नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि कोविड-19 लॉकडाउन के कारण छूटी कक्षाओं की भरपाई के लिए कक्षा 10 और 12 के पाठ्यक्रमों में प्रस्तावित कटौती में पूरे चैप्टर्स नहीं काटे जाएंगे.
सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि उसकी जगह इस काम में लगे एक्सपर्ट्स से कहा गया है कि मूलविषयों और टॉपिक्स में दोहराव को निकालकर पाठ्यक्रम को कम किया जाए.
मोदी सरकार शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए पाठ्यक्रम को घटाने जा रही है, क्योंकि कोविड-19 वैश्विक महामारी, और उसके नतीजे में सोशल डिस्टेंसिंग गाइडलाइन्स ने मिलकर स्कूल कैलेंडर का समय खा लिया है.
हालांकि, गंवाए गए समय की भरपाई के लिए पूरे भारत में स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई कराई. लेकिन वो बहुत से छात्रों की पहुंच से बाहर थी. जिसकी वजह से केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने पाठ्यक्रम को कम करने का फैसला किया है.
‘पाठ्यक्रम को रैशनलाइज़’ करने की इस क़वायद में कक्षा 10 और 12 को प्राथमिकता दी गई है, क्योंकि उनका अंत बोर्ड इम्तिहानों के साथ होता है, जिनके नतीजे छात्र को आगे की शिक्षा का रास्ता दिखाते हैं.
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एचआरडी मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने उन कक्षाओं का काम शुरू करा दिया है, जिनके अगले साल बोर्ड इम्तिहान होंगे. आगे चलकर दूसरी कक्षाओं का सिलेबस भी रैशनलाइज़ किया जाएगा.’
कोई दोहराव नहीं
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस महीने के शुरू में नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग (एनसीआरटी), और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से, सिलेबस को रैशनलाइज़ करने के लिए कहा था.
दिप्रिंट के हाथ लगे आंतरिक संचार के अनुसार इस काम में लगे एक्सपर्ट्स से कहा गया है कि अपने फैसले लेते समय सीखने के परिणामों को ध्यान में रखें.
दस्तावेजों के मुताबिक़, उनसे कहा गया है कि पूरे अध्याय हटाने की बजाय उन्हें ऐसे टॉपिक्स/मूल विषय या सामग्री को कम करना चाहिए, जिसमें ‘दोहराव या ओवरलैप’ हो या इससे जुड़े ‘सीखने के परिणाम किसी दूसरे अध्याय में कवर किए गए हों.’
मूल विषय और टॉपिक्स किसी चैप्टर के एक बड़े शीर्ष का हिस्सा होते हैं. मिसाल के तौर पर कक्षा 10 की विज्ञान की किताब में, ‘एसिड्स, बेसेज़ और सॉल्ट्स’ के बारे में एक चैप्टर है. उस चैप्टर के एक टॉपिक में ‘एसिड्स और सॉल्ट्स के साथ मेटल के रिएक्शन’ की बात की जाती है, जिस पर ‘मेटल्स एंड नॉन-मेटल्स’ नाम के एक दूसरे चैप्टर में भी चर्चा की गई है.
इसी तरह, क्लास 12 की बायोलॉजी किताब में एक चैप्टर है ‘प्रिंसिपिल्स ऑफ इनहेरिटेंस एंड वेरिएशन’ जिसके अंदर ‘म्यूटेशन’ और ‘जिनेटिक डिस-ऑर्डर’ जैसे टॉपिक्स हैं. लेकिन इसी तरह के मूल विषय- जैसे जिनेटिक कोड और डीएनए का अध्ययन, एक दूसरे चैप्टर ‘मॉलिकुलर बेसिस ऑफ इनहेरिटेंस’ में भी कवर किया गया है.
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दस्तावेजों में सुझाया गया है कि इसी तरह के दोहराव, रैशनलाइज़ करने की क़वायद का निशाना होंगे.
सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इसी बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया, ‘सिलेबस को रैशनलाइज़ करने के लिए, हम एनसीईआरटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. हमारे विचार-विमर्श के अनुसार, ये फैसला किया गया है कि कोई पूरा चैप्टर हटाने की बजाय, मूल विषयों को कम किया जाएगा.’
डॉक्युमेंट में आगे लिखा है कि कम किए गए टॉपिक्स की भरपाई के लिए एक्सपर्ट्स से कोई ‘असाइनमेंट या प्रोजेक्ट शामिल करने’ को कहा गया है, ताकि कोई वैचारिक अंतराल न रह जाएं.
एक्सपर्ट्स से ये स्पष्टीकरण देने को भी कहा गया है कि उन्होंने किसी सेक्शन को हटाने का सुझाव क्यों दिया है. अधिकारियों की मंज़ूरी मिलने के बाद घटे हुए सिलेबस को जुलाई तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा.
‘सार को बनाए रखना’
रैशनलाइज़ेशन के लिए एक्सपर्ट्स को दी गई सलाह, सीबीएसई के चेयमेन मनोज आहुजा के उस बयान के हिसाब से ही है, जो उन्होंने इस महीने के शुरू में अशोका यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित एक वर्चुअल कॉनफ्रेंस में दिया था. उन्होंने कहा था, ‘हम पाठ्यक्रम को रैशनलाइज़ कर रहे हैं, हमारी योजना है कि सार को बचाए रखा जाए.’
इसी महीने के शुरू में, एचआरडी मंत्री ने अध्यापकों और शिक्षा विदों से भी कहा था कि वो सोशल मीडिया के ज़रिए, सिलेबस रैशनलाइज़ेशन पर अपने विचार भेजें.
उन्होंने कहा कि बहुत से अभिभावक मंत्रालय को लिखकर सिलेबस कम करने का अनुरोध कर रहे हैं, ताकि सत्र शुरू होने पर छात्र उसे संभाल सकें.
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