन्हें कई चुनौतियों से निपटना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘हमने खुद को इसमें पूरी तरह शामिल किया. शुरू में हम अपने खुद के डाटा को लेकर निश्चिंत नहीं थे. लैब डाटा भी सही तरह से उपलब्ध नहीं था, पते गलत थे. हमने सारी अव्यवस्थाओं को दूर किया.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अभी भी कुछ मसले सामने आते रहते हैं, लेकिन हम सभी सुझावों को स्वीकारने और उन पर अमल के लिए तैयार रहते हैं.’

भिडे ने कहा, हमारे अपने आगे बढ़ने के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘आंकड़े झूठ नहीं बोलते. डाटा को स्पष्ट रखना हमारे लिए महत्वपूर्ण है, ताकि हम जान सकें कि दिक्कत कहां पर है। इसके बिना हम स्थिति को नियंत्रित करने या मुद्दों को सुलझाने की स्थिति में नहीं होंगे’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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