नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम का मानना है कि सार्स-कोव-2 वायरस रेमडेसिवीर, जो कोविड-19 को एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट के लिए दी जाने वाले कुछ स्वीकृत एंटीवायरल दवाओं में एक है, के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकता है.
यह अध्ययन नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग, जापान के सेंटर फॉर बायोसिस्टम्स डायनामिक्स रिसर्च, रिकेन और सोलन स्थित जेपी यूनिवर्सिटी ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने किया है. इसे 29 जून को प्रीप्रिंट रिपॉजिटरी बायोरिक्स पर पोस्ट किया गया, जिसकी अभी अन्य शोधकर्ताओं के स्तर पर समीक्षा की जानी है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक, वायरस में होने वाले म्यूटेशन अंतत: रेमडेसिवीर को इस वायरस पर बेअसर बना देंगे. शोधकर्ताओँ का कहना है कि अध्ययन के निष्कर्षों का इस्तेमाल स्ट्रक्चरल बायोलॉजिस्ट दवाओं में उपयुक्त बदलाव के लिए कर सकते हैं ‘ताकि हम आगे के लिए तैयार रहें’
शोधकर्ताओं ने दवा प्रतिरोधक के खिलाफ बेहतर विकल्प के तौर पर एक अन्य प्रायोगिक दवा- ईआईडीडी-2081- का जिक्र किया. ईआईडीडी-2081 एकमात्र ऐसी दवा थी जिसे शोधकर्ताओं ने तुलना के लिए इस्तेमाल किया था.
एक स्वतंत्र विशेषज्ञ ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अध्ययन एक ‘अच्छा शुरुआती कदम’ था, लेकिन साथ ही कहा कि तुलना के लिए सिर्फ एक दवा के उपयोग ने इसका दायरा सीमित कर दिया.
एक अन्य विशेषज्ञ का मानना है कि अध्ययन असामयिक हो सकता है, खासकर यह देखते हुए कि रेमडिसिविर का इस्तेमाल सीमित है, जिसका मतलब है कि दवा के खिलाफ वायरस का म्यूटेशन व्यापक स्तर पर संचारित होने की संभावना नहीं है.
जब वायरस में म्यूटेशन होता है
नोवल कोरोनावायरस, जो आधिकारिक तौर पर सार्स-कोव-2 के नाम से जाना जाता है, का अब तक कोई विशेष इलाज नहीं खोजा जा सका है. हालांकि, अमेरिकी फार्मा कंपनी गिलिएड साइसेंस द्वारा निर्मित रेमडिसिविर को भारत में हल्के से मध्यम लक्षण वाले कोविड-19 मामलों में प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर आपात इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी गई है.
सभी सूक्ष्मजीवियों में समय के साथ बदलाव की प्रवृत्ति पाई जाती है. नियमित तौर पर जेनेटिक कोड बदलना वायरस के विकसित होने की प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है. कुछ वायरस, जैसे कि इंफ्लूएंजा फैलाने वाले होते हैं, ज्यादा ही तेजी से अपना जेनेटिक कोड बदलते हैं, जिस वजह से वैक्सीन को प्रभावी बनाए रखने के लिए उसमें नियमित तौर बदलाव करने की जरूरत होती है.
यही वजह है कि फ्लू वैक्सीन, जिसकी सलाह विशेष तौर पर बुजुर्ग लोगों के लिए दी जाती है, को हर साल लेने की जरूरत होती है.
नोवल कोरोनावायरस, जो कोविड-19 का कारण है, भी अपना जेनेटिक कोड बदलता रहता है, लेकिन कोरोना श्रेणी के अन्य वायरस की तुलना में इसकी प्रक्रिया धीमी है.
विभिन्न वायरसों का एक समय उन पर प्रभावी रही दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी तंत्र विकसित कर लेना कोई नई बात नहीं है. उदाहरण के तौर पर एजिडोथामाइडिन (एजेडटी), जो एचआईवी के इलाज के लिए स्वीकृत पहली दवा थी, ने काम करना बंद कर दिया है क्योंकि वायरस ने इस दवा के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लिया है.
