नई दिल्ली: केंद्र में कोविड से संबंधित काम में शामिल, सचिव स्तर के प्रमुख अधिकारियों से लेकर, राज्यों में स्वास्थ्य सचिवों के अचानक तबादलों तक, केंद्र व राज्य सरकारों ने एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक संकट के बीच में, बहुत से टॉप आईएएस अधिकारियों को, बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
पिछले कुछ हफ्तों में केंद्र में उपभोक्ता मामलों व खाद्य़ विभाग के सचिव, और पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, तथा उत्तराखण्ड के स्वास्थ्य सचिव, और क्रमश: महाराष्ट्र व गुजरात के, बृहन्मुम्बई और अहमदाबाद नगर निगम आयुक्तों का तबादला कर दिया गया है.
कोविड-19 से मिली विशाल प्रशासनिक चुनौतियां भी सरकारों को, सीनियर अधिकारियों का तबादला करने से नहीं रोक पाईं, भले ही वो संकट प्रबंधन का प्रमुख हिस्सा रहे हों.
तबादलों की इस बाढ़ के पीछे सिविल सर्वेंट कई कारण बताते हैं: संकट के अयोग्य प्रबंधन के लिए अफसरों को बलि का बकरा बनाना; उन्हें सज़ा देना जो काम नहीं कर पाए; नौकरशाही के बड़े काडर में कड़ा दिखने की चाह; और राजनेताओं के छोड़े गए स्पेस पर फिर से दावा करना, जिसे महामारी के शुरू में उन्होंने प्रशासकों के लिए छोड़ दिया था.
हालांकि राजनेताओं का मानना है कि वो जनता के प्रति जवाबदेह हैं, और संकट के दौरान अगर आईएएस अधिकारी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें हटाना पड़ता है. इसके साथ उन्होंने एक चेतावनी भी लगा दी-ऐसे तबादले केस-टु-केस आधार पर होने चाहिएं.
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तबादलों की बाढ़
कोविड संकट की शुरूआत में, 25 मार्च को जब लॉकडाउन घोषित किया गया, तो राजनेताओं और आईएएस अधिकारियों के बीच, शासन की अनकही हाईरार्की अस्थाई रूप से ध्वस्त हो गई, और अधिकारी इनफेक्शन के खिलाफ लड़ाई में, फैसले लेने का केंद्र बन गए.
उसके बाद से, राज्यों व केंद्र के स्तर पर बहुत सारे तबादले देखे गए हैं.
अप्रैल के अंत में, जब प्रवासी संकट गहराया, तो नरेंद्र मोदी सरकार ने खाद्य़ और उपभोक्ता मामलों के सचिवों को बाहर का रास्ता दिखा दिया-वो दोनों अपने विभागों के प्रभारी थे, जिनपर संकट के दौरान महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करने का ज़िम्मा था. ये क़दम नौकरशाही में एक बड़े फेरबदल का हिस्सा था.
सूत्रों के अनुसार, संकट के दौरान इन दोनों विभागों की ख़राब कारगुज़ारी से सरकार ख़ुश नहीं थी, क्योंकि लॉकडाउन में ज़रूरी वस्तुओं, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए, मुनासिब दामों पर अनाज की सप्लाई सुनिश्चित न करने की वजह से, उसे बहुत आलोचनाएं झेलनी पड़ रहीं थीं.
उसी फेरबदल में मोदी सरकार ने, सूचना व प्रसारण सचिव को भी बाहर कर दिया, हालांकि उन्हें कुछ महीने पहले ही, दिसम्बर 2019 में नियुक्त किया गया था. ये क़दम भी इसलिए उठाया गया, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान सरकारी संचार को लेकर भी, सत्ता के गलियार नाख़ुश चल रहे थे.
बलि का बकरा बनाना ‘खेल का स्वभाव’
इन तबादलों के बारे में बात करते हुए, केंद्र के एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा, “जो कोई इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था, वो इसे नहीं समझता, बल्कि वो किसी भी सरकार को नहीं समझता.”
उन्होंने कहा, “हर बार जब विशाल प्रवासी संकट जैसी कोई पीआर नाकामी होती है, तो ये अधिकारी ही होते हैं जिन्हें इसका ज़िम्मेवार ठहराया जाता है, जैसे कि शुरू में उन्हें बिल्कुल खुला हाथ मिला हुआ था…खेल का यही स्वभाव है.”
