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Thursday, 19 September, 2024
होमदेशकर्मचारियों के कोविड पॉजिटिव मिलने पर बिहार में गैर-कोविड मरीजों के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद

कर्मचारियों के कोविड पॉजिटिव मिलने पर बिहार में गैर-कोविड मरीजों के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद

बिहार भर में तमाम निजी स्वास्थ्य सुविधाएं उनके कर्मचारियों या मरीजों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद बंद कर दी गई हैं. कुछ मामलों में मरीजों को इलाज कराने से पहले कोविड टेस्ट कराने को कहा जा रहा है.

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पटना : कोविड-19 महामारी न केवल सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों बल्कि निजी क्लीनिकों और अस्पतालों को भी खासा प्रभावित कर रही है, जो अपने कर्मचारियों या मरीजों के पॉजिटिव पाए जाने के कारण बंद हो गए हैं. इससे अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज भी प्रभावित हो रहा है.

कुछ शहरों में सर्दी-खांसी के मरीजों को कोविड पॉजिटिव होने की आशंका के मद्देनजर निजी स्वास्थ्य केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. कई डॉक्टर तो मरीजों से कह रहे हैं कि अगर उन्हें इलाज कराना है, तो पहले अपना कोविड-19 टेस्ट कराकर आएं.

पटना के प्रमुख निजी अस्पतालों में से एक रुबेन हॉस्पिटल को एक हफ्ते पहले कुछ नर्सों के टेस्ट में कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद बंद कर दिया गया.

पूर्वी भारत का सबसे बड़ा धर्मार्थ कैंसर संस्थान महाबीर कैंसर संस्थान भी 16 जुलाई से इसी कारण बंद किया जा चुका है.

अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एलपी सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘परिसर में एकत्र होने वाली भीड़ (कैंसर रोगी और उनके रिश्तेदार) को संभालना मुश्किल हो गया था और हमारे कर्मचारियों और मरीजों के लिए कोविड-19 की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया था. पहले ही हमारे 60 कर्मचारी टेस्ट में पॉजिटिव पाए जा चुके हैं. अस्पताल परिसर से दूर एक रजिस्ट्रेशन काउंटर बना लेने के बाद ही हम इसे फिर से खोलेंगे.’

उन्होंने कहा कि कोविड के संकट के दौरान अस्पताल में हर दिन लगभग 600 मरीज आते रहे हैं.

निजी डॉक्टरों में डर

कोविड का डर राज्य में निजी डॉक्टरों के मन में इस कदर समा गया है कि जैसे ही उनका कोई स्टाफ या मरीज टेस्ट में पॉजिटिव निकलता है वे अपने क्लीनिक बंद कर देते हैं.

बिहार में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. ब्रजनंदन यादव ने दिप्रिंट से कहा, ‘डॉक्टर बिरादरी में भय का माहौल है. कुछ निजी क्लीनिक तो मरीजों से (इलाज के लिए आने से पहले) अपना कोविड-19 टेस्ट कराने के लिए कहने जैसी कड़ी सावधानियां बरत रहे हैं, जबकि अन्य गैर-आधिकारिक तौर पर अपनी सेवाएं बंद कर रहे हैं.’

यादव ने आगे कहा कि कोविड टेस्ट का बोझ इतना ज्यादा है कि पटना में एक निजी प्रयोगशाला को परिणाम देने में 5 से 20 दिन तक लग जाते हैं.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ राज्य की राजधानी में वायरस की आशंका से निजी स्वास्थ्य सुविधाएं बंद हो रही हैं.

बिहार में पटना के बाद कोरोना से दूसरे सबसे ज्यादा प्रभावित शहर भागलपुर, जहां 17 जुलाई तक 1,455 मामले दर्ज किए गए, में भी कई निजी अस्पताल और क्लीनिक बंद हो गए हैं.

भागलपुर में एक निजी अस्पताल चलाने वाले और शहर के पूर्व आईएमए प्रमुख डॉ. अमिताभ सिंह ने कहा, ‘भागलपुर में आधे से अधिक निजी अस्पताल और क्लीनिक बंद हो चुके हैं क्योंकि या तो डॉक्टर या कर्मचारी कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं. कोविड टेस्ट संभव न होने के कारण डॉक्टर ऑपरेशन करने में सक्षम नहीं हैं. किसी निजी लैब को टेस्ट के लिए लाइसेंस नहीं मिला है, और भागलपुर मेडिकल कॉलेज पर जरूरत से ज्यादा बोझ है.’


