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Friday, 22 November, 2024
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आधार, मनरेगा, डीबीटी, ग्रामीण आवास– कांग्रेस की विरासत को मोदी ने कैसे हड़पा

कांग्रेस ने कल्याणकारी तंत्र की सामग्री तैयार कर रखी थी. प्रधानमंत्री ने बस अपनी रेसिपी के अनुसार उनको परस्पर मिलाने और मोदी 'तड़का' लगाकर अपना बताते हुए बेचने का काम किया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धीरे-धीरे लेकिन बहुत गंभीरता और राजनीतिक चतुराई के साथ, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों की अधिकांश कल्याणकारी विरासत को हड़प लिया है.

आधार से लेकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना और मनरेगा से लेकर ग्रामीण आवास योजना तक– मोदी सरकार ने कांग्रेस की कई बहुप्रचारित पहलकदमियों को अपना लिया है, जिसके बल पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ब्राह्मण-बनिया पार्टी की अपनी पुरानी छवि को मिटाते हुए ग्रामीण भारत के हितैषी के रूप में खुद को स्थापित कर पा रही है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून (मनरेगा) योजना के लिए अतिरिक्त 40,000 करोड़ आवंटित किए जाने के साथ ही मोदी सरकार ने संकट के समय इस योजना का अधिकतम उपयोग करने का इरादा जाहिर कर दिया है. उल्लेखनीय है कि मनरेगा एक ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम है जिसे सबसे पहले यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू किया गया था.

ग्रामीण भारत पर पकड़ एक राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस की ताकत हुआ करती थी, पर धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भाजपा जगह बनाने लगी जो कि पहले अधिकाधिक शहर केंद्रित पार्टी मानी जाती थी. हालांकि इसका चुनावी या राजनीतिक रूप से अधिक प्रतीकात्मक महत्व है– मोदी ने कांग्रेस की पहलकदमियों का इस्तेमाल अपनी जनकल्याणकारी छवि गढ़ने के लिए किया है.

और यह संभव कैसे हुआ? ऐसा सिर्फ इसलिए हो सका क्योंकि कांग्रेस ने खुद ही अपनी बनाई योजनाओं को त्यागने या उसे अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में प्रचारित नहीं करने की मूर्खता की. इसके विपरीत, मोदी ने अपने प्रतिद्वंदी की पहल का चालाकी से उपयोग करने और आगे चलकर उन्हें अपनी योजनाओं के रूप में पेश करने के महत्व को समझा.

मोदी ने कांग्रेस की योजनाओं को कैसे हड़पा

2014 में सत्ता में आने के बाद से ही नरेंद्र मोदी ने बड़ी सटीकता के साथ अपने पूर्ववर्तियों के कई नवाचारों को अपनाया है, जिससे उन्हें कल्याणकारी शासन का अपना मॉडल तैयार करने में मदद मिली है.


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याद करें 2014 का साल जब मोदी ने देश की सत्ता बस संभाली ही थी. उन्होंने ठंडे बस्ते में डाल दी गई आधार योजना को निकालकर झाड़ा-पोंछा, कई उच्चस्तरीय बैठकें की और स्पष्ट कर दिया कि विशिष्ट पहचान संख्या की इस योजना को आगे बढ़ाया जाएगा. हालांकि नंदन नीलेकणि के नेतृत्व में इस योजना की परिकल्पना करने वाली यूपीए सरकार ने इसका कानूनी आधार तैयार नहीं किया था. ये काम मोदी सरकार ने किया जिसने इसके समर्थन में कानून बनाया और उसके बचाव में लंबी और ध्रुवीकृत कानूनी लड़ाई लड़ी.

यूपीए द्वारा परिकल्पित आधार कार्यक्रम अब हर तरह से हमेशा के लिए मोदी का हो चुका है.

इसी तरह प्रत्यक्ष लाभ अंतरण या डीबीटी योजना भी कांग्रेस द्वारा 2013 में बहुत धूमधाम के साथ शुरू की गई (जो आधार के साथ सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के वितरण की व्यवस्था को मज़बूत करती है), जिसे मोदी ने गरीब समर्थक नीतियों के कार्यान्वयन में जमकर इस्तेमाल किया है. और अभी कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी उनकी सरकार ने गरीबों की मदद करने के लिए नकदी हस्तांतरण के इस तंत्र के उपयोग की बात की थी.

