नई दिल्ली: सोमवार को भारत देशव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन के अपने तीसरे चरण में दाख़िल हो गया और पाबंदियां संभवत: 17 मई तक रहेंगी.
लॉकडाउन का ताज़ा चरण अपने साथ कई रियायतें लेकर आया है, जबकि 4 मई तक पाबंदियों का मतलब था. तक़रीबन पूरा शटडाउन, जिसमें सिर्फ आवश्यक सेवाओं के लिए कुछ छूट दी गईं थीं.
अर्थव्यवस्था को भले ही पिछले 41 दिनों के अभूतपूर्व लॉकडाउन की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी हो. लेकिन लगता है कि इससे कोविड-19 के ख़िलाफ भारत की लड़ाई को बल मिला है. सोमवार तक भारत में कोविड-19 के क़रीब 42,533 मामले दर्ज किए थे, जो उस संख्या के आधे से भी कम है, जिसका अनुमान एक्सपर्ट्स ने सबसे ख़राब स्थिति में अप्रैल के पहले हफ्ते के लिए लगाया था.
दिप्रिंट अलग-अलग मानदण्डों पर लॉकडाउन के प्रभाव का विश्लेषण करता है.
बीमारी कैसे फैली
भारत में कोरोनावायरस का पहला केस 30 जनवरी को केरल में सामने आया. 24 मार्च को जब तक देशव्यापी लॉकडाउन के पहले चरण का एलान हुआ. तब तक कोरोनावायरस के 557 पक्के केस सामने आ चुके थे और दस लोगों की मौत हो चुकी थी.
लॉकडाउन के पहले हफ्ते के भीतर, देश में बहुत तेज़ी के साथ इंफेक्शन फैला और कुल मामले 2,547 तथा कुल मौतों की संख्या 62 पहुंच गई.
रविवार तक कुल मामलों की संख्या 40,000 के पार हो गई (रिकवरी और मौतें मिलाकर) लेकिन एक्सपर्ट्स का दावा है कि लॉकडाउन न होता, तो अकेले एक्टिव इंफेक्शन की संख्या ही एक लाख के पार पहुंच गई होती.
‘आर-नॉट’ उपाय, जिससे किसी बीमारी की संक्रामकता का पता लगाया जाता है, वो 6 अप्रैल को तक़रीबन 1.83 था, जब लॉकडाउन को दस दिन बीत चुके थे. दो हफ्ते बीतने पर 10 अप्रैल को ये 1.55 दर्ज किया गया और तब से ये लगातार गिर रहा है.
चेन्नई में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैथमैटिकल साइंसेज़ के प्रोफेसर सीताभ्रा सिन्हा के अनुसार पिछले हफ्ते कोविड-19 के लिए भारत का आर-नॉट 1.29 था.
सिन्हा ने बताया कि आर-नॉट में होने वाला कोई भी बदलाव, 10 से 14 दिन के बीच ही साफ़ तौर से दिखाई देता है.
सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया कि अगर आर-नॉट 1.83 से नीचे नहीं आता, तो 27 अप्रैल तक भारत में एक्टिव केस एक लाख तक पहुंच गए होते. इसके विपरीत, उस तारीख़ तक एक्टिव केस 21,416 थे.
प्रधानमंत्री की आर्थिक मामलों की सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य शमिका रवि के विश्लेषण में भी उसी निष्कर्ष को दोहराते हुए दर्शाया कि देशव्यापी लॉकडाउन से भारत में महामारी के कर्व को समतल करने में मदद मिली.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार शुरू में वायरस के पक्के मामलों की संख्या हर तीन दिन में दोगुनी हो रही थी. लेकिन पिछले बृहस्पतिवार को ये दर 11 थी.
हालांकि, कर्व का गिरना अभी बाक़ी है. ये तब होगा जब एक्टिव मामलों की संख्या गिरनी शुरू होगी. सिन्हा ने बताया कि आर-नॉट एक बार 1 से नीचे आ जाए, तो फिर कोविड-19 एक महामारी नहीं रहेगी.