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बायोरिक्स पेपर के लेखकों में से एक नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के तिमिर त्रिपाठी ने कहा, ‘इसी तरह, जब पेनिसिलिन खोजी गई थी, यह एक वंडर ड्रग थी. किसी भी तरह का संक्रमण पेनिसिलिन से ठीक हो जाता था. अब, हर तरह के रोगाणुओं ने पेनिसिलिन के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लिया है.’
अध्ययन के निष्कर्ष
अध्ययन के दौरान, शोधकर्ताओं ने देखा कि दवा रेमडेसिवीर सार्स-कोव-2 पर किस तरह की प्रतिक्रिया करती है. दवा एनएसपी-12 नामक एक प्रोटीन को रोकती है, जो आरएनए पर निर्भर आरएनए-पॉलीमरेज (आरडीआरपी) एंजाइम का हिस्सा है जो वायरल प्रतिकृति में अहम भूमिका निभाता है.
तिमिर त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया, एक बार जब रेमडिसिविर एनएसपी-12 को रोक देती है तो वायरस की प्रतिकृति तैयार नहीं हो पाती.
शोधकर्ताओं ने रेमडेसिवीर के सटीक प्रतिबंध क्षमता वाले पहलू का पता लगाने के लिए रेमडेसिवीर और एनएसपी-12 से मिलकर बनी जटिल सरंचना का भी अध्ययन किया.
त्रिपाठी ने बताया, ‘हमने 56 अमीनो एसिड के अवशेष पाए जिन्हें रेमडेसिवीर प्रतिबंधित करती है.’ अमीनो एसिड यौगिक होते हैं जो प्रोटीन के निर्माण का आधार हैं. हर अमीनो एसिड में ‘अवशेष’ के तौर पर जाने जाने वाले अणुओं के एक समूह के अलावा एक एमाइन (एक नाइट्रोजन और दो हाइड्रोजन अणु से बना) और एक कार्बोक्सिल समूह (एक कार्बन, दो ऑक्सीजन और एक हाइड्रोजन अणु) शामिल होता है.
अवशेष समूह हर अमीनो एसिड में अलग तरह का होता है और इसी से एसिड को विशेष गुण हासिल होता है.
आरएनए, या वायरस के अंदर का आनुवंशिक पदार्थ, निर्देशों के एक पूरे समूह की तरह है जो अमीनो एसिड के संश्लेषण को निर्धारित करता है और इसी से वायरस में प्रोटीन का निर्माण होता है.
इनमें से प्रत्येक अमीनो एसिड में बदलाव का कारण बनने वाले संभावित जेनेटिक म्यूटेशन का पता लगाने के लिए सुपर कंप्यूटर का इस्तेमाल कर, टीम ने उन अमीनो एसिड की पहचान की जिनमें बदलाव से गुजरने की सबसे मजबूत क्षमता है. इसके बाद, उन्होंने उन म्यूटेशन की पहचान की जो रेमडेसिवीर के असर करने की क्षमता को घटा सकते हैं.
त्रिपाठी ने कहा, ‘ऐसे कई अध्ययन हैं जो आपको बताते हैं कि वायरस में दवा को बेअसर करने के लिए खुद को बदलने की संभावना होती है. लेकिन हमने वह जगहें पहचानीं जिनमें यह म्यूटेट करेगा.’
अध्ययन में यह भी पाया गया कि ईआईडीडी-2081, एक एक्सपेरिमेंटल एंटीवायरल जिसे क्लीनिक ट्रायल में कोविड-19 के इलाज के तौर पर परखा जा रहा है, दवा प्रतिरोधक तंत्र को रोकने में ज्यादा कारगर होगी.
यहां तक कि कुछ ऐसे म्यूटेशन, जो रेमडेसिवीर के लिए हानिकारक हैं, को रोकने में एनएसपी-12 पर ईआईडीडी-2801 ज्यादा असरदार है.
आगे क्या?
त्रिपाठी ने कहा कि दवाओं में बेहतर ढंग से सुधार करने के लिए स्ट्रक्चरल बॉयोलाजिस्ट अध्ययन के निष्कर्षों का इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि हम वायरस में संभावित बदलाव के लिए तैयार हो सकें.
