नई दिल्ली: ‘कोई भी परिवार अपने सदस्यों के बीच टकराव से पूरी तरह अछूता नहीं है. बड़ों का छोटों को डांटना और कभी-कभार उनसे अपशब्द कहना आम बात है. बहू से घर के/घरेलू काम कराना भी कोई असामान्य बात नहीं है.’ केरल उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणी पिछले सप्ताह एक व्यक्ति की शादी निरस्त कराने की दरख्वास्त को स्वीकार करते हुए की.
जिसमें उसने ये दलील दी थी कि उसकी पत्नी ने उसे मां से दूर रहने के लिए मजबूर कर मानसिक पीड़ा दी और वह उसे मानसिक यातना झेलने को बाध्य किया.
जस्टिस एएम शफ़ीक़ के नेतृत्व वाली दो जजों की खंडपीठ ने व्यक्ति के शराबी बनने के लिए भी पत्नी की अलग रहने की ज़िद को दोष दिया.
अदालत ने कहा, ‘साक्ष्यों से यही संकेत मिलता है कि प्रतिवादी और याचिकाकर्ता की मां के बीच सौहार्द नहीं था और दोनों में अक्सर कहासुनी होती थी. ऐसे में याचिकाकर्ता का बलि का बकरा बनते हुए बेरुखी झेलना स्वाभाविक है. ऐसी परिस्थिति में पत्नी के लिए भी यह स्वाभाविक है कि वह अपने पति को पारिवारिक जीवन से अलग रखने का निरंतर प्रयास करेगी, और ये बात नि:स्संदेह पति के लिए यातनापूर्ण रही होगी.’
अदालत ने आगे कहा, ‘इस मामले में याचिकाकर्ता के शराबी बनने को केवल प्रतिवादी द्वारा डाले गए दबाव का ही स्वाभाविक परिणाम माना जा सकता है, कि वह मां से दूर रखने के लिए अलग घर ले.’
यह भी पढ़ेंः 2008 का वह श्रमिक क़ानून जो लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को सुरक्षा प्रदान कर सकता था, कभी लागू नहीं हुआ
बहू से घरेलू काम कराया जाना
केरल उच्च न्यायालय का फ़ैसला एक पारिवारिक अदालत द्वारा तलाक़ की अर्जी खारिज किए जाने के खिलाफ़ पति की याचिका पर आया है.
उसने याचिका में इस बात का ब्यौरा दिया है कि कैसे उसकी पत्नी ने कथित रूप से उसे सरेआम अपमानित किया और ये कहते हुए नीचा दिखाया कि वह उसका पति बनने के काबिल नहीं है.
पत्नी ने क्रूरता के आरोप का खंडन किया. उसने अपनी सास पर उसके साथ बुरा व्यवहार करने, तथा उसके पति को ‘नशे की हालत’ में देर से घर लौटने के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया. पत्नी ने कहा कि उसे ससुराल छोड़ने के लिए विवश किया गया, फिर भी वह पति के साथ रहने के लिए तैयार है बशर्ते वह शराब पीना बंद कर दे.
दोनों पक्षों द्वारा दायर बयानों और साथ ही निचली अदालत के समक्ष दर्ज बयानों पर गौर करने के बाद अदालत की राय यह थी कि पत्नी ने, विशेष रूप से, सास के प्रति अपनी नापसंदगी ज़ाहिर की है क्योंकि वह उसे घर का काम करने के लिए बाध्य करती थी.
खंडपीठ ने कहा, ‘बहू से घर के/घरेलू काम कराना कोई असामान्य बात नहीं है. प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से और भी स्पष्ट हो जाता है कि पूर्व उल्लिखित बातें याचिकाकर्ता (पति) की मां के प्रति उसके वैमनस्य का आधार बन गईं.’
यह भी पढ़ेंः कोविड ने सुप्रीम कोर्ट को सुधार तेज करने का कारण सौंपा, न्याय प्रक्रिया सुगम होने के आसार
शादी में असुधार्य व्यवधान
पति के अनुसार, पत्नी 20 फरवरी 2011 को ससुराल छोड़कर अपने मायके चली गई, और उसके बाद वापस नहीं आई. उसने भी उसे वापस लाने की कोई कोशिश नहीं की.
अदालत ने कहा, ‘प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा उल्लिखित याचिकाकर्ता (पति) के उपरोक्त आचरण से साबित होता है कि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी और अपनी मां के मध्य गंभीर उत्पीड़न झेलना पड़ा जो कि उसके लिए असह्य हो गया.’
दोनों पक्षों के आचरण पर गौर करने के बाद अदालत का निष्कर्ष था कि दोनों के लिए वैवाहिक संबंध फिर से शुरू करना मुश्किल है.
खंडपीठ ने कहा, ‘प्रतिवादी की तरफ से वैवाहिक जीवन जारी रखने के लिए याचिकाकर्ता से एक बार भी संपर्क नहीं किया गया. इसलिए, अदालत के समक्ष मौजूद इस मामले में दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक संबंध असुधार्य रूप से टूट चुका है.’
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)