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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशबहुत समय से मिल रहे थे चीनी घुसपैठ के संकेत, गलवान तो होना ही था: लद्दाख लीडर्स

बहुत समय से मिल रहे थे चीनी घुसपैठ के संकेत, गलवान तो होना ही था: लद्दाख लीडर्स

सभी पार्टियों के स्थानीय नेताओं का कहना है कि हर स्तर पर अथॉरिटीज़ ने ख़तरे की घंटियों को अनदेखा किया. लेकिन लद्दाख़ विकास परिषद के प्रमुख का दावा है कि ऐसी जानकारी कभी नहीं मिली.

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लेह (लद्दाख़) : पूर्वी लद्दाख़ की गलवान घाटी में 5 जून को चीन के साथ हुई हिंसक झड़प ने, जिसमें 20 भारतीय सैनिक हलाक हो गए देश और दुनिया दोनों को बराबर रूप से हिला दिया.

इधर भारत और चीन एक ऐसे ख़तरनाक टकराव में फंसे हैं, जैसा पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया. उधर लद्दाख़ के स्थानीय नेताओं और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास रहने वाले गांववासियों का कहना है कि ये तो होना ही था.

दिप्रिंट से बात करते हुए स्थानीय नेताओं ने कहा कि चीनी बरसों से भारतीय ज़मीन में घुसते आ रहे हैं और उन्होंने इस इलाक़े पर शासन करने वाली लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) से लेकर लद्दाख़ से बीजेपी सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल यहां तक कि केंद्र सरकार तक हर स्तर पर अथॉरिटीज़ को इससे आगाह भी किया था.

उन्होंने आगे कहा कि उनकी चिंताओं और ख़तरे की घंटियों को बार-बार नज़रअंदाज़ किया गया. हालांकि, एलएएचडीसी के अध्यक्ष ग्याल पी वांग्याल का कहना था कि परिषद को किसी स्थानीय नेता से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली.

‘चीनियों ने ख़ानाबदोशों को भारतीय ज़मीन पर चराने से रोका’

सीमावर्ती इलाक़ों में रहने वाले लद्दाख़ियों का कहना है कि पिछले बहुत सालों से चीनियों की बढ़ती मौजूदगी के कारण, वो अपनी चरागाहों की ज़मीन खोते जा रहे हैं.

ख़ानाबदोशों के हितों का झंडा न्योमा ब्लॉक विकास परिषद की अध्यक्ष उरगेन चोंदोन ने उठाया हुआ है, जिन्होंने पिछले एक साल से अपनी सिलसिलेवार फेसबुक पोस्ट्स में दावा किया है कि न्योमा ब्लॉक में चीनी सैनिक लगातार ख़ानाबदोशों को धमकाते जा रहे हैं.

न्योमा ब्लॉक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सटा हुआ है और पैंगॉन्ग झील से क़रीब 60 किलोमीटर दूर है.

एक घुमंतू परिवार से आने वाली बीजेपी लीडर चोंदोन के फेसबुक पोस्ट मई 2019 के हैं.

गलवान घाटी में हमले से चार दिन पहले 11 जून को, उन्होंने 11 जुलाई 2019 का अपना पुराना पोस्ट शेयर किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि चीन के पीएलए सैनिक, भारतीय क्षेत्र में 6 किलोमीटर अंदर तक, न्योमा ब्लॉक के धोला गांव में आ गए थे, जहां उन्होंने अपना राष्ट्रीय ध्वज फहराया, और दलाई लामा के जन्मदिन पर स्थानीय लोगों को भारतीय, तिब्बती या बौद्ध ध्वज फहराने से रोका था. पोस्ट में ये भी कहा गया कि बाद में दिसम्बर 2019 में उन्होंने पास की ज़मीन पर अपना दावा ठोक दिया.

फेसबुक पर एक और पोस्ट में उन्होंने कहा कि पीएलए सैनिकों ने गांव वासियों को धमकाया था और उन्हें चेतावनी दी थी कि उस इलाक़े में न चराएं, जो उनके मुताबिक़ चीन की ज़मीन थी.

चोंदोन ने दिप्रिंट से कहा, ‘सिर्फ पिछले दो महीने ही नहीं मैं ये चिंताएं 2015 से उठा रही हूं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने हाल ही में अप्रैल में भी पोस्ट किया था कि हमने 300-350 चीनी वाहनों का क़ाफिला देखा था, लेकिन बाद में मैंने उस पोस्ट को हटा दिया, क्योंकि मुझसे कहा गया कि मेरी पोस्ट से घबराहट फैल रही थी.’