उन सभी राज्यों ने, जिनमें कोविड मामलों की संख्या बहुत अधिक है-गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखण्ड, यही रास्ता अपनाया और अपने कुछ प्रमुख अधिकारियों को हटा दिया, जिनमें स्वास्थ्य सचिव भी शामिल थे.
ऊपर हवाला दिए गए सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा, कि कुछ मामलों में स्पष्ट है कि अधिकारियों को, बलि का बकरा बनाया गया है.
नाम न छापने की शर्त पर उस अधिकारी ने कहा,’जैसे गुजरात में, अहमदाबाद निगम आयुक्त जिन्हें हटाया गया, वो मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे कि राज्य में 8 लाख केस हो सकते हैं…उन्हें बहुत ज़्यादा टेस्ट कराने का भी दोषी बनाया जा रहा था. ज़ाहिर था कि सरकार बुरा नहीं दिखना चाहती थी, इसलिए उन्होंने एक तरह से दूत को ही शूट कर दिया.’
2001 बैच के आईएएस अधिकारी, अहमदाबाद कमिश्नर विजय नेहरा का 18 मई को आयुक्त ग्रामीण विकास के पद पर तबादला कर दिया गया.
इसी तरह बिहार में गहराते कोविड-19 संकट के बीच, ख़ासकर प्रवासियों की बाढ़ आ जाने के बाद, प्रदेश सरकार ने 20 मई को अचानक बिना कोई कारण बताए, स्वास्थ्य सचिव संजय कुमार का तबादला कर दिया.
अप्रैल में संकट के शुरूआती दिनों में, मध्य प्रदेश सरकार ने उस समय के स्वास्थ्य सेवा आयुक्त प्रतीक हजेला का तबादला, राज्य सरकार की एक ट्वीट द्वारा ये कहते हुए कर दिया, ‘कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान अपने कर्तव्यों के प्रति बेहद लापरवाही भरे रवैये के कारण, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रतीक हजेला को, स्वास्थ्य सेवा आयुक्त के पद से तुरंत हटाने का निर्देश दिया.’
उसके बाद से चौहान सरकार ने, जो शुरू में संकट के ऊपर सियासत को तरजीह देने के लिए आलोचना का शिकार हो रही थी, स्वास्थ्य विभाग में भी कई अधिकारियों के तबादले किए हैं, जिनमें स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के निदेशक, भोपाल, उज्जैन तथा खण्डवा के चीफ मेडिकल और हेल्थ ऑफिसर्स, और हॉटस्पॉट ज़िलों के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट शामिल हैं.
‘जवाबदेही अंतत: नेताओं की ही होती है’
सचिव स्तर के एक आईएएस अधिकारी ने कहा कि बलि के बकरे का तर्क हर मामले में लागू नहीं होता. उनका कहना था, ‘उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में, बीएमसी कमिश्नर का तबादला दो महीने बाद कर दिया गया, और इसके बाद उन्हें एक अच्छा ओहदा दे दिया गया.’
नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने ये भी कहा कि, ‘महाराष्ट्र में जो हुआ, उसका ये अर्थ नहीं लगाया जा सकता, कि लड़ाई के बीच में घोड़े हटा दिए गए, क्योंकि बहरहाल इस सब के बाद, किसी संकट में भी जवाबदेही सरकार की ही होती है, नौकरशाही की नहीं.’
8 मई को बृहन्मुम्बई नगर निगम आयुक्त प्रवीण परदेशी का, शहरी विकास विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर तबादला कर दिया गया.
एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन ने, ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी की बात से सहमति जताई. उन्होंने कहा,’बलि का बकरा बनाए जाने को साबित करना बहुत मुश्किल हो सकता है…कुछ मामलों में ये ज़ाहिर होता है, लेकिन आपको समझना होता है कि आख़िर में, जवाबदेही नेताओं की ही बनती है. इसलिए उन्हें पूरा अधिकार होता है किसी को हटाने का, जो उनके हिसाब से काम नहीं कर रहा है.’