दूसरे देशों से मुक़ाबला
भारत से कम आबादी होने के बावजूद अमेरिका, स्पेन और इटली जैसे देशों में में कोरोनावायरस के कहीं ज़्यादा केस और मौतें देखी गईं.
अमेरिका में 67,448 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जबकि स्पेन और इटली में मृतकों की ये संख्या क्रमश: 25,000 और 28,000 से अधिक है.
दक्षिणी अफ्रीका में, जहां तक़रीबन भारत के साथ-साथ ही कड़ा लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. कोविड-19 के कहीं कम रोज़ाना मामले देखे गए. रविवार तक, दक्षिणी अफ्रीका में केवल 6,300 से कुछ अधिक मामले और 123 मौतें दर्ज हुईं थीं. लेकिन, भारत में इंफेक्शन की दर, दक्षिण अफ्रीका के मुकाबले धीमी दिखाई पड़ती है. फिलहाल ये हर दस लाख लोगों पर 29 है, जबकि दक्षिण अफ्रीका में ये दर 107 है.
भारत में टेस्टिंग की दरें
टेस्टिंग की कम दरों को लेकर पहले भारत की आलोचना हुई थी, लेकिन अब उसने इस मोर्चे पर सुधार किया है. शनिवार को लॉकडाउन के 39वें दिन जब देश में कुल 39,980 पक्के केस दर्ज हो चुके थे, भारत ने दस लाख टेस्ट पूरे कर लिए.
इसके मुक़ाबले, स्पेन और अमेरिका ने जब दस लाख टेस्ट पूरे किए, तब तक उनके यहां क्रमश: 2 लाख, और 1.65 लाख से अधिक केस हो चुके थे.
24 मार्च तक, भारत में क़रीब 22,694 टेस्ट किए गए थे. 15 अप्रैल तक ये संख्या 2.75 लाख पहुंच गई. एक रेफरेंस वेबसाइट ‘वर्ल्डमीटर’ के अनुसार, भारत में टेस्टिंग की दर 802 प्रति दस लाख है, जबकि मार्च के अंत में ये मात्र 19 थी.
रविवार को बिज़नेस टुडे की एक रिपोर्ट में भारत के स्वास्थ्य अधिकारियों का हवाला देते हुए कहा गया, कि टेस्टिंग की मौजूदा दर 70 से 75 हज़ार प्रतिदिन है.
फिर भी, भारत में टेस्टिंग की दर एशिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले बहुत नीची है. बताया जा रहा है कि पाकिस्तान हर दस लाख लोगों पर, रोज़ाना 962 टेस्ट कर रहा है, जबकि नेपाल में रोज़ाना 2,166 और श्रीलंका में 1254 टेस्ट किए जा रहे हैं.
मौतें और रिकवरी
भारत में कोविड-19 से हुई मौतों में, 65 प्रतिशत पुरुष, और 35 प्रतिशत महिलाएं रही हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में कोविड-19 मृत्यु दर फिलहाल 3.2 प्रतिशत है. 45 वर्ष से कम उम्र के लोगों में ये मृत्यु दर 14 प्रतिशत से कम, जबकि 45 से 60 वर्ष के ग्रुप में ये दर 34.8 है. सबसे अहम ये है कि अभी तक, कोविड-19 से जुड़ी 78 प्रतिशत मौतों के मामले में, कुछ दूसरी बीमारियां भी पाई गई हैं.
पिछले एक महीने में मृतकों की संख्या बढ़ी है, लेकिन रिकवरी के आंकड़े एक दिलचस्प कहानी कहते हैं.
