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Friday, 22 November, 2024
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ज़ाइडस कैडिला के चेयरमैन पंकज पटेल ने कहा- 2021 के शुरू में आ सकती है मेड इन इंडिया कोविड वैक्सीन

दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में ज़ाइडस कैडिला के अध्यक्ष पंकज आर पटेल ने कहा है कि कंपनी ने पहले और दूसरे फेज़ के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए वैक्सीन कैंडिडेट के क्लीनिकल बैचेज़ पहले ही बना लिए हैं.

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नई दिल्ली: अहमदाबाद स्थित फार्मास्यूटिकल फर्म ज़ाइडस कैडिला ने कहा है कि कोरोनावायरस के खिलाफ देश में ही विकसित इसकी वैक्सीन अगले साल के शुरू में लॉन्च की जा सकती है.

दिप्रिंट को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में ज़ाइडस कैडिला के अध्यक्ष पंकज आर पटेल ने कहा, ‘ट्रायल्स के नतीजों के हिसाब से हमें संभावना लग रही है कि अगले साल के शुरू में हमारी वैक्सीन जाइकोव-डी लॉन्च के लिए तैयार हो जाएगी.

जाइकोव-डी, जो एक प्लाज़्मिड डीएनए वैक्सीन है. अहमदाबाद में कंपनी के वैक्सीन टेक्नोलॉजी सेंटर (वीटीसी) में विकसित की जा रही है.

फर्म ने 15 फरवरी को कोविड-19 के लिए अपने वैक्सीन डेवलपमेंट कार्यक्रम के बारे में ऐलान किया था.

पटेल ने कहा, ‘वैक्सीन कैंडिडेट ने कामयाबी के साथ जानवरों पर अपनी प्री-क्लीनिकल टेस्टिंग पूरी कर ली है और उसे ड्रग कंट्रोलर जनलर ऑफ इंडिया रिव्यू कमेटी ऑन जिनेटिक मैनिपुलेशन (आरसीजीएम),और कसौली स्थित सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी (सीडीएल) से इंसानों पर पहले और दूसरे फेज़ के ट्रायल्स की मंज़ूरी मिल गई है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘कंपनी देश भर में फैली बहुत सी क्लीनिकल साइट्स से एक हज़ार से अधिक लोगों को पंजीकृत कर रही है.’

कंपनी ने पहले और दूसरे फेज़ के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए वैक्सीन कैंडिडेट के क्लीनिकल बैचेज़ बना लिए हैं. पटेल ने कहा, ‘पहले और दूसरे फेज़ के क्लीनिकल ट्रायल्स के तीन महीने में पूरा हो जाने की संभावना है.’

तीसरा फेज़ शुरू करने से पहले ज़ाइडस इन ट्रायल्स के नतीजे रेगुलेटर्स के सामने पेश करेगी.

ज़ाइडस की जाइकोव-डी के अलावा आईसीएमआर समर्थित भारत बायोटेक की कोवैक्सीन देश में ही विकसित हुई एक और वैक्सीन कैंडिडेट है. आईसीएमआर के निर्देशों पर कोवैक्सिन के ट्रायल्स में तेज़ी लाई जा रही है और इसे 15 अगस्त को लॉन्च करने का लक्ष्य है.


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इस बारे में टिप्पणी के लिए पूछे जाने पर पटेल ने सिर्फ इतना कहा, ‘हम इस पर कुछ नहीं कहना चाहेंगे.’

जाइकोव-डी कैसे काम करती है

ज़ाइडस कैडिला ने प्रमुख वायरल मेम्ब्रेन प्रोटीन के ख़िलाफ एक ‘डीएनए वैक्सीन’ विकसित की है, जो कोरोनावायरस के सेल्स के अंदर घुसने के लिए ज़िम्मेदार होता है.

पटेल ने समझाया, ‘प्लाज़्मिड डीएनए को मेज़बान सेल्स में दाख़िल किया जाता है, जहां ये वायरल प्रोटीन में तब्दील हो जाता है और इंसान के इम्यून सिस्टम के सेलुलर और ह्यूमोरल आर्म्स की मध्यस्थता से एक मज़बूत इम्यून रेस्पॉन्स खींचता है. बीमारी से बचाने और वायरल क्लियरेंस में ये एक अहम भूमिका निभाता है.’

प्लाज़्मिड डीएनए ‘एक छोटा बेक्टीरियल, गोल और एक्सट्राक्रोमोज़ोमल डीएनए है, जो जिनेटिक इंजीनियरिंग में इस्तेमाल होता है.

इसके अंदर ख़ुद से दोहराने की एक अनोखी विशेषता होती है, जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल ‘अलग-अलग मॉलिक्युलर जिनेटिक रिसर्च जैसे जीन थिरेपी, जीन ट्रांसफर और रीकांबिनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी’ में किया जा सकता है.

ज़ाइडस का दावा है कि 2010 में, वो भारत की पहली कंपनी थी, जिसने स्वाइन फ्लू के खिलाफ देश में ही विकसित और निर्मित टीका तैयार किया था. इसका ये भी दावा है कि ये देश की पहली कंपनी है, जिसने टेट्रावैलेंट सीज़नल इंफ्लुएंज़ा वैक्सीन को देश में ही विकसित करके व्यवसायिक किया था.

विस्तार से बताते हुए पटेल ने कहा, ‘कंपनी की दूसरी वैक्सीन्स की भी एक मज़बूत पाइपलाइन है, जैसे मीज़ल्स-मंप्स-रुबैला-वैरिसेला (एमएमवीआर), ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन, हेपेटाइटिस-ए, हेपेटाइटिस-ई वैक्सीन्स, जो विकास के अलग अलग दौर में हैं.’

‘जाइकोव-डी में नई टेक्नोलॉजी’

पटेल ने ये भी कहा कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट जाइकोव-डी-डी, को, नई टेक्नोलॉजी से विकसित किया गया है.

पटेल ने कहा, ‘वैक्सीन के विकास के लिए हमारे पास नई टेक्नोलॉजी है, जो डीएनए प्लेटफॉर्म पर आधारित है. डीएनए पर आधारित वैक्सीन को किसी कोविड स्ट्रेन की ज़रूरत नहीं पड़ती, जबकि दूसरी इन-एक्टिवेटेड वैक्सीन्स में मृत या निष्क्रिय किए गए वायरस की ज़रूरत होती है.’

कंपनी का दावा है कि वैक्सीन में कोई संक्रामक एजेंट न होने की वजह से, इसे जैव सुरक्षा की कम से कम आवश्यकताओं के साथ, आसानी से बनाया जा सकता है.

पटेल ने समझाया, ‘देखा गया है कि प्लेटफॉर्म (टेक्नोलॉजी) वैक्सीन की स्थिरता में काफी सुधार करता है और कोल्ड चेन की ज़रूरतों को कम करता है, जिससे इसे देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में आसानी से भेजा सकता है.’

उन्होंने ये भी कहा कि ‘अगर वायरस में कोई बदलाव आता है, तो उनके द्वारा इस्तेमाल की जा रही टेक्नोलॉजी से, दो हफ्ते के अंदर वैक्सीन में भी बदलाव किया जा सकता है, ताकि ये सुरक्षा करती रहे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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