नई दिल्ली: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ओबीसी के बीच ‘क्रीमी लेयर’ निर्धारित करने के लिए वार्षिक आय सीमा की मांग करने के लिए पूरी तरह तैयार है. आयोग का कहना है कि वर्तमान आया सीमा को 8 लाख से बढ़ाकर 16 लाख कर दिया जाए. आयोग ने सरकार के 12 लाख रुपये करने के प्रस्ताव का विरोध किया था.
ओबीसी, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण पाने के योग्य हैं, बशर्ते वे क्रीमी लेयर की श्रेणी में न आएं.
हालांकि, आयोग के सूत्रों के अनुसार पैनल, ओबीसी की क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा निर्धारित करने के लिए के वेतन को शामिल करने के सरकार के विवादास्पद प्रस्ताव से सहमत होगा. इस साल मार्च में इसका विरोध किया गया था.
आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘लॉकडाउन शुरू होने के बाद से हमारी कोई आंतरिक बैठक या चर्चा नहीं हुई है. इसलिए अब तक, आयोग का रुख पहले जैसा ही है. चूंकि सरकार ने कैबिनेट नोट फिर से आयोग को भेजा है. इसलिए हम वेतन के इसमें शामिल होने के लिए सहमत हो सकते हैं.
हालांकि, पदाधिकारी ने कहा कि क्रीमी लेयर की आय सीमा 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 16 लाख रुपये करने के लिए आयोग ‘निश्चित रूप से दबाव डालेगा.’ पदाधिकारी ने कहा, ‘अगर 1993 के बाद से आय सीमा की सही समीक्षा की जाती तो, यह आज लगभग 20 लाख रुपये होता. इसलिए हम प्रस्ताव देंगे कि इसे बढ़ाकर कम से कम 16 लाख रुपये किया जाए.’
विवादास्पद वेतन मुद्दा
एक घटक के रूप में वेतन को शामिल करने का मुद्दा एनसीबीसी के बीच टकराव का मुद्दा बन गया था, जिसमें भाजपा के कई नेता इसके सदस्य और मोदी सरकार शामिल हैं.
आयोग की सोच यह है कि वेतन को शामिल करने से सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण के लिए योग्य ओबीसी पूल को काफी कम कर सकता है. आय सीमा को दोगुना करने से कुछ को 27 प्रतिशत आरक्षण के तहत अपनी पात्रता बनाए रखसकते हैं.
आयोग ने मार्च में सरकार से कहा था कि उसे ओबीसी आरक्षण में इस तरह से फेरबदल नहीं करना चाहिए कि वह भारत में आरक्षण के नियमों को मानने वाले मूल सिद्धांत को ठुकरा दे.
जैसा कि पूर्व में दिप्रिंट द्वारा रिपोर्ट किया गया था मार्च में सरकार को लिखे गए एक पत्र में आयोग ने सरकार के प्रस्ताव को मजबूत अपवाद के रूप में लिया था और कहा कि आरक्षण के पीछे अंतर्निहित सिद्धांत सामाजिक है, न कि आर्थिक पिछड़ापन है- यह सिद्धांत नए प्रस्ताव द्वारा इसका बुनियादी रूप से उल्लंघन करता है.
एक अन्य पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि आयोग 10 जुलाई को एक पूर्ण-आयोग की बैठक में अपने रुख की समीक्षा करने के लिए तैयार है.
सरकार का यह प्रस्ताव इस साल अक्टूबर में होने वाले बिहार चुनाव में महत्वपूर्ण है, जहां ओबीसी आबादी 40 फीसदी से अधिक है.
‘आय पर स्पष्टता का अभाव’
मौजूदा नियमों के तहत, 8 लाख रुपये या उससे अधिक की वार्षिक आय वाले घर को ओबीसी के बीच ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसलिए यह सरकारी नौकरियों और सरकार द्वारा वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए योग्य नहीं है.
मूल रूप से इसका मतलब है कि वार्षिक पैतृक आय (खेती, कृषि भूमि से आय को छोड़कर, अन्य लोगों का वेतन) 8 लाख रुपये और उससे अधिक आय वाले लोग आरक्षण लाभ के लिए पात्र नहीं हैं.
इसके अलावा, जो लोग संवैधानिक पदों पर रहते हैं और सरकारी क्षेत्र में क्लास-ए के पदों में प्रवेश करते हैं, वे स्वचालित रूप से क्रीमी लेयर में शामिल होते हैं.
पिछड़े वर्गों की समिति की 21 वीं रिपोर्ट के अनुसार, 5 सितंबर 2018 को आयोजित बैठक में डीओपीटी के प्रवक्ता ने समिति के समक्ष स्वीकार किया गया कि क्लास बी और सी के कर्मचारियों पर आय की प्रयोज्यता की व्याख्या ‘संदेहास्पद विषय’ है.
उन्होंने कहा था कि ‘मैं मानता हूं कि यह ‘संदेहास्पद विषय’ है. इसकी अलग-अलग तरीके से व्याख्या की जा रही है. इसका स्पष्टीकरण बहुत आवश्यक है.
1993 में जब पहली बार लागू किया गया था, तो ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर का निर्धारण करने की आय सीमा 1 लाख रुपये थी. इस सीमा की समीक्षा नियमित रूप से मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए की जानी है और मोदी सरकार द्वारा 2017 में 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी गई थी.
2017 से पहले सीमा को तीन बार बढ़ाया गया था-1993 में 1 लाख रुपये से 2004 में 2.5 लाख रुपये, 2008 में 4.5 लाख रुपये और फिर 2013 में 6 लाख रुपये.
लेकिन सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने के अलावा, नए बदलाव से सकल वार्षिक आय की गणना में वेतन भी शामिल है.
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नन क्रिमी लेयर की सीमा बढ़नी चाहिए।