नई दिल्ली: जमीयत उलमा-ए-हिंद (जेयूएच) के महासचिव का कहना है कि दिल्ली दंगों के सिलसिले में की जा रही गिरफ्तारियां एकतरफ़ा हैं, जिनकी मंशा एक समुदाय को निशाना बनाना है. लेकिन उन्होंने कहा कि ये कुछ भी नया नहीं है, और उन्होंने आरोप लगाया कि आम तौर पर प्रवृत्ति ये है कि दंगों में मुसलमान ही ज़्यादा मरते हैं, और बाद में इसी समुदाय के लोग ही गिरफ्तार भी ज़्यादा होते हैं.
मदनी ने एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया, ‘स्वाभाविक है कि किसी भी तरह की हिंसा के बाद, गिरफ्तारियां होती हैं. लेकिन इन गिरफ्तारियों का नेचर दिखाता है कि ये एकतरफ़ा रही हैं, और सिर्फ एक कम्युनिटी को निशाना बनाया गया है.’
उन्होंने कहा, ‘दंगे चाहे बीजेपी के राज में हुए हों या समाजवादी पार्टी या कांग्रेस के, इन सब में जो बात सामान्य है, वो ये कि मरते भी मुसलमान ही ज़्यादा हैं, प्रॉपर्टी भी उन्हीं की ज़्यादा तबाह होती है, और गिरफ्तार भी वही ज़्यादा होते हैं.’
फरवरी में हुए दिल्ली दंगों में 53 लोग मारे गए, और सैकड़ों दूसरे हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिए गए हैं. गिरफ्तार हुए बहुत से लोग कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने साल के शुरू में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. इनमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चार छात्र भी शामिल हैं.
मदनी ने कहा, ‘महामारी और लॉकडाउन के दौर में, जिस तरह से कानून प्रवर्तन एजेंसियां लोगों की गिरफ्तारियां कर रही हैं, वो अमानवीय और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना है.’
मदनी ने आगे भी सवाल किया कि जिन सियासी नेताओं ने भड़काऊ बयान दिए थे, उन्हें अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया.
मदनी ने पूछा, ‘अगर आम लोग जिन्होंने कुछ कहा हो, या ना कहा हो, गिरफ्तार किए जा सकते हैं, तो उन नेताओं का क्या जो बदले की बातें कर रहे थे; जिन्होंने कहा था कि सड़कों पर ख़ून बहेगा. उन्हें जवाबदेह क्यों नहीं बनाया जा रहा?’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अगर कुछ लोग किसी अलग मसले पर पूरी तरह क़ानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध जताने के लिए एक जगह जमा होते हैं, तो उनसे राजनीतिक बदला लिया जाता है.’
बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, जिन्होंने हिंसा भड़कने से कुछ ही पहले, सीएए के समर्थन में रैली की थी, उन पर भड़काऊ बयान देने का इल्ज़ाम है, जबकि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने, दंगों से कुछ हफ्ते पहले ही अपने ‘गोली मारो’ आह्वान से विवाद को हवा दी थी.
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केजरीवाल की ख़ामोशी
मदनी ने गिरफ्तारियों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ख़ामोशी अख़्तियार करने पर भी सवाल उठाए, इससे पहले शाहीन बाग प्रदर्शन से दूरी बनाए रखने पर भी केजरीवाल की आलोचना हुई थी, जो राष्ट्रीय राजधानी में सीएए के खिलाफ हो रहे, विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया था. बाद में ये कहने के लिए भी उनकी कड़ी आलोचना हुई थी कि प्रदर्शन की जगह को खाली कराया जाना चाहिए.
ताहिर हुसैन, जो अब एक निलंबित आप नेता हैं, का नाम भी चार्जशीट में शामिल किया है कि उन्होंने तथाकथित रूप से ‘दंगे आयोजित कराने’ में ‘मुख्य रोल’ अदा किया लेकिन केजरीवाल की खामोशी बरक़रार है.
मदनी ने कहा, ‘उनकी (केजरीवाल की) खामोशी पर ऐतराज़ वाजिब है, उन्हें बोलना चाहिए था.’
लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि वो किसी एक आदमी को इल्ज़ाम नहीं देना चाहेंगे, और गिरफ्तारियों को लेकर ‘हर तरफ ख़ामोशी’ है.
मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया
मदनी ने आगे कहा कि मुसलमानों को देश के अंदर, दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है, चाहे बात ज़िंदगी की हो, या इज्जत की.
‘जान, माल, इज्जत, आबरू’- इन सब पैमानों पर ये बात साफ हो गई है कि मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक होकर रह गए हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैं और बोलना चाहता हूं, लेकिन अपने आपको रोक रहा हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हमारी क़ौम नाउम्मीद महसूस करे. लेकिन सभी सबूत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि हम अब यक़ीनन दोयम दर्जे के शहरी बनकर रह गए हैं.’
मदनी ने पुलिस पर भी हिंसा को साम्प्रदायिक रंग देने का आरोप लगाया, और 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों और 2002 के गुजरात दंगों की मिसालें दीं.
उन्होंने इल्ज़ाम लगाया, ‘इनमें से ज़्यादातर दंगे कम्युनल नहीं थे, इन मामलों में 99 पर्सेंट हिंसा पुलिस एक्शन की वजह से हुई. दिल्ली में भी ये पुलिस थी, जिसने मुसलमान कॉलोनियों और मुसलमान की दुकानों को निशाना बनाने में भीड़ की मदद की.’
मीडिया ने महामारी को साम्प्रदायिक बनाया
मदनी ने ‘महामारी को साम्प्रदायिक बनाने’ के लिए मीडिया को भी आड़े हाथों लिया.
मदनी का कहना था, ‘मुख्यधारा का मीडिया और सरकार दोनों, देश में महामारी को साम्प्रदायिक रंग देने के लिए ज़िम्मेदार हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि इसकी वजह से आम मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है.
मदनी तबलीग़ी जमात के उस जमावड़े की तरफ़ इशारा कर रहे थे, जो मार्च के मध्य में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में हुआ था, और वायरस का एक शुरुआती हॉट-स्पॉट बनकर उभरा था.
उस जमावड़े के कुछ हफ्तों के भीतर, मुसलमानों को परेशान करने की बहुत सी ख़बरें सामने आईं. उत्तर प्रदेश के महोबा में मुसलमान रेहड़ी वालों के एक समूह ने, अप्रैल में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को एक लिख़ित शिकायत देकर इल्ज़ाम लगाया, कि अपनी मज़हबी पहचान की वजह से, एक ग्रुप ने उन्हें गालियां देकर अपना सामान बेचने से रोक रहा था, और कुछ ने ये भी आरोप लगाया, कि उन्हें तबलीग़ी जमात का मेम्बर बताया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश में एक मुसलमान शख़्स ने, जो तबलीग़ी जमात के एक मेम्बर के सम्पर्क में था, ख़ुदकुशी कर ली, क्योंकि उसकी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी, गांव वाले तथाकथित रूप से उसका सामाजिक बॉयकॉट कर रहे थे.
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उन्होंने कहा, ‘ऐसे समय जब कोविड के मामले बढ़ रहे हैं, हमें साथ मिलकर इससे लड़ना चाहिए था लेकिन इसकी बजाय कम्युनिटी को ही निशाना बनाया जा रहा है- चाहे वो दिल्ली दंगों में गिरफ्तारियों के नाम पर हो, या तबलीग़ी जमात की घटना के नाम पर.’
उन्होंने ये भी कहा कि दूसरी बातों के अलावा मीडिया ने उन्हें ‘जिहादी’ तक कहने की कोशिश की.
मदनी का कहना था, ‘उन्होंने हर वो बुरी चीज़ उनके साथ जोड़ी, जो जोड़ सकते थे. मुझे तो ताज्जुब है कि उन पर अभी तक, देश विरोधी हरकतों में शामिल होने का आरोप नहीं लगाया गया, क्योंकि उन पर हर उस चीज का इल्ज़ाम लग चुका है, जो बुरी है.’
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Muslaman hi sabse jauda dange karne ke Karan hote hai…..bo nirdoso ko marte hai…Puri muslamano ka histry nirdoso ko Marne ki rahi hai…..aaj b libiya..Iraq….kasmiri Mai nirdoso ko Mara ja Raha hai or iske lie Puri trah se musalman hi jimmedar hai……jab Tak bo apne aap ko sahi nahi karte ..muslamano se duniya pareshan hi rahegi