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Thursday, 21 November, 2024
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एम्स का अध्ययन- बुखार कोविड का प्रमुख लक्षण नहीं, इस पर ध्यान दिया तो मामलों का पता लगाने में चूकेंगे

मार्च और अप्रैल में एम्स नई दिल्ली में भर्ती 144 मरीजों पर किया गया अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित किया गया.

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नई दिल्ली: इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक बुखार को प्रमुख लक्षण मानकर सिर्फ इसी पर सबसे ज्यादा ध्यान देने से कोविड-19 के तमाम मामलों का पता लगाने में चूक हो सकती है.

उत्तर भारत में कोविड-19 के पुष्ट मामलों वाले 144 मरीजों, जो सभी देश के सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में भर्ती हुए थे, पर किया गया यह अध्ययन गुरुवार को प्रकाशित हुआ है.

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया समेत 29 शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन का शीर्षक ‘क्लीनिको-डेमोग्राफिक प्रोफाइल एंड हॉस्पिटल आउटकम ऑफ कोविड-19 पेशेंट एडमिटेड एट ए टर्शरी केयर सेंटर इन नार्थ इंडिया’ है और इसमें 23 मार्च से 15 अप्रैल के बीच भर्ती मरीजों से जुड़ा डाटा इस्तेमाल किया गया है.

अध्ययन में शामिल इन 144 मरीजों में 93 फीसदी (134) पुरुष थे. दस मरीज विदेशी नागरिक थे.

क्या दिखे लक्षण

अध्ययन में बताया गया है, ‘केवल 17 फीसदी मरीजों को बुखार की शिकायत थी, जो कि दुनियाभर की अन्य रिपोर्ट की तुलना में काफी कम है, जिसमें चीन की वह रिपोर्ट भी शामिल है. जिसके मुताबिक 44 फीसदी लोगों को शुरू में बुखार आया जबकि अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान 88 फीसदी बुखार से पीड़ित हुए.

अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर सिम्पटमैटिक मरीजों में नाक बंद होने, गले में खराश और सर्दी-खांसी जैसे श्वसन तंत्र से जुड़े मामूली लक्षण ही नजर आए, जो कि अन्य अध्ययनों में शामिल लक्षणों से काफी अलग स्थिति है.

इसमें कहा गया है कि मरीजों का एक बड़ा हिस्सा, करीब 44 फीसदी, भर्ती होने के समय एसिम्पटमैटिक था, और ‘अस्पताल में इलाज कराने के दौरान पूरे समय ऐसा ही रहा’. यह बहुत ही चिंता की बात है क्योंकि ये एसिम्पटमैटिक मरीज सामुदायिक स्तर पर वायरस के वाहक और संक्रमण फैलाने वाले हो सकते हैं.’

इसमें मरीजों की प्रकृति विशेष रूप से ऐसी बताई गई है कि ये ‘युवा उम्र के, इनमें से ज्यादातर एसिम्पटमैटिक, पीसीआर टेस्ट में लंबे समय तक निगेटिव नतीजे वाले थे और इनके लिए इंटेंसिव केयर यूनिट की कम ही जरूरत पड़ी.’

भीड़भाड़, घरेलू यात्राएं संक्रमण का कारण

अध्ययन में कहा गया है कि घरेलू स्तर पर संक्रमण प्रभावित जगहों की यात्रा करने के साथ-साथ भीड़भाड़ वाली जगह में कोविड-19 मरीजों के नजदीकी संपर्क में आना सबसे बड़े कारण के तौर पर सामने आया है.


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इसके मुताबिक, ‘हमारे ज्यादातर मरीज कोविड-19 हॉटस्पॉट के तौर पर चिह्नित जगहों में सार्वजनिक एकत्रीकरण का हिस्सा थे जिसमें मुख्यत: पुरुष शामिल हुए, और मरीजों की पहचान सक्रिय स्क्रीनिंग के कारण हुई.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘दो मरीज स्वास्थ्यकर्मी थे जो कोविड-19 मरीजों के इलाज में लगे थे और एक अन्य सरकारी अधिकारी था जो अपने कामकाज के सिलसिले में कोविड-19 मरीज के संपर्क में आया. यह महामारी की मौजूदा स्थिति के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं और प्रशासनिक कार्यों से जुड़े जोखिम को दर्शाता है.’

उम्र, लिंग और स्मोकिंग से कोई संबंध नहीं

इन कुल 144 मरीजों में चार (2.8 फीसदी) गंभीर रूप से कोविड-19 से पीड़ित थे, जबकि बाकी 140 (97.2 फीसदी) को हल्के से मध्यम श्रेणी तक का संक्रमण था.