एलएएचडीसी के कार्यकारी पार्षद कोंचोक स्टैंज़िन, जो बीजेपी के ही हैं ने भी इस बात को माना कि पिछले क़रीब दो सालों से छोटी-छोटी घटनाएं भड़कती रही हैं. उन्होंने कहा, ‘चुमुल, डोमचोक (न्योमा ब्लॉक में), चुशुल (बग़ल के डुर्बुक ब्लॉक में), यहां तक कि पैंगॉन्ग में भी 2017 से चीनी झंडे और बैनर्स को लेकर छोटी छोटी झड़पें होती रही हैं. लेकिन वो ज़्यादा समय नहीं चलती थीं और उन्हें स्थानीय लेवल पर ही सुलझा लिया जाता था.’

सिर्फ स्थानीय बीजेपी नेता ही नहीं कांग्रेस नेताओं का भी कहना है कि पिछले कुछ सालों में चीनी मौजूदगी में इज़ाफा हुआ है.

एलएएचडीसी के पूर्व मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष, रिगज़िन स्पालबर ने बताया कि 2013 में डेमचोक में उन्होंने जिस नहर का उदघाटन किया था, उसपर 2018 में चीनियों ने कब्ज़ा कर लिया. उन्होंने कहा, ‘मैंने 2013 में गांधी जयंती पर नहर का उदघाटन किया और 2018 में वहां चीनी बैठे हुए थे, जिन्होंने हमारे ख़ानाबदोशों की गर्मियों की चरागाह भूमि पर क़ब्ज़ा कर लिया था. और क्या सबूत चाहिए आपको?’

सिर्फ नेताओं ने ही नहीं, स्थानीय लोगों ने भी भारत की चरागाह ज़मीनों में चीनियों की बढ़ी मौजूदगी पर चिंता जताई है. चांगथांग इलाक़े में पैंगॉन्ग झील से क़रीब 15 किलोमीटर दूर, फोबरंग गांव के एक निवासी ने दिप्रिंट को बताया कि चीनियों ने उसके परिवार को अपनी रेवड़ चराने से रोक दिया है.

नाम न बताने की शर्त पर उस निवासी ने बताया, ‘पहले मेरा परिवार अपने मवेशियों को चराने के लिए एलएसी के पास ग्रीन टॉप एरिया तक चला जाता था. लेकिन फिर चीनियों ने हमें रोकना शुरू कर दिया.’ उसने आगे कहा, ‘मेरे पिता कहा करते थे कि वो चीनियों को पहले ग्रीन टॉप हिल से नीचे देखा करते थे, अब वो ग्रीन टॉप हिल के बिल्कुल ऊपर हैं, इसलिए हमने वहां चराना बंद कर दिया है.’

ग्रीन टॉप हिल पैंगॉन्ग झील के फिंगर एरिया के ऊपर है.

शीर्ष नेताओं ने चिंताओं की ‘अनदेखी’ की

लद्दाख़ के स्थानीय नेताओं का कहना है कि उन्होंने बड़े-बड़े नेताओं को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है, जिनमें स्थानीय सांसद, रक्षा मंत्री यहां तक कि प्रधानमंत्री तक शामिल हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

तांग्से चुनाव क्षेत्र के काउंसिलर ताशी नामग्याल ने दिप्रिंट से कहा,’हर साल चीनी इंच-इंच करके फिंगर 4 की तरफ बढ़ रहे हैं. हमने अपनी चिंताएं- कि चीनी अंदर आ रहे हैं और हमारे ख़ानाबदोशों को चराने नहीं दे रहे हैं- न सिर्फ एलएएचडीसी अध्यक्ष बल्कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक, लद्दाख़ के उप-राज्यपाल आरके माथुर, सांसद नामग्याल, यहां तक कि 2019 में यहां दौरे पर आए पीएम से भी व्यक्त की थीं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमने रिपोर्ट्स भी दी हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि क्या हुआ है.’

पिछले सप्ताह पैंगोंग त्सो की यात्रा के दौरान ताशी नामग्याल | विशेष व्यवस्था द्वारा

नई दिल्ली के दावों के अनुसार, पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर स्थित फिंगर-4 भारत के क्षेत्र में आता है, क्योंकि भारत के दावे की लाइन फिंगर 8 पर है.

स्थानीय नेताओं का कहना है कि वो वर्षों से इस मुद्दे को उठाते आ रहे हैं. कांग्रेस के स्पालबर ने कहा कि, ‘अगस्त 2015 में जब रक्षा मंत्री मनोहर परिकर लेह आए थे, तो मैंने उन्हें चीनियों की बढ़ती मौजूदगी के बारे में सूचित किया था और बताया था कि कैसे सीमा पास के इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करके, वो हमारे ख़ानाबदोशों को वहां अपने रेवड़ चराने नहीं दे रहे.’ उन्होंने ये भी कहा, ‘जब मैंने मंत्री को ये बात बताई तो सेना के जीओसी- नॉर्दर्न कमांड भी वहां मौजूद थे. लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ.’