ग्रामीण आवास योजना– इंदिरा आवास योजना– के कार्यान्वयन से संबंधित अनेक गड़बड़ियां थीं. मोदी ने इस योजना के महत्व को महसूस किया और इसका नाम बदलकर 2015 में इसे खुद से जोड़ लिया, लेकिन साथ ही इसमें कई बदलाव भी किए जिससे यह पहले की तुलना में अधिक प्रभावी और लोकप्रिय बन सकी. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बार-बार सुनाई देने वाला एक जुमला था- ‘मोदीजी ने घर दिया है’, जिसने दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता हासिल करने में प्रधानमंत्री की बहुत मदद की.

अब एक बड़ी राशि आवंटित करते हुए मोदी ने मनरेगा को बिल्कुल अपना बना लिया है, ये अलग बात है कि 2015 में संसद में अपने संबोधन में उन्होंने इसे ‘यूपीए की विफलताओं का जीता जागता स्मारक’ करार दिया था.

2011 में यूपीए द्वारा शुरू की गई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़े आखिरकार 2015 में सामने आए, और उसके बाद से ये लाभार्थियों को पहचानने और उन्हें लक्षित कर कल्याणकारी नीतियों के कार्यान्वयन में इस सरकार का आधार बन चुके हैं.


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दरअसल मोदी को अपने कार्यकाल के आरंभ में ही ये अहसास हो गया था कि ‘सूट बूट की सरकार’ की छवि उनके पतन की वजह बन सकती है और बिना समय गंवाए उन्होंने ‘जनकल्याण’ का रुख कर लिया. उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं था, क्योंकि कांग्रेस ने अधिकतर तैयारी कर छोड़ी थी. उन्होंने बस अपनी रेसिपी के अनुसार उनको परस्पर मिलाने और मोदी तड़का लगाकर अपना बताते हुए बेचने का काम किया. बेशक, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने इन योजनाओं के महत्व को समझा और इन्हें लागू करने की इच्छाशक्ति प्रदर्शित की.

परित्याग में माहिर कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी की विरासत के तेजी से क्षरण में मोदी की चतुराई से अधिक खुद कांग्रेस में दूरदर्शिता का अभाव परिलक्षित होता है.

ग्रामीण आवास योजना को इंदिरा गांधी का नाम दिया गया था, लेकिन कांग्रेस ने इसमें सामान्य नौकरशाही के स्तर से अधिक रुचि नहीं ली थी.

2009 लोकसभा चुनावों में यूपीए के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय आमतौर पर मनरेगा को दिया गया था, लेकिन सोनिया गांधी के समर्थन के बावजूद आगे चलकर इसमें सुधार करने या इसे बढ़ावा देने में पार्टी की रुचि नहीं रही. इस संदर्भ में तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बीच तकरार भी हुई थी जब रमेश को लगा था कि ग्रामीण योजनाओं में ‘क्रूर कटौती’ की जा रही है. परिणामस्वरूप – ऐसा लगा मानो यूपीए को कल्याणकारी योजनाओं की परवाह नहीं है और पार्टी इस मुद्दे पर विभाजित है.


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कांग्रेस ने डीबीटी को शुरू करने के बाद जल्दी ही भुला दिया. लेकिन उसने सबसे बुरा व्यवहार आधार के साथ किया. विशिष्ट पहचान प्रणाली को बहुत धूमधाम से शुरू किया गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद उसे त्याग दिया गया. पार्टी के भीतर प्रतिद्वंदिता, सरकार में आंतरिक मतभेद और सुसंगत नीति की कमी के कारण आम सहमति का अभाव था और इसका खामियाजा नीतियों, योजनाओं और नवाचारों को भुगतना पड़ा.

कांग्रेस का नुकसान मोदी का फ़ायदा साबित हुआ, कम-से-कम यही प्रतीत होता है. यूपीए के कार्यकाल के दौरान की ऐसी कम ही बातें हैं जो मतदाताओं को याद रहे. मोदी ने उन सभी चीज़ों पर अपनी छाप लगाना सुनिश्चित किया जोकि उनकी नहीं थी और जिनकी एक समय उनकी पार्टी ने जमकर आलोचना की थी. जबकि कांग्रेस ने हर वो चीज़ भाजपा को सौंप दी जिसे कि वह हमेशा गर्व के साथ अपना बता सकती थी.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. Congress ki chamchi….hr achhe Kam Jo modi ne kiy hai..unko kitani beshrmi se tumne Congress se joda….shame on u

  2. बच्चे पैदा किया।फिर अनाथ छोड़ दिया। फिर किसी ने उन्हें पाल-पोस कर बड़ा और काबिल बनाया तो बाप और उसके पिट्ठू हक जताने और छाती पीटने आ गये। घबड़ाइए नहीं जिनके चापलूसी करने में लगा है प्रिंट वोट तो मिलने से रहा !!

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