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Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसआज मिल रहा घातक लड़ाकू राफेल विमान ऐसे बढ़ाएगा भारतीय वायुसेना की क्षमता

आज मिल रहा घातक लड़ाकू राफेल विमान ऐसे बढ़ाएगा भारतीय वायुसेना की क्षमता

राफेल को दुनिया के उत्कृष्ट लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है. अपनी एवियॉनिक्स, रडार और हथियार प्रणालियों के साथ यह दक्षिण एशिया का सबसे शक्तिशाली विमान है.

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नई दिल्ली: फ्रांस से लगभग 7,000 किमी की उड़ान भरकर बुधवार को अंबाला एयर स्टेशन पर पहुंचने वाले पांच राफेल लड़ाकू विमान 23 साल में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के शानदार युद्धक बेड़े में शामिल होने वाली पहली विदेशी खेप होगी.

4.5 जेनरेशन वाले इस विमान, राफेल को दुनिया के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है और इसे एक ‘बहुआयामी’ विमान बताया जाता है जो एक ही उड़ान में कई अभियानों को अंजाम दे सकता है.

अपनी एवियॉनिक्स, राडार और हथियार प्रणालियों के साथ राफेल दक्षिण एशिया में सबसे शक्तिशाली विमान है, जो पाकिस्तान में इस्तेमाल होने वाले एफ-16 या यहां तक कि चीन के 5वीं पीढ़ी के युद्धक विमान जेएफ-20 से काफी आगे है, जिसकी युद्धक क्षमता देखना अभी बाकी है. अफगानिस्तान, माली, लीबिया, इराक और सीरिया के संघर्षों के दौरान इस्तेमाल किया गया राफेल अपनी युद्धक क्षमता साबित कर चुका है.

यद्यपि भारत ने 2016 में 36 राफेल लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया था, यह संख्या भारतीय वायुसेना के लिहाज से काफी कम है.

भले ही भारतीय वायुसेना में मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) 2.0 के तौर पर 114 लड़ाकू विमानों को शामिल करने के तैयारी चल रही है, लेकिन औपचारिक निविदा जारी होना बाकी होने के साथ यह प्रक्रिया अभी काफी धीमी है.

इन सबके बीच, 36 अतिरिक्त राफेल विमानों का शामिल करने पर बातचीत रक्षा क्षेत्र के गलियारों में लंबे समय तक चलती रही है.

राफेल में भारत के लिहाज से 13 खास बदलाव भी होंगे, जिन्हें 2022 में सारे विमानों की आपूर्ति पूरी होने के बाद इसमें इंटीग्रेट किया जाएगा. इसमें बढ़ाई जाने वाली सुविधाओं में इजरायल का हेलमेट-माउंटेड डिस्प्ले, लेह जैसे बेहद ठंडे और ऊंचाई वाले इलाकों में उड़ान भरने की क्षमता आदि शामिल हैं.

टेल नंबर आरबी 001 वाला पहला राफेल, जिसे पिछले साल अक्टूबर में फ्रांस में सौंपा गया था, सबसे आखिर में भारत आएगा क्योंकि सभी टेस्ट और इंटीग्रेशन उसी पर आजमाए जाएंगे.

ट्रेनर विमान की टेल पर ‘आरबी’ का आशय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल राकेश भदौरिया के नाम के शुरुआती अक्षरों से है. यह वायुसेना के उपप्रमुख के तौर पर राफेल सौदे को अंजाम देने के लिए उनके प्रति सम्मान जताने का एक तरीका है.

सिंगल-सीटर विमान में बीएस अंकित है जिसका आशय पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ से है.

राफेल भारतीय बेड़े में सातवीं तरह का लड़ाकू विमान

राफेल भारतीय वायुसेना के बेड़े में सातवीं तरह का लड़ाकू विमान होगा जो दुनिया की प्रमुख वायु सेनाओं की तुलना में एकदम अनूठा है.

भारतीय वायुसेना ने 2001 में पहली बार एमएमआरसीए की खरीद के लिए एक प्रस्ताव भेजा था-जिसके लिए 2012 में राफेल का चयन किया गया.

भारतीय वायुसेना मिराज 2000 को खरीदने की इच्छुक थी और फ्रांसीसी निर्माता, डसॉल्ट एविएशन ने इसे फ्रांस से लाकर भारत में असेंबल करने की व्यवस्था करने की पेशकश की थी. उस समय, एयरक्राफ्ट लाइन को बंद करके राफेल लड़ाकू जेट का रास्ता साफ करने का फैसला किया गया.

लेकिन भारतीय नौकरशाही तंत्र ने इस मामले में औपचारिक फैसले में देरी की और 2004 में मिराज 2000 का निर्माण करने के बजाये एमएमआरसीए के लिए वैश्विक निविदा मंगाने का फैसला किया गया.

2007 में कहीं जाकर वैश्विक अनुग्रह प्रस्ताव जारी किया जा सका, जिसमें 2012 में राफेल सफल प्रतिभागी के तौर पर उभरा.