उन्होंने आगे कहा,’आप जहां भी देखिए, ये नेता और मुख्यमंत्री ही हैं जो निशाना बनते हैं…दोष उन्हीं पर आता है, भले ही वो किसी चीज़ के लिए ज़िम्मेदार न हों, इसलिए जब तक किसी को प्रताड़ित करने का ठोस सबूत न हो, तब नेताओं पर बलि का बकरा बनाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता.’
केजे अलफॉन्स, जो पिछली मोदी सरकार में एक केंद्रीय मंत्री थे, और ख़ुद भी एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, इस बारे में महीन विचार रखते हैं.’तबादलों को केस टु केस आधार पर आंकना चाहिए. सिद्धांत के तौर पर, अगर कोई अफसर अच्छा काम कर रहा है और वो सक्षम है, तो किसी संकट के बीच में आपको उन्हें छूना नहीं चाहिए, क्योंकि संकट को रोके रखने में उनकी एक प्रमुख भूमिका होती है.’
उन्होंने ये भी कहा कि, ‘उसी तरीक़े से, चूंकि ये एक संकट की स्थिति है, और डीएम, हेल्थ सेक्रेटरी, या हेम सेक्रेटरी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें हटाना पड़ता है.’ उन्होंने आगे कहा कि, ‘अंतत: ये राजनीतिक कार्यकारी ही है, जो जनता के प्रति ज़िम्मेदार और जवाबदेह होता है.’
बीजेपी सांसद भूपेंद्र यादव अधिक स्पष्ट थे. उन्होंने कहा ‘संकट हो या न हो, आईएएस अधिकारियों का तबादला करना, राजनीतिक कार्यकारी का विशेषाधिकार होता है…चीज़ों का स्वभाव यही है.’
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली के अनुसार, जल्दबाज़ी में किए गए तबादले, एक हतोत्साहित सरकार का सबूत होते हैं. उन्होंने कहा, ‘बीजेपी सरकार का मुंह लाल हो गया है, इसलिए हर राज्य में वो अफसरों को हटा रहे हैं. ये और कुछ नहीं, बस उनकी अक्षमता का सबूत हैं.’
आपदा राजनीति
ऊपर हवाला दिए गए सचिव स्तर के अधिकारी ने कहा कि इन तबादलों की वजह से आईएएस अधिकारी ख़ुद को ठगा हुआ महसूस नहीं कर रहे हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘जहां भी आप किसी आईएएस अधिकारी को हटाया जाता देखते हैं, उसकी जगह कोई दूसरा आईएएस नियुक्त हो जाता है… इसलिए ऐसा नहीं है कि आईएएस को, एक ग्रुप की तरह निशाना बनाया जा रहा है.’
लेकिन, उन्होंने आगे कहा, कि जो कुछ हो रहा है वो एक क्लासिक ‘आपदा राहत राजनीति’ है. उन्होंने ये भी कहा, ‘हर संकट में, बचाव के पहले चरण में, प्रशासन और पुलिस सबसे आगे रहते हैं, क्योंकि शासन में वो आगे होते हैं.’
अधिकारी ने कहा,’लेकिन जब राहत और पुनर्वास का समय आता है, तो नेता सामने आते हैं और दिखना चाहते हैं…अब वही हो रहा है-सियासी जमात, जो पहले पीछे हट गई थी, अब बाहर निकल आई है.’
उन्होंने ये भी कहा,’वो कोविड के आगे का जीवन देख रहे हैं, इसलिए वो फिर से उस जगह को लेना चाहेंगे, जो नौकरशाहों को दे दी गई थी, और बलि का बकरा उसी प्रक्रिया का हिस्सा है.’
लेकिन, अधिकारी ने कहा, कुछ अपवाद भी होते हैं. ‘जैसे कि पंजाब में, मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री के अलावा तमाम कैबिनेट मंत्रियों से समस्या रही है…लेकिन मुख्यमंत्री ने ये रुख़ इख़्तियार किया है, कि संकट के दौरान मुख्य सचिव को नहीं हटाया जाएगा, क्योंकि वो नहीं चाहते कि इस स्टेज पर, पूरे प्रशासन का हौसला कमज़ोर पड़े.’
अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन वो एक अपवाद है, मानक नहीं है…आगे चलकर आईएएस अधिकारियों को चीज़ें ग़लत होने का, ज़्यादा से ज़्यादा दोष अपने ऊपर लेना होगा.’
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