निवासियों का कहना है कि पिछले साल, जब सांसद नामग्याल ने चांगथांग का दौरा किया, तो वो लोग उन्हें ले जाकर वो जगहें दिखाना चाहते थे, जहां चीनी आ गए थे. चांगथांग के एक निवासी ने बताया, ‘इस साल के शुरू में जब सांसद यहां आए थे, तो हम उन्हें वो जगह दिखाना चाहते थे जहां चीनी घुस आए थे और हमारे लोगों को अपने रेवड़ चराने नहीं दे रहे थे. लेकिन वो जगह 40 किलोमीटर दूर थी, इसलिए सेना ने हमें इजाज़त नहीं दी.’

लेकिन एलएएचडीसी के अध्यक्ष ग्याल पी वांग्याल ने किसी भी स्थानीय नेता से ऐसी कोई जानकारी मिलने से इनकार किया. दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में वांग्याल ने कहा, ‘हमने किसी ख़तरे की घंटी को अनदेखा नहीं किया है. मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने ऐसे दावे कैसे किए हैं. मेरे सूत्र ऐसी कोई ख़बर नहीं देते. पीएम मोदी ने भी कहा है, कि चीन ने हमारे किसी इलाक़े पर कब्ज़ा नहीं किया है और हमें उनपर यक़ीन करना चाहिए”.

दिप्रिंट ने फोन या व्हाट्सएप संदेश के ज़रिए एमपी नामग्याल की टिप्पणी लेनी चाही, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. अगर वो जवाब देते हैं, तो इस ख़बर को अपडेट कर दिया जाएगा.

‘हमारे ख़ानाबदोशों को आज़ादी से घूमने दीजिए, जिससे वो चीनी क़ब्ज़े से बच सकें’

स्थानीय नेताओं का कहना है कि ‘इंच दर इंच चीनी कब्ज़े’ से बचने का एक ही उपाय है कि लद्दाख़ी ख़ानाबदोशों को, एलएसी के क़रीब अपनी पारंपरिक चरागाहों में चराने दिया जाए.

स्पालबर ने कहा, ‘सबसे बड़ा मसला ये है कि सुरक्षा का हवाला देकर सेना हमारे ख़ानाबदोशों को पारंपरिक चरागाहों में जाने से रोक रही है.’ उन्होंने आगे कहा,’जब चीनी देखते हैं कि यहां कोई ख़ानाबदोश नहीं हैं, तो वो तिब्बत से अपने ख़ानाबदोश यहां भेज देते हैं. हमारी सेना एतराज़ नहीं करती, और हमारे ख़ानाबदोश वहां हैं नहीं, इसलिए पीएलए सैनिक वहां आकर टेंट गाड़ लेते हैं, और अपने शिविर बना लेते हैं.’

कुछ नेताओं ने ये भी दावा किया, कि आईटीबीपी और सेना के जवान भी गांव वालों को अकसर शक की निगाह से देखते हैं और उन्हें आगे बढ़ने से रोक देते हैं. ताशी नामग्याल ने कहा, ‘शक की नज़र से देखने की बजाय सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे ख़ानाबदोशों को रोका न जाए.’ उन्होंने ये भी कहा, ‘चीन को देखिए, वो हमेशा पहले अपने ख़ानाबदोश भेजते हैं और फिर उनके पीछे पीएलए के सैनिक आ जाते हैं. हमारी सरकार को भी इसी तरह की नीति बनानी चाहिए.’

नेताओं ने ये भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने में सीमावर्ती गांवों में ख़ानाबदोशों की भूमिका को माना जाए. चोंदोन ने कहा, ‘ख़ानाबदोश हमारी सीमाओं के हरावल होते हैं. देशभक्ति और राष्ट्रीयता जैसे बड़े बड़े शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन जब सरहदों का मसला आता है, तो केवल सरहद के लोग ही परेशान होते हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘कोई हमारी मदद को नहीं आता. हम बरसों से अपनी ज़मीन खोते जा रहे हैं, लेकिन किसी को परवाह नहीं है.’

लेकिन नॉर्दर्न कमांड के सैन्य सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि ख़ानाबदोशों को कभी उनके सामान्य काम से रोका नहीं गया है.सेना ने उन्हें कभी नहीं रोका है और इन इलाक़ों में भारतीय नागरिक, बिना रोक-टोक अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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