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Wednesday, 18 December, 2024
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कोई दाल फ्राई नहीं, मोदी सरकार की खाद्य सहायता के नए राउंड में अब सिर्फ चना खिलाएंगे राज्य

लॉकडाउन के दौरान पीएमजीकेवाई सहायता के पहले राउण्ड में, अप्रैल से जून तक, राज्य तय कर सकते थे कि स्कीम के लाभार्थियों को, कौन सी दालें बांटनी हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

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नई दिल्ली: मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पीएम ग़रीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के विस्तार की घोषणा की, जिसका उद्देश्य ग़रीबों पर लॉकडाउन के प्रभाव को कम करना था, तो उन्होंने एक छोटी सी डीटेल का ज़िक्र नहीं किया.

स्कीम के तहत अब ग़रीबों को नवम्बर तक राशन मुफ्त मिलेगा लेकिन राज्यों को अब ये अधिकार नहीं है कि कौन सी दालें वितरित करनी हैं. इस पसंद को अब चने तक सीमित कर दिया गया है, जिससे चने की दाल बनाई जाती है.

लॉकडाउन के दौरान पीएमजीकेवाई सहायता के पहले राउंड में, अप्रैल से जून तक, राज्य तय कर सकते थे कि स्कीम के लाभार्थियों को, कौन सी दालें बांटनी हैं. अब ऐसा नहीं है, क्योंकि सरकार के अनुसार बहुत से कारण हैं, जिनकी वजह से चना सबसे सुविधाजनक विकल्प है.

उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण के केंद्रीय मंत्री, राम विलास पासवान ने दिप्रिंट को बताया, ‘स्कीम के अगले चरण के लिए जब राज्यों से मशविरा किया गया तो अधिकांश ने चना दाल को स्वीकार किया था’.

‘चना दाल पर इसलिए भी सहमति बन गई, चूंकि इसमें, पिछली बार वितरित की गई दूसरी दालों के मुकाबले, ज़्यादा मिलिंग और प्रॉसेसिंग की ज़रूरत नहीं पड़ती. मूंग, अरहर, उड़द और मसूर जैसी दूसरी दालों के विपरीत, जिन्हें प्रॉसेस करने में 5-7 दिन लगते हैं, इसे भिगोकर आसानी से पकाया जा सकता है.’

मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक़, इसके पीछे और भी कारण थे. रबी कटाई के चालू सीज़न में बम्पर उपज होने के कारण, सरकार के बफर स्टॉक में चना दाल ही एक ऐसी उपज है जिसे स्कीम में परिकल्पित स्तर पर बराबर से वितरित किया जा सकता है- पांच महीने तक 19.66 करोड़ घरों को एक-एक किलो दाल.

48.75 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से, इसकी ख़रीद लागत भी सबसे सस्ती है जिससे ये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए सबसे उपयुक्त हो जाती है, क्योंकि कम दाम की वजह से इसकी जमाख़ोरी का ख़तरा कम रहता है.

ज़रूरतमंदों के लिए खाद्य सहायता

इस साल मार्च में, जब कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए पूरा देश मुकम्मल लॉकडाउन में चला गया था, मोदी सरकार ने पीएमजीकेवाई के अंतर्गत, खाद्य सहायता के एक भारी प्रयास का ऐलान किया था. पिछले महीने से लॉकडाउन में ढील दे दी गई है लेकिन महामारी की वजह से अभी तक हालात पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं.

इसका मतलब है कि बहुत से दिहाड़ी मज़दूर और श्रमिक जो लॉकडाउन के चलते अपनी जीविका गंवा बैठे थे, उन्हें गुज़र-बसर के लायक़ रोज़गार हासिल करने के लिए अभी कुछ और समय इंतज़ार करना होगा.

इसी को देखते हुए, मोदी सरकार ने इस हफ्ते पीएमजीकेवाई के तहत दी जा रही खाद्य सहायत को ये कहते हुए आगे बढ़ा दिया है कि अब ये नवम्बर तक लागू रहेगी. अभी तक, पीएमजीकेवाई ने हर लाभार्थी को, पांच किलो गेहूं/चावल और ‘स्थानीय पसंद के अनुसार’ हर घर को एक किलो दाल देने का आश्वासन दिया हुआ था.

