नई दिल्ली: पैंगोंग झील के फिंगर्स 4 और 8 के बीच चीनी दखल बढ़ना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बदलने की कोशिशों का एक हिस्सा है. यह कहना है कि 2017 में वहां एक बटालियन का नेतृत्व करने वाले पूर्व कर्नल का.
कर्नल एस. डिन्नी (सेवानिवृत्त) ने मंगलवार को, यह खबर आने के पहले कि दोनों पक्षों के बीच सोमवार को 11 घंटे तक चली बैठक के बाद तनाव को चरणबद्ध तरीके से घटाने की सहमति बनी है, दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘यथास्थिति बदलने की चीन की कोशिशें इतनी स्पष्ट और जगजाहिर हैं कि उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहिए.’
डिन्नी ने कहा, पैंगोंग त्सो एक गर्म इलाका हैं जहां एलएसी को लेकर विभिन्न धारणाएं नितांत स्वाभाविक हैं. साथ ही जोड़ा कि पैंगोंग में कोई सीमा रेखा स्पष्ट न होने देना चीन की रणनीति का हिस्सा है.
हालांकि, डिन्नी का मानना है कि इस क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों के बीच घुसपैठ भारत को एक संदेश देने की कोशिश है और इसका कोई सामरिक महत्व नहीं है. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि चीनी अंतत: वापस लौट जाएंगे.
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भारत को एक संदेश
पैंगोंग झील का उत्तरी किनारा आगे हथेली के जैसे आकार का है और इसके विभिन्न उभरे हिस्सों को फिंगर्स की संज्ञा दी गई है जिससे क्षेत्र का सीमांकन हो सके. जहां भारत का कहना है कि एलएसी फिंगर 8 पर है, वहीं चीन इसके भारत के अधिकार क्षेत्र वाले फिंगर 2 क्षेत्र से शुरू होने का दावा करता है.
कर्नल डिन्नी ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान, जब भारतीय सैनिकों को यहां से हटाकर पाकिस्तान के साथ जंग लड़ने के लिए भेज दिया गया, चीन ने फिंगर 4 तक वाहन चलने लायक सड़क बना ली. इसके बाद के वर्षों में चीनी फौज फिंगर 4 तक गश्त करती रही है लेकिन यहां पर कभी कोई निर्माण नहीं किया.
हालांकि, अप्रैल 2020 में चीनी करीब आठ किलोमीटर तक आगे आ गए और फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच कुछ निर्माण भी कर लिए.
कर्नल डिन्नी कहते हैं, ‘भारत यथास्थिति के अपने पूर्व रुख पर कायम है, जिसका मतलब है कि चीनी यह इलाका खाली करें. उन्हें अप्रैल की स्थिति की तरह सिरिजाप में अपनी चौकियों पर वापस लौटना होगा.’
यह पूछे जाने पर एलएसी को लेकर चीन की धारणा क्या है, उन्होंने कहा कि बीजिंग का रुख इस बारे में कभी बहुत स्पष्ट नहीं रहा. उन्होंने आगे कहा, ‘कभी वह दावा करते हैं कि यह फिंगर 4 पर है, कई बार वह इसे फिंगर 2 और यही नहीं फिंगर 3 पर भी बताने लगते हैं. यह सब चीन की रणनीति का हिस्सा है. लेकिन भूमि पर उसकी गश्त फिंगर 4 से आगे कभी नहीं रही.’
उन्होंने कहा, ‘फिंगर 4 तक चीनियों का आना रणनीतिक तौर पर खास मायने नहीं रखता. चीन इस पर दावा जताता रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘चीन ने भारत की तरफ से निर्माण गतिविधियों को चिंताजनक माना है. मुझे लगता है कि वे खुद ही वापस चले जाएंगे. वे केवल खुद को आश्वस्त करना चाहते हैं कि इस क्षेत्र पर उनकी दावेदारी है जहां 1999 में उनकी तरफ से सड़क बनाई जा चुकी है.’
सूत्रों के मुताबिक, भारत फिंगर 2 से फिंगर 4 के बीच सड़क निर्माण कार्य में जुटा है और हाल के समय में इस निर्माण कार्य में तेजी भी आई है.
भारत-चीन के बीच गतिरोध मई के शुरुआत में ही बढ़ने लगा था और यह पिछले हफ्ते चरम पर पहुंच गया जब लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों पक्षों के बीच खूनी संघर्ष हो गया.
संघर्ष में 20 भारतीय जवान शहीद हुए और इस दौरान बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों के भी हताहत होने की बात कही जा रही है. दोनों पक्षों ने सोमवार को हुई बैठक में गलवान घाटी जैसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने पर सहमति जताई. दो एशियाई दिग्गजों के बीच ऐसी हिंसक झड़प एलएसी पर टकराव के दौरान एक सैनिक की जान जाने के 45 वर्षों के बाद हुई थी.
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