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Wednesday, 20 November, 2024
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शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में मिक्स सिग्नल देना क्या बताता है

महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ ठीक नहीं चल रहा है ऐसे में शरद पवार का राज्यपाल से मिलना कई संकेत दे रहा है यह रूटीन मीटिंग से अलग है. शरद पिछले तीस सालों से राजनीति में मिक्स सिग्नल देते आ रहे हैं.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र में कोविड की स्थिति गंभीर बनी हुई है संक्रमितों का आंकड़ा 50 हजार के पार हो चुका है. इसी बीच वहां राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है कि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के बीच मतभेद भी शुरू हो गए हैं. मंगलवार को #CutTheClutter में दिप्रिंट के एडिटर इन चीफ शेखर गुप्ता ने यही बताने की कोशिश की साथ ही कोरोना संक्रमण के बीच केरल कैसे बना रोल मॉडल राज्य इसकी जानकारी भी दी.

महाराष्ट्र में अभी देखा जाए तो राजनीतिक पेचीदा होने के साथ-साथ अप्राकृतिक भी है. साथ ही कोविड की दर भी वहां बहुत तेजी से बढ़ रही है. साथ ही मरने वालों की संख्या भी यहां तेजी से बढ़ रही है जो देश के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. इसके बाद गुजरात का नंबर आता है और ये दोनों ही राज्य आर्थिक स्तर पर देखा जाए तो भारत की रीढ़ हैं और दोनों ही देश की आर्थिक अर्थव्यवस्था में बड़ा किरदार निभाते हैं.


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महाराष्ट्र पर फोकस

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए सूबे की पुरानी सरकार ने शिवसेना पर हमला बढ़ा दिया है. पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उद्धव ठाकरे पर हमला बोला, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी हमलावर बने हुए हैं. यही नहीं कांग्रेस की तरफ से भी ‘पुशबैक’ आ रहा है.

आज राहुल गांधी ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पार्टी को बचाते हुए कहा कि ‘हम सिर्फ सपोर्ट कर रहे हैं. ‘ हमारी सरकार तो पंजाब में, राजस्थान में और छत्तीसगढ़ में हैं.

राहुल गांधी के इस बयान से कांग्रेस की महाराष्ट्र में दूरी बनाते हुए देखा जा रहा है. हालांकि अगर याद किया जाए तो राहुल गांधी कभी भी शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र के साथ सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थीं.

शरद पवार का मिक्स सिग्नल

लेकिन जिस तरह से शरद पवार राज्यपाल से मिलकर आए हैं और वह कुछ भी अचानक नहीं करते हैं. पिछले तीस सालों से राजनीति में वह हमेशा से ही मिक्स सिग्नल देते आ रहे हैं.

बता दें कि एनसीपी भी शिवसेना का कोई जोरदार समर्थन नहीं कर रही है. और ये तीनों ही पार्टियां बैलेंस बैठाने में नाकामयाब साबित हो रही हैं. मजेदार बात ये है कि इन सभी की एक की 56, एक की 54 और एक की 44 सीटें हैं तो किसी एक पार्टी का वर्चस्व भी नहीं है. शिवसेना ने पूरी ताकत अपने पास रखी है और उद्धव ठाकरे एक नौसिखिया राजनेता हैं. और वह खुले दिल से सभी राजनीति नहीं कर पा रहे हैं उन्होंने सारी ताकत अपने पास रखी है. जिसकी वजह से समर्थन दे रही पार्टियों से दूरी बनना स्वभाविक है.

अगर मुंबई में बढ़ते संक्रमण की बात करें तो जो बंदोबस्त होना चाहिए था वो भी देखने को नहीं मिल रहा है.हालांकि अब भाजपा भी इस समय उद्धव सरकार पर हमले बढ़ा रही है, मोदी सरकार को सोचना होगा कि यह समय राजनीति का नहीं है और देशहित में काम करना चाहिए.

जहां तक उद्धव ठाकरे का मुंबई को मैनेज करने का सवाल है तो उन्होंने संभालने की कोशिश की है लेकिन तजुर्बे की कमी ने उन्हें बहुत कुछ करने नहीं दिया है या अगर उन्हें तजुर्बा होता तो शायद वो और अच्छा करते. उन्हें अपनी सहयोगी पार्टियों के तजुर्बे का भी सहयोग लेना चाहिए था. अफसरों का चुनाव और बीएमसी पर नियंत्रण बड़ा मुद्दा है.


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ऑफ द कफ में शैलजा

कोरोना संक्रमण के दौर में दक्षिण का एक राज्य केरल रोल मॉडल राज्य बन चुका है. सबसे पहला कोविड का मरीज इसी राज्य में आया और उन्होंने इसे कैसे संभाला इसके बारे में दिप्रिंट के #OffTheCUff कार्यक्रम में वहां की स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा जिन्हें लोग शैलजा टीचर के नाम से जानते हैं ने बताया कि कैसे उन्होंने केरल संभाला.

14 जनवरी को जब डब्ल्यूएचओ जब यह कह रहा था कि यह इंसान से इंसान में फैलता है उससे पहले उन्होंने तैयारी करनी शुरू कर दी थी कि क्योंकि वह जानती थीं कि केरल के कई छात्र वुहान में पढ़ते हैं. कम टेस्टिंग पर शैलजा ने कहा कि रणनीति के साथ टेस्ट किया जाना चाहिए.

ट्रेसिंग, फॉलोअप और आइसोलेशन का इस्तेमाल किया साथ ही सोशल इंडीकेशन सिस्टम भी वहां का बहुत अच्छा है. और यह कहना गलत न होगा कि केरल का हेल्थ सिस्टम भारत में सबसे अच्छा है. वैसे दक्षिण के तीन राज्य कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश ने कोरोनासंक्रमण को बहुत अच्छे से संभाला है लेकिन  अभी इसमें और भी लहरे आनी हैं तो देखना होगा कि कौन सा राज्य इसमें पास होता है और कौन सा फेल..क्योंकि यह एक मूविंग टार्गेट की तरह है.

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