इसके नतीजे में, अप्रैल से जून तक, दक्षिण और उत्तर-पूर्व के बहुत से राज्यों ने, मूंग, तूड़ (अरहर), उड़द और मसूर का विकल्प चुना था. दूसरों में से उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कुछ गिने चुने राज्यों ने ही, तीनों महीनों के लिए चना दाल चुनी थी.

लेकिन अब, हर किसी को चना दाल से समझौता करना होगा.


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चना दाल ही क्यों?

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सिर्फ चना दाल वितरित करने का फैसला व्यवहारिकता और उपलब्धता के आधार पर लिया गया है. पीएमजीकेवाई के पहले राउंड में वितरित किए जाने के बाद, केंद्र सरकार के बफर स्टॉक में कम मात्रा में दालें रह गईं थीं, जबकि चने की बम्पर उपज हुई थी.

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 26 जून को केंद्र के बफर स्टॉक में 8.76 लीख मीट्रिक टन (एलएमटी) दालें थीं जिनमें 3.77 एलएमटी अरहर, 1.14 एलएमटी मूंग, 2.28 एलएमटी उड़द, 1.30 एलएमटी चना, और 0.27 एलएमटी मसूर दाल है. 19.66 करोड़ घरों को पांच महीने तक, एक किलो दाल प्रति माह के हिसाब से, केंद्र सरकार को 9.83 एलएमटी दालों की ज़रूरत है.

मंत्रालय के अधिकारी ने बताया, ‘चना, मूंग और मसूर सिर्फ तीन दालें हैं, जो मौजूदा बफर स्टॉक अनुमान में शामिल की जाएंगी, क्योंकि उनकी रबी उपज को फिलहाल, न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर ख़रीदा जा रहा है’. उन्होंने ये भी कहा, ’29 जून तक बफर स्टॉक के लिए, 20.4 एलएमटी चना दाल, 3.4 एलएमटी मूंग दाल, और 1.43 एलएमटी मसूर दाल की ख़रीद की जा चुकी थी’.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘मूंग और मसूर दालों की ख़रीद तक़रीबन पूरी हो चुकी है, जबकि मध्य प्रदेश में चना दाल की ख़रीद की जाएगी, जहां सेहोर, होशंगाबाद और रायसेन जैसे इलाक़ों में बम्पर पैदावार हुई है. इसलिए चने का स्टॉक और बढ़कर 30-35 एलएमटी हो जाएगा. इसके अलावा, आने वाले तीन महीनों में, इन तीन दालों के अलावा किसी और दाल की कटाई या ख़रीद नहीं होगी, इसलिए चना दाल ही एकमात्र विकल्प है’.

भारत में दालों के कुल उत्पादन में क़रीब 45-50 प्रतिशत चना दाल होती है जिसका सालाना उत्पादन 112.3 एलएमटी होता है, जबकि 42.5 एलएमटी के साथ अरहर 16 प्रतिशत होती है. भारत के कुल उपभोग का तीन-चौथाई तक यही दो दालें होती हैं.

खाद्य मंत्रालय ने ये भी बताया कि दूसरे लगभग सभी विकल्पों की अपेक्षा चना दाल सबसे सस्ती होती है.

अरहर, जिसकी पहले राउंड में सबसे अधिक मांग थी, का ख़रीद मूल्य 60 रुपए प्रति किलो आता है, जबकि मूंग और मसूर का ख़रीद मूल्य क्रमश: 71.96 रुपए और 48 रुपए प्रति किलो है. चना दाल अकेली दाल है जो भारी मात्रा में भी है और 48.75 रुपए प्रति किलो के दाम पर सस्ती भी है.

‘चना दाल का चयन इसलिए भी किया गया, चूंकि मसूर को छोड़कर, ये दूसरी सभी दालों के मुकाबले सस्ती है. पीएमजीकेवाई स्कीम के तहत चना दाल अगर पीडीएस से लीक भी हो जाती है, तो उससे दाम नहीं बढ़ेंग और न ही जमाख़ोरी होगी, चूंकि चालू सीज़न की वजह से, स्थानीय बाज़ारों में काफी दाल उपलब्ध है.’

एक समान विकल्प से दालों का बंदोबस्त करने में होने वाली देरी भी कम की जा सकती है जो राज्यों की अलग-अलग पसंद की वजह से अप्रैल से जून के बीच में देखी गई थी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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