24 मार्च तक, 557 पक्के मामलों में से 40 (तक़रीबन 7.3 प्रतिशत की रिकवरी दर) कोरोनावायरस से उबर गए थे. अगले कुछ हफ्तों में टेस्टिंग और अस्पतालों में भर्तियां बढ़ने से, कोविड-19 के कुल 11,933 मामलों में से 1344 पक्के केस (रिकवरी दर 11.3 प्रतिशत), 15 अप्रैल तक ठीक हो गए थे जब दूसरा लॉकडाउन घोषित किया गया.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सोमवार तक, (42,533 में से) 11,706 मरीज़ कोरोनावायरस से उबर गए हैं, जो 27.52 की रिकवरी दर दर्शाता है. सिर्फ दो हफ्ता पहले ये दर 13 प्रतिशत दर्ज की गई थी.
राज्यों में लॉकडाउन कैसा रहा है
राज्यों में केस और मौतों की तालिका से पता चलता है कि पूरे देश में लॉकडाउन का असर अलग-अलग रहा है.
सोमवार तक, 12,974 पक्के मामलों (अकेले मुम्बई में 8,000 से अधिक) और 548 मौतों के साथ कोविड-19 का सबसे अधिक प्रभाव महाराष्ट्र में रहा है.
पड़ोसी गुजरात में, पहला केस 30 मार्च को सामने आया था. लेकिन एक महीने के भीतर ये संख्या 4,392 तक पहुंच गई थी.
महामारी के शुरूआती दिनों में, केरल सबसे अधिक प्रभावित राज्य के रूप में भरा था. 30 मार्च को 200 पक्के मामलों का आंकड़ा पार करने वाला ये पहला प्रदेश बना था. उस समय महाराष्ट्र में 198 मामले थे. लेकिन 5 अप्रैल तक, जब केरल ने 300 की संख्या पार की, तो महाराष्ट्र में पक्के मामलों की तादाद 490 हो चुकी थी. ये दर्शाता है कि केरल ने तेज़ी से इंफेक्शन की गति पर क़ाबू पा लिया था.
एक मई को राज्य में कोविड-19 का सिर्फ एक नया केस सामने आया.
मध्य प्रदेश में, सोमवार तक 2846 पक्के केस थे, जबकि 7 अप्रैल तक वहां केवल 200 से कुछ अधिक पक्के केस थे. सिर्फ तीन हफ्ते में दस गुना से अधिक वृद्धि.
बिहार में भी ये दर बहुत अधिक रही है. यहां पहला केस 22 मार्च को सामने आया था. 30 अप्रैल तक यहां 277 मामले थे. हालांकि दूसरे राज्यों की अपेक्षा ये संख्या कम है, लेकिन सिन्हा ने बताया कि बिहार की आर-नॉट दर का अनुमान 2 था. ये दर वूहान की उस दर के क़रीब है, जो वहां कोरोनावायरस के पहली बार सामने आने पर बताई गई थी.
झारखण्ड में (पिछले हफ्ते तक) आर-नॉट 1.87 है, जिसके बाद महाराष्ट्र (1.50) और पश्चिम बंगाल (1.52) है. राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश में आर-नॉट दर का अनुमान क्रमश: 1.44, 1.38 और 1.27 लगाया गया है.
सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा कि लॉकडाउन ख़त्म किए जाने पर आर-नॉट बदल सकती है, लेकिन कोई भी बदलाव 10 से 14 दिन के बाद ही दिखाई पड़ेगा.
इस बीच, गोवा, मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा जैसे राज्यों में ये संख्या अभी भी एक ही अंक में है.
मणिपुर में 3 अप्रैल के बाद से, कोई नया केस सामने नहीं आया है, और कोविड-19 के इसके दोनों मरीज़ ठीक हो गए हैं. मिज़ोरम में पहला केस 25 मार्च को आया था, उसके बाद से कोई नया केस सामने नहीं आया.
गोवा में आख़िरी नया केस 4 अप्रैल को सामने आया था, जबकि त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में क्रमश: 11 और 10 अप्रैल के बाद से कोई नया इनफेक्शन केस सामने नहीं आया.
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