नई दिल्ली: रविवार सुबह 40 से अधिक दिनों तक क्वारेंटाइन में रहने वाले तबलीग़ी जमात के सदस्यों का कोरोना का टेस्ट निगेटिव आने के बाद घर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
दिल्ली सरकार ने शनिवार शाम को क्वारेंटाइन केंद्रों में रहने वाले तबलीग़ी सदस्यों को जाने का आदेश दिया था. आदेश के अनुसार, निगेटिव आने वाले सभी लोग अपने-अपने राज्य लौट सकते हैं, जबकि दिल्ली में रहने वालों को अपने घरों में वापस जाने के लिए पास जारी किया जायेगा.
दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि तबलीग़ी जमात के कुछ सदस्यों के बच्चों ने पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार को लिखा था कि कई बार कोरोना निगेटिव आने के बावजूद उनके माता-पिता क्यों क्वारेंटाइन में थे.
द्वारका क्वारेंटाइन केंद्र में एक 35 वर्षीय महिला, जो नाम नहीं बताना चाहती थी, उन्होंने कहा, ‘बच्चों के बिना रहना अविश्वसनीय रूप से कठिन है. मेरी सबसे छोटी बेटी सिर्फ डेढ़ साल की है और मैंने महीनों में उसे नहीं देखा.’ महिला और उसका पति मार्च की शुरुआत में मेरठ से दिल्ली के तबलीगी जमात कार्यक्रम में आए थे. उनको लगा था की यह करीब एक महीने चलेगा लेकिन यह उससे भी ज्यादा चला.
उन्होंने कहा, ‘हम पास बनवाने की प्रक्रिया में हैं. मुझे वास्तव में उम्मीद है कि हम जल्द ही घर जा पाएंगे. मैं सिर्फ परिवार के साथ रहना चाहती हूं.’
निजामुद्दीन मरकज समूह
मार्च में निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में तबलीगी जमात समूह ने कोविड-19 के हॉटस्पॉट के रूप में उभरने के बाद सुर्खियां बटोरीं थी. आयोजन में लगभग 2,500 लोगों ने भाग लिया और उनमें से कई को क्वारेंटाइन के तहत रखा गया था.
जबकि भारत के कोविड-19 मामलों में प्रारंभिक बढ़ोतरी के लिए समूह को दोषी ठहराया गया था. कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों ने इसे दक्षिण एशिया में बीमारी का ‘सबसे बड़ा वायरल वेक्टर’ कहा था.
उन्होंने कहा, ’40 दिनों तक हमें यहां रखने से क्या हासिल हुआ. नरेला क्वारेंटाइन केंद्र में रुके रिजवान अहमद ने कहा, ‘हम खलनायक हो गए हैं और हमारी छवि पूरी तरह से खराब हो गई है.’
अहमद और उनकी पत्नी को अब सहारनपुर में अपने घर वापस ले जाने के लिए बस का इंतजार है, लेकिन वे इस बात से परेशान हैं कि पिछले कुछ महीनों में सब कुछ कैसे हो गया.
अहमद ने दिप्रिंट को बताया, ‘तबलीगी जमात की सभाओं में हमें केवल पवित्रता के बारे में सिखाते हैं. अच्छे कामों और स्वच्छता पर बहुत जोर दिया जाता है. इसलिए मैं बहुत परेशान था कि हमें कैसे चित्रित किया गया है.
समूह के आयोजकों ने पहले 13 मार्च के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान का हवाला देते हुए खुद का बचाव किया था जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 स्वास्थ्य आपातकाल नहीं था. अहमद ने कहा, ‘अगर उन्होंने जमात को इकठ्ठा होने से रोक दिया होता, तो ऐसा कुछ नहीं होता.’
क्वारेंटाइन में समय
दिल्ली सरकार द्वारा घर जाने के आदेश के बाद से सभी क्वारेंटाइन केंद्रों में रहने वाले तबलीगी ने कहा कि वे फॉर्म भर रहे हैं.
सुल्तानपुरी क्वारेंटाइन सेंटर में रहने वाले अनस सैयद ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि अब जब उन्होंने इन सभी औपचारिकताओं को शुरू किया है, तो इसका मतलब है कि हमारे घर जाने का समय नजदीक है.’
चेन्नई के निवासी सैयद पिछले साल मार्च में उत्तर प्रदेश के देवबंद में पढ़ाई के लिए आए थे. वह निजामुद्दीन जमात में शामिल होने के ठीक बाद छुट्टी पर घर जाने वाले थे.
उन्होंने कहा, जीवन की कई और योजनाएं थीं लेकिन मैं दुर्भाग्य से घर नहीं जा पाया. मैंने एक साल से अपने माता-पिता को नहीं देखा है. मुझे राहत है कि ये आखिरकार हमें छोड़ रहे हैं.’
तबलीगी जमात के सदस्य दिल्ली- द्वारका, सुल्तानपुरी, नरेला और बदरपुर सहित अन्य स्थानों पर क्वारेंटाइन केंद्रों में रह रहे हैं.
नरेला और द्वारका क्वारेंटाइन केंद्रों ने सबसे पहले तबलीगी जमात के सदस्यों को भेजने की प्रक्रिया शुरू की, सरकारी बसें उन्हें घर तक पहुचायेंगी.
इशरत कफील, जो कि क्वारेंटाइन केंद्र में तैनात हैं, ने दिप्रिंट को बताया, दिल्ली निवासी कुल 15 लोग अब तक नरेला से निकल चुके हैं. एक बार हम दिल्लीवासियों को भेज देते हैं तो हम दूसरे राज्यों के तबलीगियों को भेजने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे. जबकि क्वारेंटाइन में इतनी लंबी अवधि चिंता का कारण रही है, लेकिन कुछ के लिए सांसारिक मामलों से दूर रहने का समय बुरा नहीं रहा है.
चेन्नई के 42 वर्षीय फारूक़ बाशा ने कहा मैंने अपना अधिकांश समय यहां प्रार्थना करने, कुरान का पाठ करने में बिताया. मैं निश्चित रूप से चिंतित था, लेकिन मुझे अपनी प्रार्थना पर ध्यान केंद्रित करने का समय भी मिला. बाशा घर जाने की प्रतीक्षा में सुल्तानपुरी क्वारेंटाइन केंद्र में हैं.
बाशा ने रमजान के लिए उपवास के16 दिन बिताए. उन्होंने कहा, ‘भोजन से संबंधित या यहां रहने से संबंधित कोई समस्या नहीं थी. इसलिए मैं अधिकारियों का शुक्रगुजार हूं.
तबलीगी द्वारा प्लाज्मा दान
कोविड -19 होने के बाद बाशा भी प्लाज्मा थेरेपी उपचार के लिए प्लाज्मा दान करने वाले पहले लोगों में से एक थे. बाशा और सैयद दोनों ने कहा कि तबलीगी जमात प्रमुख मौलाना साद की सदस्यों से अपने प्लाज्मा दान करने की अपील ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया.
साद, वह मौलवी है जिसने जमात की मंडली का नेतृत्व किया था और बाद में उसे दोषी ठहरा दिया गया था, ने सभी जमात सदस्यों को अपने प्लाज्मा दान करने की अपील करते हुए एक पत्र जारी किया था.
बाशा ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे पता था कि ईश्वर के साथ-साथ मेरे साथ अच्छा व्यवहार करने वाले सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका था.’
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