उन्होंने कहा, ‘दवा का विकास एक सतत प्रक्रिया है. एक बार आप किसी विशेष परजीवी के खिलाफ दवा विकसित कर लेते हैं, तो भी कुछ समय बाद यह काम नहीं करेगी.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास पहले से ही मलेरिया के लिए प्रभावी दवाएं हैं, लेकिन मलेरिया की नई दवाओं पर शोध लगातार जारी है, क्योंकि कुछ समय बाद ये दवाएं काम नहीं करेंगी. कई साल पहले, लोग मलेरिया के लिए सिर्फ क्लोरोक्वीन लेते थे, लेकिन यह अब काम नहीं करती है.’
विशेषज्ञों ने अध्ययन के निष्कर्षों की व्याख्या के दौरान सावधानी बरतने के लिए आगाह किया है.
मुंबई स्थित सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन बेसिक साइंसेज के एक शोधकर्ता सुभोजित सेन, जो इस शोध का हिस्सा नहीं थे, ने कहा, ‘यह अध्ययन रेमडेसिवीर प्रतिरोध पर सवाल या परिकल्पनाएं तैयार करने की दिशा में एक शुरुआती कदम है, जिसे बाद में लैब में आर्टिफिशियल वायरल कल्चर सिस्टम पर परखा जा सकता है.’
उन्होंने आगे जोड़ा कि मौजूदा स्थिति में यह अध्ययन पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत और सैद्धांतिक गणनाओं पर आधारित है, और अपने नतीजों के समर्थन के लिए इसके पास कोई जैविक प्रयोगात्मक सबूत नहीं है.
साथ ही, उन्होंने कहा कि सार्स-कोव-2 में म्यूटेशन धीरे-धीरे होता है. एचआईवी की तुलना में लगभग 10 गुना धीमा- और, इसलिए रेमडेसिवीर के खिलाफ प्रतिरोध को प्रभावी बनाने के लिए इन म्यूटेशन के असरदार होने में एक लंबा समय लगेगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘पेपर में यह परखे जाने की भी जानकारी नहीं है कि रेमडेसिवीर प्रतिरोधी म्यूटेशन खुद एनएसपी-12, जो वायरल प्रतिकृति में अहम है, के फंक्शन पर कैसे असर करते हैं.’ उन्होंने कहा कि यदि म्यूटेशन प्रोटीन फंक्शन को इस तरह प्रभावित करता है जिससे वायरल प्रतिकृति पर भी असर पड़े तो प्रतिरोध का प्रसार खुद ब खुद कम हो जाएगा.
सेन ने कहा, ‘यहां तक कि अगर प्रतिरोध होता भी है, तो भी कोरोना वायरस में ‘स्वाभाविक तौर पर होने वाले’ म्यूटेशन, जिसका अस्पताल के बाहर फैलना संभव है, की तुलना में यह वायरस क्वारंटाइन मरीजों तक ही सीमित रहेगा और बाकी आबादी को इस म्यूटेशन की चपेट में नहीं आना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, यह संभावना नहीं है कि ये म्यूटेशन आफत की वजह बनेंगे, जब तक रेमडेसिवीर एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की तरह खुले तौर पर उपलब्ध नहीं होती और बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाना समस्या नहीं बन जाता. मौजूदा समय में रेमडिसिविर का इस्तेमाल उस वास्तविकता से बहुत दूर है.’
मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त एक स्ट्रक्चर बायोलॉजिस्ट एस. कृष्णास्वामी ने कहा कि अध्ययन का दायर इसलिए भी बेहद सीमित था क्योंकि इसमें रेमडेसिवीर की तुलना के लिए केवल एक दवा ईआईडीडी-2801 को चुना गया.
कृष्णास्वामी, जो इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे, ने कहा, ‘टीम को कुछ और दवाओं पर परीक्षण करना चाहिए था, अगर वे वास्तविक तुलना करना चाहते थे.’
उन्होंने कहा कि मौजूदा डाटा इस तर्क को पुख्ता करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि रेमडेसिवीर की तुलना में ईआईडीडी-2801 ज्यादा बेहतर होगी.
फिर भी, प्रयोगशाला में आगे के अध्ययनों के लिए यह पेपर एक अच्छी शुरुआत हो सकता है.
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