नई दिल्ली: बोर्ड नतीजे आने के बाद से दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), गामा- 2, ग्रेटर नोएडा के मोहम्मद ज़ैद हसन के पिता फूले नहीं समा रहे. नोएडा स्थित जेपी हॉस्पिटल ने न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर केएम हसन के लिए गर्व की बात है कि उनके बेटे ज़ैद ने संस्कृत में 100 में 100 अंक हासिल किए हैं और उन्हें 500 में से 487 नंबर आए हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘भाषा और साहित्य के मामले में ज़ैद को हिंदी, संस्कृति और विदेशी भाषाओं जैसे विकल्प के बीच चुनाव करना था. इसने संस्कृत चुना और करिश्मा कर दिखाया.’ उन्होंने कहा कि उनके बड़े बेटे मुहम्मद युसूफ़ हसन (19) ने भी अपने बोर्ड के दौरान संस्कृत में काफ़ी अच्छा किया था.
युसूफ़ ने ही अपने भाई को सलाह दी थी कि वो संस्कृत ले. छोटे भाई ज़ैद को सलाह ये कहकर दी गई थी कि संस्कृत काफ़ी स्कोरिंग सब्जेक्ट है. बच्चों के पिता ने जानकारी दी कि युसूफ हसन आईआईटी गांधीनगर से बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि, डॉक्टर हसन को इसका मलाल है कि अभी के दौर में संस्कृति और उर्दू जैसी भाषाएं अपनी अहमियत खोती जा रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारे दौर में संस्कृति की बहुत अहमियत नहीं रह गई है. उर्दू का भी वही हाल था. इन भाषाओं में भविष्य बनाने का कोई विकल्प नहीं है.’ उन्होंने बताया कि बड़े भाई की तरह ज़ैद इंजीनियर बनना चाहता है. इस भाषा की पढ़ाई उसने शौकिया तौर पर की.
डॉक्टर हसन ने स्कूल की भी काफ़ी तारीफ़ की और कहा कि यहां शिक्षक बहुत अच्छे हैं और अच्छे शिक्षक होने का बहुत फ़र्क पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘ज़ैद के संस्कृत के शिक्षक का नाम सुधाकर मिश्रा है. वो ना सिर्फ़ बहुत अच्छे शिक्षक बल्कि बहुत अच्छे आदमी भी हैं. उनके बग़ैर ये संभव नहीं होता.’
झिझक के मारे ज़ैद मीडिया से बात नहीं कर रहे. ज़ैद के संस्कृत के शिक्षक सुधाकर मिश्रा बिहार के सीतामढ़ी से हैं. उन्होंने दिप्रिंट से फ़ोन पर बातचीत में कहा कि इसका पूरा क्रेडिट ज़ैद की मेहनत को जाता है. उन्होंने भी स्वीकार किया कि संस्कृत को लेकर और प्रयास किए जाने की दरकार है.
ज़ैद की मां नजीया हसन बच्चों की डॉक्टर हैं. डॉक्टर हसन ने कहा, ‘ये विज्ञान और तकनीक का दौर है लेकिन हमारे लिए भाषा और साहित्य पढ़ना भी उतना ही ज़रूरी है. बेहतर इंसान बनने में ये हमारी मदद करता है.’
ज़ैद की इस उपलब्धि पर विद्यालय प्रधानाचार्या श्रीमती संध्या अवस्थी ने बधाई देते हुए कहा कि ज़ैद ने जो कर दिखाया है हमें उसपर गर्व है.
वह आगे कहती हैं, ज़ैद दिल लगा के सीखने वाला बच्चा है. उस संस्कृत पढ़ने में मज़ा आया और उसने इसमें बेहतर करना शुरू किया. कई विदेश भाषाओं के बजाए संस्कृत चुनने के फ़ैसले का उसके परिवार वालों ने भी उसका साथ दिया. हम उसके प्रयासों की सराहना करते हैं.’