प्रधानमंत्री मोदी ने 36 राफेल का सौदा किया

यद्यपि, सभी तकनीकी जरूरतों को परखने के बाद राफेल निर्माता डसॉल्ट एविएशन को यूरोफाइटर टाइफून के साथ सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में चुना गया, लेकिन बाद में बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला.

यह पूरा सौदा मूल्य निर्धारण की बात पर आकर अटक गया क्योंकि सरकार संचालित हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), जिसे स्थानीय स्तर पर विमान का निर्माण करना था, ने लड़ाकू विमान बनाने के लिए 2.57 गुना अधिक मानव-घंटे का हवाला दिया. इसका मतलब था कि प्रत्येक विमान की कीमत फ्रांस की तरफ से बताए गए दाम की तुलना में काफी ज्यादा पड़ती.

इसके अलावा, फ्रांसीसी कंपनी ने एचएएल द्वारा निर्मित विमानों की गारंटी लेने से इनकार कर दिया था.

एक अन्य मुद्दा यह था कि डसॉल्ट एविएशन ने यूरोफाइटर की तुलना में अपने कोटेशन में विमान की सारी लागतों का जिक्र नहीं किया था, जिसमें यहां तक कि हथियारों की लागत भी शामिल थी.

2014 में जब तक नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई, तब तक एमएमआरसीए पर बातचीत बिना किसी निष्कर्ष के अटकी हुई थी.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, जनवरी 2015 में भारत ने पहली बार फ्रांस से यह जानने के लिए संपर्क किया था कि क्या दोनों सरकारों के स्तर पर कुछ कम संख्या में विमानों की खरीद के लिए सौदा हो सकता है जिन्हें डिजाइन में बिना किसी बदलाव के खरीदा जाएगा.

इसके बाद दोनों देशों की सरकार और दसॉल्ट एविएशन के बीच काफी सक्रियता से बातचीत हुई. अप्रैल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस की यात्रा की, तो उड़ान भरने के लिए पूरी तरह तैयार स्थिति में 36 राफेल जेट खरीदने की एक बड़ी योजना की घोषणा की. यह सौदा अंतिम रूप से तय होने में करीब 18 महीने का समय लगा.

राफेल की खासियत

3,700 किमी की क्षमता के साथ, खाली राफेल का वजन 10-टन है. इसमें 14 हार्ड प्वाइंट हैं जिसमें से पांच हार्ड प्वाइंट टैंक और भारी आयुध ले जाने में सक्षम हैं. इसकी कुल एक्सटर्नल कैपेसिटी 9.5 टन है, जिसका मतलब है कि यह अपने वजन के बराबर ही पेलोड उठाने में सक्षम है.

यह अधिकतम 24.5 टन भार के साथ उड़ान भर सकता है और यह लड़ाकू विमान आंतरिक स्तर पर 4.7 टन ईंधन और बाहरी स्तर पर 6.6 टन ईंधन ले जा सकता है.

यह ध्वनि की गति से लगभग दोगुनी अधिकतम रफ्तार के साथ ड्रैग-शूट के बिना भी 450 मीटर लैंडिंग ग्राउंड पर उतर सकता है.

राफेल के हथियार असली गेमचेंजर

भारतीय वायुसेना के लिए सबसे बड़ी ताकत राफेल की हथियार-वहन क्षमता है, जिसे नाभिकीय हथियार ढोने वाले के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

राफेल में लगी 20 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली हवा से हवा में मार करने में सक्षम मीटियोर मिसाइल ऑन बोर्ड गेम-चेंजिंग मिसाइल है.

यूरोपीय कंपनी एमबीडीए द्वारा निर्मित, मीटियोर रैम जेट युक्त एक लंबी दूरी का रॉकेट है, और राफेल हथियार प्रणाली में इसे शामिल किए जाने हवा से हवा में मार करने के प्रतिमान एकदम बदल जाते हैं क्योंकि 120 किलोमीटर तक जीरो इस्केप किल डिस्टेंस के साथ इसकी मारक क्षमता 150 किमी से अधिक की है.

इसका मतलब यह है कि भारतीय राफेल विमान भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के उल्लंघन बिना 100 किमी से अधिक दूरी पर दुश्मन के विमान को मार गिराने में सक्षम है.

मीटियोर जितना घातक हथियार न तो पाकिस्तान और न ही चीन के पास है.

राफेल पर एक अन्य अहम मिसाइल लगी है 40 करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाली हवा से जमीन पर मार करने वाली लंबी दूरी की स्कैल्प क्रूज मिसाइल.

1,300 किलोग्राम वजन वाली, 5.1 मीटर लंबी स्कैल्प को राफेल पर एक मिसाइल या दो मिसाइल के कंफिगरेशन में ले जाया जा सकता है.

इस मिसाइल की मारक क्षमता 600 किलोमीटर है और अपने सटीक निशाने के लिए ख्यात है. राफेल को दुश्मन के इलाके में करीब 600 किलोमीटर अंदर तक लक्ष्य पर निशाना साधने के लिए भारतीय वायु क्षेत्र के पार नहीं जाना पड़ेगा.