भर्ती किए जाने के समय केवल 16 (11.1 फीसदी) मरीजों में बुखार के लक्षण थे. अध्ययन में बीमारी की गंभीरता का उम्र, लिंग, स्मोकिंग की आदत, टीएलसी (फेफड़ों की क्षमता) ग्रेडिंग या लिम्फोपेनिया से ‘कोई विशेष संबंध नहीं’ पाया गया.

‘हालांकि, अध्ययन में बीमारी की गंभीरता और न्यूट्रोफिल टू लिम्फोसाइटी रेशियो के बीच जरूर अहम संबंध मिला.’ एन-एल रेशियो का इस्तेमाल शरीर में ज्वलनशीलता की स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है.

मृत्युदर का स्तर काफी कम-1.4 फीसदी- दर्ज किया गया, 144 में से केवल दो मरीजों की मौत हुई. दोनों को ही गंभीर स्तर का संक्रमण हुआ था.

इलाज का तरीका

अध्ययन में बताया गया, ‘ज्यादातर मरीजों को सपोर्टिव केयर और सांकेतिक तौर पर इलाज की ही जरूरत पड़ी.’ प्रमुख रूप से एंटीहिस्टमाइन, विटामिन सी और पैरासिटामाल जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया गया.


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29 मरीजों को एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन प्रेस्क्राइब की गई जबकि 27 मरीजों को मलेरिया रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई. 11 मरीजों को ये दोनों ही दवाएं दी गईं.

अध्ययन के मुताबिक, ‘केवल एक मरीज को मैकेनिकल वेंटिलेशन की जरूरत पड़ी. पांच मरीजों को ऑक्सीजन सप्लीमेंट देना पड़ा. किसी भी मरीज के लिए नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन या हाई-फ्लो नेजल कैनुला का इस्तेमाल नहीं किया गया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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4 टिप्पणी

  1. मन से डर निकल जाएगा…. अच्छी रिसर्च है।
    बस इसमें जो दो लोगो की मौत हुई थी उनका संक्रमण क्यों ज्यादा था यह नहीं बताया गया….
    इसमें जरूर देखना चाहिए था कि जब संक्रमण हुआ उस समय या उसके पहले खान पान रहन सहन की क्या स्थिति थी?

  2. No effects of smoking ?
    Something is wrong with the study. Smoking increases free radicals, diminishes immunity, deteriorates lungs capacity and provides suitable conditions to harmful microbes. How can one say that smoking has not significant effects and is not one of the cofactors to invite viruses?

  3. कयास लगते रहे कोरोना बढ़ता गया
    इलाज़ करते रहे मर्ज़ बढ़ता गया, गोया किसी फूट गये बाँध से बहती विशाल जलराशि जिसमें जलमग्न हो गयी हो आसपास की धरती । सारी हिकमतें धरी की धरी रह गयीं ।
    फ़्लाइट्स बंद, रेल बंद, बस बंद… ठहर गयी दुनिया । क़यास लगते गये, उपाय बढ़ते गये, रायता फैलता गया ।
    फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग, लॉक डाउन, Quaranitine, वेंटीलेटर, क्लोरोरोक्वीन फ़ॉस्फ़ेट, रेमडेसिविर, फ़ेबीफ़्लू, फ़ेवीलाविर और वैक्सीन ट्रायल्स से होते हुये प्रोटीन रिच डाइट, नीबू पानी, त्रिकटु चूर्ण, अश्वगंधा, सोंठ, लौंग, कालीमिर्च, स्टार एनिस …और आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट पर आ कर ठहर गयी दुनिया । पिछले सात महीनों से ठहरी हुयी दुनिया को फिर-फिर चलाने के प्रयास होते रहे हैं । इस बीच नोवेल कोरोना वायरस ने लाख विरोध के बाद भी दुनिया के लगभग हर देश में अपनी सरकार बना ही ली । रपट पड़े तो हर गंगा की तर्ज़ पर भारत के लोगों ने भी आख़िरकार कोरोना के साथ ही रहने का मूड बना लिया है ।
    भारत में अवैध घुसपैठियों का विरोध होता रहता है, घुसपैठिये अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक होते रहते हैं और फिर एक दिन अपनी सरकार भी बना लेते हैं । पता नहीं किसने भारत के जनजीवन में व्याप्त यह सुलभता कोरोना को बता दी । कोरोना भी आ गया, पहले अल्पसंख्यक होकर आया और अब बहुसंख्यक होकर दहशत फैलाने लगा है ।
    मोतीहारी वाले मिसिर जी का तो साफ कहना है – “जंगली बिल्ली को शेर बनाकर पेश करने से न जाने कब बाज आयेंगे लोग! अच्छा चलो शेर ही सही पर उसे भी थोड़े से प्रयास से पकड़ने की अपेक्षा न्यूक्लियर बम से उड़ाने की योजना बनाने का क्या औचित्य?”

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