उन्नाव/कानपुर: कोरोनावायरस के कारण लागू हुए लाॅकडाउन का असर कानपुर की लेदर इंडस्ट्री पर काफी भी पड़ा है. भले ही लेदर फैक्ट्री व कई टेनरी मालिकों ने संचालन शुरू कर दिया हो लेकिन लेबर क्राइसिस से जूझना पड़ा रहा है. अधिकतर मजदूर अपने घर जा चुके हैं और दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूर यहां रहते हैं वो घर जाने की जुगत में लगे हैं. लेबर क्राइसिस के कारण कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं और जो खुली हैं उनमें मजदूर की भारी कमी है.
उन्नाव के गढ़ी गांव में एक लेदर फैक्ट्री में कार्यरत मोहम्मद नईम बताते हैं, कच्चे माल का उत्पादन पूरी तरह ठप पड़ा है. माल न मिलने से चमड़ा उत्पाद बनाने वाली निर्यातक इकाइयां अपना पुराना ही आर्डर पूरा नहीं कर पाई हैं.’
वह आगे कहते हैं, ‘कच्चा माल का काम ज्यादातर असम, बंगाल के प्रवासी मजदूर करते थे. उनमें अधिकतर चले गए और जो बचे हैं वे वापस घर जाने की जुगत में हैं.’
नईम के मुताबिक, 70 फीसद से अधिक वर्कर अपने-अपने गांव जा चुके हैं. लॉकडाउन 4.0 में उनके लौटने की उम्मीद थी लेकिन अभी नहीं लौटे हैं.
इस कारण करोड़ों का नुकसान
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल ही में कानपुर के जाजमऊ की 134 टेनरियों और निर्यातक इकाइयों को उत्पादन करने की अनुमति मिली है लेकिन अधिकतर टेनरी मालिक मजूदरों के जाने के कारण लेबर क्राइसिस से परेशान हैं.
टेनरी मालिक हफीजुर रहमान (बाबू भाई) ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले तीन महीने से काम ठप पड़ा है.’
‘अब खोलने की इजाजत मिली भी तो कई टेनरी के पास लेबर ही नहीं बचे हैं, किससे काम कराए. ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की स्थिति भी पहले जैसी नहीं रही है.’
बाबू भाई आगे कहते हैं, ‘कई श्रमिकों को फोन किया. कोई गांव में ‘क्वारेंटाइन’ है तो कोई अभी लौटना नहीं चाहता.’ बाबू भाई के मुताबिक आंकड़ों में कहना तो मुश्किल है लेकिन पिछले दो महीने में कानपुर की लेदर इंडस्ट्री को करोड़ो का नुकसान हुआ है.
स्मॉल टैनर्स एसोसिएशन के सदस्य फिरोज़ आलम ने दिप्रिंट को बताया, ‘लॉकडाउन के कारण सारी टेनरी बंद हो गई थीं. शुरुआत में तो हमने हमारे मजदूरों को सैलरी भी दी हैं.
वह आगे कहते हैं फिलहाल कई निर्यातक टेनरियों को खोला गया लेकिन हम चाहते हैं कि सभी टेनरियों को खोला जाए.
फिरोज़ ने बताया, ‘पहले कुंभ के कारण 2019 में टेनरी बंद की गई थीं तब कई महीनों तक चमड़े का व्यापार ठप पड़ा था. इसके बाद अब इस साल लॉकडाउन में सारा बिजनेस चौपट हो गया. हम भी बचे हुए मजदूरों को कब तक सैलरी दे पाएंगे.’
सरकार से हम मदद की गुहार लगाना चाहते हैं, जो टेनरी खुलनी बची हैं उन्हें खोला जाए और स्माॅल टेनरी मालिकों की सहायता की जाए.
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लेदर के कारोबार से जुड़े उन्नाव-कानपुर कोरोबारी बताते हैं कि अघिकतर श्रमिक बिहार, बंगाल और पूर्वी यूपी के हैं. कानपुर और उसके आसपास के जिलों यानी स्थानीय श्रमिकों की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा नहीं है. 30 फीसद लेबर से अधिक लेदर उत्पादन कराना संभव नहीं. इसमें भी अलग-अलग तरह के कौशल की जरूरत होती है. सबका अलग-अलग स्पेशलाइजेशन होता है
बंगाल -असम के कई प्रवासी मजदूर फंसे है
उन्नाव में गढ़ी गांव के पास लेदर फैक्ट्रियों में काम करने वाले बंगाल व असम के कई मजदूर अभी भी फंसे हैं. वे अपने राज्य लौटना चाहते हैं. असम के रहने वाले जाकिर खान ने बताया कि उनके 80% साथ अपने -अपने गांव लौट चुके हैं. वह भी यहां से जाना चाहते हैं. कम से कम कुछ महीने तो नहीं लौटना चाहते. वहीं बंगाल के असद बताते हैं कि कई साथियों को कंपनियों की ओर से घर भेजने के लिए बस प्रोवाइड कराई गई लेकिन उन्हें नहीं मिली है. लॉकडाउन में शुरुआत में एक महीने तक सैलरी मिली लेकिन फिर हमें नहीं मिली .
टेनरी एसोसिएशन के मुताबिक, 2014 में जाजमऊ और कानपुर के क्षेत्रों में 400 से अधिक रजिस्टर्ड टेनरी यानी चमड़े के कारखाने संचालित थे लेकिन सरकार की अनदेखी और प्रदूषण को लेकर उठते सवालों के कारण अब लगभग 250 टेनरियों ही चल रही हैं. उनमे भी कई तो लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी हैं. कई तो घाटे के कारण भी पहले ही बंद हो गई थीं.इस पूरे कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप 5 लाख से ज़्यादा लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी है.
Mughe isme kam karna hi office aur me B A
Tak ada hu