यह एक रणनीतिक हथियार है जिसका उपयोग पेनेट्रेशन, इम्पैक्ट या एयरबर्स्ट मोड में किया जा सकता है, और यहां तक कि बिना पहुंच वाले और प्रतिबंधित क्षेत्र जैसी परिस्थितियों में भी हमले करने में सक्षम है.

चीन के साथ जारी तनाव के बीच जल्द नए राफेल विमान को तैनात करने की कोशिश के तहत भारतीय वायुसेना ने आपातकालीन खरीद के तहत सटीक लक्ष्य भेदने वाली फ्रेंच हैमर एयर-टू-ग्राउंड हथियार प्रणाली का विकल्प चुना है.

आईएएफ ने इस प्रणाली को 2019 में बालाकोट हवाई हमलों में इस्तेमाल इजरायली स्पाइस 2000 के मद्देनजर आठ साल पहले खारिज कर दिया था.

करीब एक करोड़ रुपये की लागत वाली हैमर प्रणाली बेहद चुस्त और हथियार क्षमता बढ़ाने में दक्ष है, जिसमें एक गाइडेंस किट और विभिन्न प्रकार के मानक वाले बमों के लिए उपयुक्त रेंज एक्सटेंशन किट शामिल है.

मूल योजना के तहत राफेल को स्पाइस 2000 किट से लैस किया जाना था, जिसे भारतीय वायुसेना के बेड़े में पहले से ही शामिल अन्य फ्रांसीसी विमानों-मिराज 2000-में इंटीग्रेट किया जा चुका है.

स्पाइस 2000 को राफेल विमान में इंटीग्रेट करने की जरूरत है. स्पाइस की लागत और इंटीग्रेशन व टेस्टिंग की पूरी प्रक्रिया में लगने वाले समय को देखते हुए भारतीय वायु सेना ने हैमर लेना बेहतर समझा.

राफेल हवा से हवा में मार करने वाली माइका मिसाइलों से भी लैस होगा. वायुसेना की योजना राफेल में भारत-रूस संयुक्त उपक्रम के तहत निर्मित हो जाने पर ब्रह्मोस एनजी मिसाइलों को लगाने की भी है.

रडार और सेंसर

भारत को मिलने वाले राफेल में आम तौर पर भारतीय बेड़े के सभी विमानों में इस्तेमाल होने वाली इजरायली सेंसर प्रणाली लाइटनिंग पॉड लगी है, न कि फ्रांस में इस्तेमाल की जाने वाली थेल्स टेलीओस लेजर डेजिगनेटर पॉड.

राफेल आरबीई2 एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड राडार के साथ आता है, जिसकी यदि पारंपरिक एंटिना वाले राडार से तुलना की जाए तो यह एक साथ कई लक्ष्यों का जल्द पता लगाकर और उन्हें ट्रैक करके परिस्थितियों के बारे में अभूतपूर्व स्तर की जानकारी उपलब्ध कराता है.

राफेल में ‘फ्रंट सेक्टर ऑप्ट्रोनिक्स’(एफएसओ) प्रणाली भी है, जो कि ऑप्ट्रोनिक वेवलेंथ में ऑपरेट करने के दौरान राडार को जाम होने से बचाती है.

यह स्पेक्ट्रा-इंटीग्रेटेड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट के साथ आता है जो इंफ्रारेड, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और लेजर खतरों का लंबी दूरी से ही पता लगा लेता है और उनकी पहचान करके स्थानीय स्तर तक सीमित कर देता है.

डिफेंस कांट्रैक्टर थेल्स के साथ यह सिस्टम विकसित करने वाले एमबीडीए के अनुसार, इस प्रणाली में खतरों का पता लगाने के लिए राडार, लेजर और मिसाइल वार्निंग रिसीवर और एक चरणबद्ध तरह से काम करने वाला राडार जैमर और खतरों का मुकाबला करने के लिए डिकॉय डिस्पेंसर शामिल किया गया है.

राफेल की कीमत

7.878 बिलियन यूरो के राफेल सौदे की कीमत के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है.

2019 के आम चुनावों से पहले लड़ाकू विमानों की कीमत को लेकर जबर्दस्त राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था.

ट्रेनर एयरक्राफ्ट के लिए वनीला प्राइस (मूल विमान) लागत एक सिंगल सीटर के लिए लगभग 91 मिलियन यूरो और टू-सीटर के लिए लगभग 94 मिलियन यूरो है, जो कुल मिलाकर लगभग 3.42 बिलियन यूरो होगी. हथियारों की कीमत लगभग 710 मिलियन यूरो है, जबकि भारत के लिहाज के किए गए विशेष बदलावों की लागत लगभग 1,700 मिलियन यूरो है.

सिमुलेटर सहित 36 लड़ाकू जेट विमानों के लिए आपूर्ति की कीमत लगभग 1,800 मिलियन यूरो है, जबकि परफॉर्मेंस-बेस्ड लॉजिस्टिक लागत करीब 353 मिलियन यूरो आएगी.

परफॉर्मेंस-बेस्ड लॉजिस्टिक करार के तहत 75 फीसदी राफेल हर समय संचालन के लिए उपलब्ध होना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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