नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार ऐसी दवाओं के दाम बढ़ाने की अनुमति देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है जिसके कच्चे माल की लागत काफी बढ़ गई है.
यह कदम सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई), जो ज्यादातर चीन से आयात की जाती हैं, की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि के बाद उठाया गया है.
चीनी एपीआई, जिसे बल्क ड्रग भी कहा जाता है, की कीमतें पिछले साल से ही बढ़ रही हैं.
चीन, जो दुनिया में दवाओं के कच्चे माल का सबसे बड़ा निर्माता है, में जनवरी में कोविड-19 के प्रकोप के बाद से इनकी कीमतों में बड़ा उछाल आया है.
भारत के दवा निर्माता एक कानून बनाने के प्रस्ताव के साथ सरकार के पास पहुंचे हैं, जिसके तहत अप्रत्याशित कारणों को देख दवाओं में मूल्यवृद्धि संभव हो सके.
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) अध्यक्ष शुभ्रा सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें उद्योग की तरफ से डीपीसीओ में संशोधन के आग्रह मिल रहे हैं और सरकार द्वारा इसकी जांच करना नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है.’
बल्क ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (बीडीएमए) के जुटाए आंकड़ों के अनुसार, एंटीबायोटिक्स एजिथ्रोमाइसिन और ऑर्निडाजोल, ज्वलनरोधी दवा निमेसुलाइड और बुखार की दवा पैरासिटामॉल की कीमतों में जनवरी से 60 से 190 प्रतिशत का उछाल आया है.
एपीआई के अलावा, अन्य कच्चे माल– मुख्य शुरुआती और साथ में इस्तेमाल होने वाली मध्यवर्ती सामग्री- की कीमतें भी बढ़ गई हैं.
बीडीएमए के डाटा के मुताबिक, एंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक यौगिक 6एपीए की कीमत फरवरी में 400 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 1,875 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है, यानी 360 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो गई है.
इसी तरह, एंटीबायोटिक दवाएं बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पेनिसिलिन जी की कीमत फरवरी में 487 रुपये प्रति किलोग्राम की तुलना में बढ़कर 750 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है.
हालांकि, दवाओं के मूल्य निर्धारण संबंधी नियमों के तहत-ड्रग प्राइसिंग कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ)– दवा निर्माताओं को उपभोक्ताओं पर सालाना 10 फीसदी मूल्य वृद्धि से अधिक का भार डालने की अनुमति नहीं देता है.
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भारत में दवा की कमी न होने के लिए कार्रवाई जरूरी: उद्योग
बीडीएमए के अनुसार, केवल थोक दवाओं (या एपीआई) की कीमतें ही ऊपर नहीं जा रहीं. बीडीएमए के उपाध्यक्ष बी.आर. सीकरी, जो लॉबिस्ट बॉडी फेडरेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल एंटरप्रेन्योर्स (एफओपीई) के प्रमुख भी हैं, ने कहा, ‘अन्य कच्चे माल की कीमतें, जैसे कि प्रमुख शुरुआती और मध्यवर्ती सामग्री, भी काफी बढ़ी हैं. ऐसे में बहुत जरूरी हो गया है कि सरकार दखल दे और मूल्यों में बेतहाशा उतार-चढ़ाव को समायोजित करने के लिए कुछ कानून बनाए.’
उन्होंने कहा, ‘अगर दवा निर्माताओं को लंबे समय तक इस मूल्य वृद्धि को खुद वहन करने को कहा जाएगा, तो वे प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं समेत कई जरूरी उत्पादों का निर्माण बंद कर सकते हैं, जिससे बाजार में दवा की कमी हो जाएगी. किसी कमोडिटी के उत्पादन के लिए वित्तीय व्यावहार्यता भी जरूरी है. हमेशा नुकसान वहन नहीं किया जा सकता है.’
घरेलू दवा कंपनियों की एक और लॉबी, इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) की भी यही राय है.
आईडीएमए के कार्यकारी निदेशक अशोक मदान ने कहा, ‘उद्योग ने एनपीपीए से कीमतों में बढ़ोतरी के मुद्दे की समीक्षा करने का आग्रह किया है क्योंकि एपीआई की कीमतें काफी बढ़ गई हैं. इसने पहले भी पैरा 19 लागू करके उद्योग जगत की मदद की थी. हम फिर से हस्तक्षेप की उम्मीद करते हैं जिससे दवा निर्माताओं को चीन से आयातित सामग्री की कीमतें बढ़ने के मामले में राहत मिलेगी.
मौजूदा नियम
एनपीपीए ने अब तक एकमुश्त मूल्य वृद्धि की अनुमति देने के लिए डीपीसीओ, 2013 के पैराग्राफ 19 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है.
पैरा 19 एनपीपीए को उन दवाओं की कीमतों को विनियमित करने का अधिकार देता है जो वैसे तो इसके दायरे के तहत नहीं आती हैं. सार्वजनिक हित के लिए इस अधिकार का इस्तेमाल कुछ असाधारण परिस्थितियों में किया जा सकता है.
हाल ही में, 2 जुलाई को, एनपीपीए ने दवा कंपनियों को हेपरिन इंजेक्शन के दाम में एकमुश्त 50 फीसदी तक वृद्धि की अनुमति दी थी. यह दवा खून को पतला करने के लिए इस्तेमाल होती है और कोविड-19 मरीजों के इलाज में अहम भूमिका निभा रही है.
नियामक ने यह फैसला महंगे आयातित चीनी कच्चे माल के कारण बढ़ी निर्माण लागत को देखते हुए मूल्य वृद्धि की अनुमति देने के कंपनियों के अनुरोध के बाद किया था.
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