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प्रसिद्ध हिंदू और बौद्ध तीर्थ स्थल वाले गया में भी कई निजी स्वास्थ्य सुविधाएं बंद हो गई हैं.

गया के एक निवासी ने बताया, ‘डॉक्टर क्लीनिक के लिए बंद शब्द का इस्तेमाल नहीं करते. लेकिन उनके कर्मचारियों की तरफ से कहा जाता है कि डॉक्टर या तो बीमार हैं या शहर में नहीं हैं. अभी भी जो क्लीनिक खुले हैं वहां सर्दी-खांसी के मरीजों को प्रवेश की अनुमति नहीं है.

गया के आईएमए प्रमुख डॉ. राम सेवक प्रसाद ने कहा कि निजी डॉक्टर कोविड-19 संकट के दौरान काम करने के लिए कई तरह की मुश्किलों से जूझ रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘कई डॉक्टरों ने उसी समय सेवाएं बंद कर दीं जब उन्हें पता चला कि उनका कोई स्टाफ या कोई मरीज जिसका उन्होंने इलाज किया था पॉजिटिव पाया गया है.’

आईएमए के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बिहार के लगभग सभी जिलों और कस्बों में यही हाल है.

सत्तारूढ़ भाजपा के एक वरिष्ठ मंत्री ने नाम न देने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि उनके पास कई लोगों के कई फोन आए, जो निजी अस्पतालों में भर्ती कराने में मदद का आग्रह कर रहे थे.

राज्य में इस महीने कोविड के कारण एक निजी डॉक्टर सहित दो डॉक्टरों की मौत हो चुकी है. पैरामेडिकल स्टाफ के साथ कई अन्य संक्रमित भी हुए हैं.

पटना के एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने कहा, ‘मुझे इतना डर है कि अगर कोई मरीज बिना मास्क लगाए आता है तो उसे बाहर निकाल देता हूं. मैंने सख्त आदेश दे रखे हैं कि बिना मास्क पहने लोगों को परिसर में प्रवेश न करने दिया जाए.’

बिहार में कोविड की स्थिति

इस बीच, बिहार में कोविड-19 मामलों की संख्या 1 जुलाई की तुलना में बढ़कर दोगुने से अधिक हो गई है.

1 जुलाई को हर दिन 350 नए केस आने के साथ कुल संख्या 10,002 थी. उस समय राज्य में ठीक होने वाले मरीजों का आंकड़ा 77 प्रतिशत से अधिक था. लेकिन राज्य सरकार के आंकड़ों के ही मुताबिक तब से न केवल कुल संख्या बढ़कर 23,589 (शनिवार दोपहर तक) पर पहुंच गई है, बल्कि ठीक होने वाले मरीजों की दर भी गिरकर 65 प्रतिशत हो गई है.

शुक्रवार शाम को राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि पिछले 24 घंटों में लगभग 1,800 नए मामले दर्ज किए गए हैं.

राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, मामलों में तेजी से वृद्धि के बीच टेस्ट काफी धीमी गति से चल रहा है जो 1 जुलाई को 7,200 से बढ़कर 17 जुलाई को 10,000 तक पहुंचा. बिहार वह राज्य भी है जिसने देश में प्रति दस लाख आबादी पर सबसे कम टेस्ट किए हैं.

कोविड केस की संख्या तेजी से बढ़ने के बावजूद बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा सीमित ही है.

यद्यपि सरकार ने राज्य-संचालित सभी स्वास्थ्य सुविधाओं को कोविड मरीजों के निशुल्क इलाज का निर्देश दिया है लेकिन उनमें से अधिकांश में आईसीयू, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट की सुविधा नहीं हैं.

बिहार के पूर्व आईएमए प्रमुख यादव के मुताबिक, पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) जैसे मेडिकल हब में गंभीर कोविड मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त आईसीयू बेड नहीं हैं.

आईजीआईएमएस और पीएमसीएच और ज्यादा कोविड मरीजों को भर्ती करने को तैयार नहीं है और उन्हें एम्स, पटना रेफर करते हैं, जिसने मरीजों के अत्यधिक बोझ को लेकर नाराजगी जताई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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