नई दिल्ली: दिप्रिंट की मिली जानकारी के मुताबिक ब्रिटेन की दिग्गज फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ग्लोबल ट्रायल के क्रम में भारत में श्वसन संबंधी गंभीर समस्या से पीड़ित कोविड-19 मरीजों के इलाज में अपनी कैंसर की दवा एक्लाब्रुटिनिब का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने की तैयारी में है.
कैलक्वीन्स ब्रांड नाम वाली इस दवा को पिछले साल यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से कुछ तरह के कैंसर के इलाज में इस्तेमाल की मंजूरी दी गई थी. कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोकने वाली एक्लाब्रुटिनिब ब्रूट्स थायरोसिन काइनेस अवरोधक नामक एक चिकित्सा श्रेणी से संबंधित है, जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ाने वाले असामान्य प्रोटीन की क्रिया को रोकती है.
एस्ट्राजेनेका ने पिछले महीने पीयर-रिव्यूड जर्नल साइंस इम्यूनोलॉजी में घोषणा की थी कि दवा ‘ज्वलनशीलता के स्तर को घटाती है और गंभीर कोविड-19 मरीजों पर इसके इलाज का अच्छा असर दिखा है.’
कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, ‘गंभीर कोविड-19 मरीजों पर कैलक्वीन्स का इस्तेमाल का परीक्षण वैज्ञानिक रूप से सही दिशा में जाता है. कंपनी ने ‘उत्साहजनक प्रारंभिक डाटा’ के आधार पर वैश्विक परीक्षण के दूसरे चरण की शुरुआत की है.
भारत सरकार के क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआआई) के पोर्टल पर कंपनी की तरफ से अपलोड की गई जानकारी के अनुसार भारत के अलावा ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, रूस, स्पेन, स्वीडन और तुर्की में ये परीक्षण शुरू किए गए हैं.
यद्यिप वैश्विक स्तर पर परीक्षण के लिए सैंपल साइज 140 लोगों का है. सीटीआरआई के अनुसार, भारत में सैंपल साइज 60 मरीजों का है. कुल सैंपल साइज का 40 प्रतिशत से अधिक है.
दिप्रिंट ने देश में क्लीनिकल ऑपरेशन से जुड़े एस्ट्राजेनेका के निदेशक तपनकुमार एम. शाह से ईमेल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क किया. लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित करने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.
परीक्षण की स्थिति
एक्लाब्रुटिनिब का कोविड-19 ‘निमोनिया’ वाले मरीजों पर परीक्षण किया जा रहा है, जिसका ब्योरा रेडियोग्राफिक तौर पर तैयार किया जा सकता है. ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने या सप्लीमेंटल ऑक्सीजन देने की जरूरत होगी.
परीक्षण में शामिल लोगों को 10 दिनों तक रोज दो खुराक दवा खिलाई जाएगी. हालांकि, दवा के नतीजों का आकलन ‘मरीज के जीवित रहने की संभावना और सांस की बीमारी दूर होने’ के आधार पर 14 दिन के बाद किया जाएगा.
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने पिछले महीने भारत में दवा के दूसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी दी थी, जिसके बाद एस्ट्राजेनेका ने परीक्षण के तरीकों में कुछ बदलाव सामने रखे. दिप्रिंट को मिले बैठक के बिंदुवार ब्योरे के मुताबिक 9 जुलाई को डीसीजीआई के तहत परीक्षण के लिए मरीज चुने जाने संबंधी विशेषज्ञ समिति ने इसे अनुमोदित किया है.
सीटीआरआई के अनुसार एक्लाब्रुटिनिब का परीक्षण भारत में पांच जगह- दिल्ली में सफदरजंग अस्पताल और मैक्स अस्पताल (साकेत), अहमदाबाद स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज एंड सिविल हॉस्पिटल, मुंबई में टाटा मेमोरियल अस्पताल और कर्नाटक में विक्टोरिया अस्पताल/बैंगलोर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में किया जाएगा.
सीटीआरआई के अनुसार वैश्विक स्तर पर कंपनी ने मरीजों का नामांकन शुरू कर दिया है, लेकिन भारत में अभी अस्पतालों की आचार समितियां परीक्षण संबंधी प्रस्ताव की समीक्षा कर रही हैं, केवल मैक्स हेल्थकेयर ने अभी तक इसकी स्वीकृति दी है.
दिप्रिंट ने परीक्षण के तौर-तरीके और मरीजों के नामांकन संबंधी ब्योरे के लिए मैक्स हेल्थकेयर के प्रमुख इन्वेस्टीगेटर डॉ. अरुण दीवान से संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक ईमेल का कोई जवाब नहीं आया.
एक्लाब्रुटिनिब से क्यों बंधी हैं उम्मीदें?
एक्लाब्रुटिनिब का इस्तेमाल वयस्कों में कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है, जिनके पास पहले से ही कम से कम एक अन्य इलाज कीमोथेरेपी है. इसे आमतौर पर क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) और स्माल लिम्फोसाइटिक लिम्फोमा (एसएलएल) के मरीजों को दिया जाता है, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं में शुरू होता है.
दवा पर प्रकाशित साथी विशेषज्ञों के विश्लेषण के मुताबिक, इसे अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के 19 गंभीर मरीजों को दिया गया था. इन मरीजों में से 11 सप्लीमेंटल ऑक्सीजन पर थे, जबकि आठ मैकेनिकल वेंटिलेशन पर थे. इनमें एक को छोड़कर सभी मरीजों में ऑक्सीजन की क्षमता बढ़ गई थी.
विश्लेषण के मुताबिक, इलाज के 10 से 14 दिन के कोर्स के दौरान एक्लाब्रुटिनिब के इलाज से ज्यादातर मरीजों में ऑक्सीजनेशन की स्थिति सुधरी, खासकर एक से दिन के अंदर, और इससे किसी तरह का नुकसान भी नजर नहीं आया.
इसमें बताया गया, ‘लिम्फोपेनिया के साथ ऑक्सीनेशन में सुधार होते ही ज्वलनशीलता घटाने वाले-सी रिएक्टिव प्रोटीन और इंटरल्यूकिन-6 (आईएल-6)- जल्द ही ज्यादातर मरीजों में सामान्य हो गए.’
अध्ययन में पाया गया कि उपचार के अंत में 11 में से आठ मरीजों (72.7 प्रतिशत) को सप्लीमेंटल ऑक्सीजन से सामान्य कमरे में भेजा गया जबकि आठ में से चार मरीजों को मैकेनिकल वेंटिलेशन से हटाकर सप्लीमेंटल ऑक्सीजन पर रखा गया. बाद वाले समूह में से दो की स्थिति में ज्यादा बेहतर गति से सुधार हुआ और वह कमरे की सामान्य हवा में सांस लेने की स्थिति में आ गए.
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