नई दिल्ली: गतिरोध खत्म करने के लिए भारतीय और चीनी कोर कमांडरों के बीच मंगलवार को लद्दाख में 15 घंटे चली वार्ता के नतीजों पर विचार करने के लिए बुधवार को सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवाणे की उपस्थिति में कई उच्च स्तरीय बैठकें हुईं.
उसमें एक सरकार के उच्चाधिकार प्राप्त चाइना स्टडी ग्रुप (सीएसजी) द्वारा की गई ‘समीक्षा बैठक’ थी. यह पैनल, जिसमें सशस्त्र बलों और खुफिया कर्मियों के अलावा शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं, चीन संबंधी नीतियों पर कार्यपालिका के सलाहकार के तौर पर काम करता है.
शीर्ष रक्षा सूत्रों ने बताया कि सीएसजी की बैठक में जनरल नरवाणे, नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाई.के. जोशी और 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह शामिल हुए.
लेफ्टिनेंट जनरल सिंह लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हालिया तनाव घटाने के लिए 6 जून से लेकर अब चीन के साथ आयोजित सभी कोर कमांडर-स्तरीय बैठकों में भारत के प्रतिनिधि रहे हैं, जिसमें चीन के दूत के तौर पर साउथ शिनजियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट के कमांडर मेजर जनरल लिन लियू शामिल हुए.
इनमें से आखिरी बैठक पैंगांग झील और देपसांग मैदानों से सेना के पीछे हटने को लेकर जारी असहमति को दूर करने के लिए मंगलवार को आयोजित की गई थी. माना जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच टकराव वाली दो अन्य जगहों गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग्स के संबंध में भी कुछ सहमति बनी है.
बुधवार को हुई दूसरी बैठक में जनरल नरवाणे और सेना के अन्य अधिकारी शामिल थे.
जनरल नरवाणे और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शुक्रवार को लद्दाख जाने वाले हैं, जहां वे सैनिकों के साथ बातचीत करेंगे और जमीन हालात का जायजा लेंगे.
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‘सैन्य वापसी की प्रक्रिया धीमी’
मंगलवार सुबह 11 बजे शुरू हुई बैठक बुधवार को तड़के दो बजे तक चलती रही थी.
चीनी विदेश मंत्रालय ने मंगलवार की बैठक का हवाला देते हुए बुधवार को बताया कि दोनों पक्ष तनाव घटाने के लिए सीमा पर सैनिकों को और पीछे हटाने की प्रक्रिया को लेकर सहमति के करीब पहुंचे हैं.
हालांकि, सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि क्षेत्र के कठोर सर्द मौसम के बीच एलएसी पर चल रही सैन्य वापसी की प्रक्रिया ‘बहुत धीमी है और अगले कई महीनों तक जारी रहेगी.’
सूत्रों ने कहा कि यह रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) के बुधवार को आपात स्थिति में खरीद के लिए समयसीमा कम करने के तरीकों पर चर्चा करने की एक बड़ी वजह हो सकती है.
एक सूत्र ने कहा, ‘विभिन्न स्तरों पर बातचीत जारी रहेगी, जबकि जमीनी स्तर पर सैनिकों की योजना लंबी सर्दियों के मद्देनजर तैयारी में जुटे रहना है.’
सूत्र ने आगे कहा, ‘सीमा रेखा के बिंदुओं पर हर देश के दावे पर चर्चा जारी रहेगी और यह संभावना नहीं है कि भारत अप्रैल से पहले तैनाती वाले ठिकानों को लेकर अपने रुख से पीछे हटे.’
समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि सेना जल्द ही एलएसी पर तैनात 30,000 से अधिक सैनिकों के लिए अत्यधिक ठंडे मौसम में कारगर टेंट के लिए इमरजेंसी ऑर्डर देगी.
भारत सरकार की तरफ से मिली आपातकालीन वित्तीय सहायता के तहत इजरायल से हेरोन निगरानी ड्रोन और स्पाइक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों का ऑर्डर देने की योजना भी बना रहा है.
सूत्रों के अनुसार, सैन्य वापसी प्रक्रिया के तहत सेना चीन के साथ आगे किसी टकराव को टालने के लिए कुछ पेट्रोलिंग प्वाइंट निर्धारित करने में लगी है, साथ ही दूरी से जुड़ी नियमों में भी बदलाव किया जा रहा है.