scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशकोविड के मामले बढ़ने के बीच सेना ने जवानों के अनिवार्य सालाना और समय-समय पर होने वाले मेडिकल टेस्ट टाले

कोविड के मामले बढ़ने के बीच सेना ने जवानों के अनिवार्य सालाना और समय-समय पर होने वाले मेडिकल टेस्ट टाले

सेना सभी जवानों की फिटनेस के आकलन के लिए निर्धारित अवधि के साथ-साथ वार्षिक मेडिकल टेस्ट कराती है. इन्हें फिलहाल स्थगित करने के फैसले से सैन्य अस्पतालों पर बोझ घटने की संभावना है.

Text Size:

नई दिल्ली: देश में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए सेना ने हर जवान के फिटनेस लेवल का पता लगाने के लिए होने वाले सभी अनिवार्य वार्षिक और आवधिक (समय-समय पर होने वाले) मेडिकल टेस्ट स्थगित करने का फैसला किया है.

डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मेडिकल सर्विसेज (आर्मी) ने इसी हफ्ते जारी दिशा-निर्देश में सभी कमान से कहा है कि हर रैंक के लिए मेडिकल परीक्षण 30 सितंबर तक रोक दिया जाए.

निर्देश में रिव्यू मेडिकल बोर्ड अगले आदेश तक स्थगित करने को कहा गया है. सशस्त्र बलों में भर्ती होने के दौरान प्रत्येक व्यक्ति की मेडिकल जांच की जाती है और जो लोग पहले चरण में अनफिट पाए जाते हैं, उनकी समीक्षा की व्यवस्था है, जिसे मेडिकल बोर्ड रिव्यू करता है.

अगर संभव हुआ तो रिक्लासीफिकेशन और रिलीज मेडिकल बोर्ड का आयोजन भी सिर्फ स्थानीय अस्पतालों में किया जाएगा और इन बोर्ड का इंटर हॉस्पिटल ट्रांसफर स्थगित रहेगा.

सभी सैन्यकर्मियों की चिकित्सा स्थिति को मनोवैज्ञानिक और फिटनेस स्तर के साथ-साथ पांच अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है.


यह भी पढ़ें: टिकटॉक, वीचैट को सशस्त्र बलों ने मोदी सरकार के रोक लगाने से पहले ही बंद कर दिया था


रिक्लासीफिकेशन बोर्ड का आयोजन पूर्व में पांच में से किसी भी श्रेणी में मेडिकली डाउनग्रेड कर दिए गए जवान की स्थिति की समीक्षा के लिए होता है, जबकि रिलीज मेडिकल बोर्ड सेवानिवृत्ति के समय किसी जवान की फिटनेट का स्तर पता करने के लिए होता है.

हालांकि, दिशा-निर्देशों के मुताबिक दिल्ली स्थित आर्म्स फोर्सेस क्लीनिक में लेफ्टिनेंट जनरल के लिए रिलीज मेडिकल बोर्ड काम करता रहेगा.

इसके अलावा निर्देश में यह भी कहा गया है कि रिएंप्लायमेंट बोर्ड, जो ऐसे अफसरों के लिए होता है जो सेवानिवृत्ति के बाद भी रक्षा सेवाओं में फिर काम करने का विकल्प चुनते हैं- का आयोजन सैन्य ठिकानों के भीतर किया जा सकता है जहां पूर्व अनुमति के तहत ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

हालांकि, अगले कुछ महीनों में कोरोनोवायरस की स्थिति के आधार पर कुछ बोर्ड के लिए एक बार छूट पर विचार किया जा सकता है.

दिप्रिंट ने पूर्व में बताया था कि भारतीय सशस्त्र बलों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ चल रहे तनाव के मद्देनजर सेना, नौसेना और वायु सेना के सदस्यों के लिए क्वारेंटाइन पॉलिसी में संशोधन कर दिया है.

छुट्टी या अस्थायी सेवा से लौटने वाले या फिर नई पोस्टिंग ज्वाइन करने वाले जवानों के लिए अब 14 दिन क्वारेंटाइन अवधि अनिवार्य नहीं होगी, जब तक कि उनमें कोविड-19 के संक्रमण का कोई स्पष्ट लक्षण नजर न आए.

फैसले से अस्पतालों पर भार कम होगा

वार्षिक और आवधिक मेडिकल परीक्षण के तहत हर जवान की फिटनेट का आकलन किया जाता है और इसके लिए तमाम तरह के टेस्ट होते हैं.

वार्षिक मेडिकल परीक्षण हर साल होता है और आवधिक मेडिकल परीक्षण के तहत बहुत ही गहन जांच होती है और यह पांच साल में एक बार होती है.

एक सैन्य अधिकारी ने कहा कि रिलीज मेडिकल बोर्ड उन जवानों के लिहाज बेहद अहम होते हैं जो किसी तरह की शारीरिक क्षति से प्रभावित हुए हैं क्योंकि इनके फैसले यह तय करने में अहम होते हैं कि ऐसे सैनिकों को कैसी और कितनी डिसेबिलिटी पेंशन मिलेगी.

अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जवानों की नियमित जांच के कारण सैन्य अस्पतालों पर काफी दबाव है और इन बोर्ड को स्थगित करने से निश्चित तौर पर कुछ बोझ कम होगा.


यह भी पढे़ं: कोविड संकट काल में ऑनलाइन लेक्चर्स सहित कैसे बदल रही है सैन्य ट्रेनिंग


उन्होंने कहा, ऐसे मामले सामने आए हैं जहां डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ वायरस के संपर्क में आ गए और इस कारण उनमें से कुछ काम के लिए उपलब्ध नहीं हो सके.

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि चूंकि सेना सैन्यकर्मियों की आवाजाही को किसी भी तरह कम करने की कोशिश कर रही है, इस कदम से संक्रमण के खतरे को काफी हद तक घटाया जा सकेगा.

अधिकारी ने कहा, बोर्ड का आयोजन कुछ समय के लिए टालकर लोगों को ग्रीन जोन अस्पताल, जहां संक्रमण की संभावना अधिक होती है, भेजने की संभावना को कम किया जा सकता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments