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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशकोविड-19 से लड़ाई में रायपुर एम्स के डॉक्टरों के कंधों पर छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी, बांग्लादेश को भी दी संक्रमण से लड़ने की जानकारी

कोविड-19 से लड़ाई में रायपुर एम्स के डॉक्टरों के कंधों पर छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी, बांग्लादेश को भी दी संक्रमण से लड़ने की जानकारी

एम्स रायपुर के कोविड-19 चिकित्सकीय दल ने एक ओर जहां राज्य में 95 प्रतिशत कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ठीक कर घर वापस भेज दिया है वहीं वेबिनार के माध्यम से 600 विदेशी अस्पतालों और डॉक्टरों को भी अपनी सेवाएं दी हैं.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में अबतक मात्र 36 कोविड-19 पॉजिटिव के मामले सामने आए हैं और सभी मरीजों का इलाज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का रायपुर चैप्टर ने ही किया है. रायपुर स्थित एम्स सिर्फ अपने राज्य में ही मरीजों का इलाज नहीं कर रहा है बल्कि सार्क देशों के मरीजों के इलाज में भी मदद कर रहा है. एम्स के डॉक्टर सार्क देशों के डॉक्टरों की भी कोविड-19 के मरीजों के इलाज की जानकारी मुहैया करा रहे हैं. यही नहीं जब देशभर के डॉक्टर कोविड-19 के टेस्ट के लिए रैपिड किट की मांग कर रहे हैं तब एम्स के डॉक्टरों ने इसपर विश्वास नहीं करने की बात कही है.

एक ओर जहां राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में कोविड-19 अस्पताल तैयार करने के लिए अब तक सिर्फ आश्वासन और बातों से काम चलाया जा रहा है. वहीं एम्स रायपुर ने राज्य के 80 प्रतिशत कोविड-19 मरीजों को स्वस्थ्य कर उन्हें अपने घर वापस भी भेज दिया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार एम्स रायपुर ने अपनी पूरी तैयारी मार्च के पहले सप्ताह में ही कर ली थी.

संभवतः यही कारण है कि प्रदेश में अबतक पाए गये कोरोना के 36 मरीजों में 34 को एम्स का ही सहारा रहा. वहीं दो मरीज राज्य के दूसरे अस्पतालों में भर्ती थे उनके इलाज की जिम्मेदारी भी एम्स के डॉक्टरों पर ही थी. उनके दिशार्निदेशों पर ही उन मरीजों का इलाज भी संभव हो सका है. इन 34 मरीजों में 24 स्वस्थ होकर अपने घर जा चुके हैं और 10 मरीजों का इलाज अभी चल रहा है. स्वस्थ हुए मरीजों में करीब 26 कोरबा जिले के हॉटस्पॉट कठघोरा तहसील से ही हैं जिनका पूरा इलाज एम्स द्वारा किया गया है.

एम्स के अधिकारियों के अनुसार शुरुआती दिनों में मरीजों के लिए अस्पताल में बनाये गए बिस्तरों की संख्या मात्र छह थी. हालांकि बिस्तरों की संख्या के अलावा एम्स प्रबन्धन ने दवाइयों और सैम्पलों की जांच के साथ-साथ चिकित्सा की अन्य सुविधाओं के हिसाब से मरीजों की किसी भी संख्या का सामना करने के लिए तैयारी कर ली थी.


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वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार का पूरा अमला सिर्फ नीति निर्धारण या फिर अस्पतालों में कोरोना वार्ड बनाने की कोरी बात ही करता नजर आया. राज्य सरकार का पहला कोविड-19 हॉस्पिटल माना में दो दिन पहले ही तैयार किया गया है. राज्य सरकार ने लॉकडाउन 1 के शुरुआती दिनों में ही सभी जिला अस्पतालों में 100 बेड वाले कोविड-19 वार्ड स्थापित करने की घोषणा की थी.

राज्य सरकार ने मेडिकल बुलेटिन में कहा है, ‘कोविड 19 के मरीजों का इलाज रायपुर स्थित भीमराव अम्बेडकर मेडिकल कॉलेज, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज जगदलपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर और राजनांदगांव में किये जाने की व्यवस्था बना गयी है.’

हालांकि, इस मेडिकल बुलेटिन में यह जानकारी सिर्फ सरसरी तौर पर ही दी गयी हैं. वहीं दूसरी तरफ सरकार ने बाकी 23 जिलों में कोरोना के मरीजों के इलाज के व्यवस्था की कोई जानकारी आज तक नही दी है. वहीं अन्य राज्यों की तरह रायपुर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन भी पीपीई किट, मास्क, सेनिटाइजर और टेस्टिंग किट्स न मिलने की बात दिप्रिंट से आज भी कही है.

दिप्रिंट से बातचीत में एम्स के प्रवक्ता एसएस शर्मा ने बताया कि संस्थान में छह बिस्तर वाला वार्ड पहले तैयार किया गया था जो मेडिकल कॉलेज के साथ ही था लेकिन इस व्यवस्था को जल्द ही संस्थान के कैंपस में स्थित आयुष बिल्डिंग को 200 बिस्तर वाले कोविड-19 हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया गया.

वह आगे कहते हैं, ‘वर्तमान में एम्स रायपुर का कोविड-19 हॉस्पिटल कोरोना मरीजों के इलाज के लिए पूरी तरह सर्व सुविधा युक्त है. जब हमने 6 बेड का वार्ड बनाया उस वक्त यह सबसे अलग होते हुए भी मेडिकल कॉलेज और अन्य विभागों के साथ ही तैयार किया गया था’.

राज्य की पहली कोविड-19 मरीज भी 17 मार्च को इसी वार्ड में रखी गयी थी. लेकिन उसके बाद मरीजों की संख्या बढ़ने की आशंकाओं के मद्देनजर 200 बिस्तर वाला अलग अस्पताल तैयार किया गया और पहले मरीज के साथ प्रदेश भर से आए 33 अन्य मरीजों को यहीं रखा गया जिनमें 24 स्वस्थ्य होकर घर भी जा चुके हैं.

एकतरफ जहां पूरे देश के डॉक्टर अस्पताल में असुविधाओं और अपनी सुरक्षा को लेकर परेशान हैं और राज्य सरकारों से मांग कर रहे हैं वहीं एम्स में सबकुछ ठीक-ठाक होना बड़ी बात है.

एम्स के प्रवक्ता शर्मा कहते हैं, ‘एम्स रायपुर में दवाईयों से लेकर सुरक्षा किट्स, सैंपल जांच किट्स या फिर चिकित्सा सबंधित अन्य आवश्यक मशीन जैसे संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं और संस्थान किसी भी प्रकार की आपातकालीन सुविधा के लिए तैयार है.

90 डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की टीम 

एम्स रायपुर के निर्देशक डॉक्टर नितिन नागरकर कहते हैं, ’90 से अधिक डॉक्टरों, नर्सों, फार्मासिस्ट, तकनीशियन और अन्य मेडिकल स्टाफ की टीम 24 घंटे बिना रुके कोविड-19 मरीज़ों को सेवाएं दे रही है. हमारी इस टीम के मेहनत का ही परिणाम है कि 21 साल से लेकर करीब 70 साल के भी कोविड-19 पॉजिटिव केस स्वस्थ्य होकर यहां से वापस घर जा चुके हैं. एम्स में भर्ती कोरोना के 70 प्रतिशत मरीजों को डिस्चार्ज किया जा चुका है और बचे हुए 10 मरीजों की हालात भी बेहतर हो रही है.’

नागरकर के अनुसार एम्स की कोविड-19 टीम के सदस्य रोस्टर के हिसाब से 7 दिन लगातार सेवाएं देने के बाद 14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन में रहते हैं और फिर तीन दिनों की छुट्टी से लौटकर फिर हॉस्पिटल को सेवाएं देते हैं. इन सात दिनों में ड्यूटी स्टाफ का कोई भी सदस्य घर नही जाता जिससे घरवालों को संक्रमण का कोई खतरा न हो.

 रैपिड टेस्ट तकनीकी पर नहीं है भरोसा

कोविड-19 के लिए रैपिड टेस्ट तकनीकी जो आज देशव्यापी मुद्दा बन चुकी है एम्स रायपुर के प्रबंधन और अधिकारी इसके विश्वसनीयता के प्रति हमेशा ही आशंकित रहे हैं. यहां के डॉक्टरों का कहना है एम्स रायपुर ने रैपिड टेस्ट किट की केंद्र सरकार से कभी मांग नही किया क्योंकि इस तकनीकी के इस्तेमाल कभी भी कोविड-19 वायरस को डिटेक्ट नही किया जा सकता.

डॉक्टर नागरकर का कहना है कि ‘ हम रैपिड टेस्ट तकनीक के पक्ष में कभी नही थे इसलिये हमने इन किट्स का इस्तेमाल करना उचित नही समझा. कोविड-19 वायरस आरटी पीसीआर टेस्ट तकनीकी से कोरोना वायरस के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है जैसे उसके डीएनए और जीनोम की बनावट. जबकि रैपिड टेस्ट तकनीकि मरीजों के एन्टी बॉडी के बारे में ही जानकारी देता है.

600 विदेशी डॉक्टरों और देश के कई अस्पतालों को दी सेवाएं

एम्स रायपुर के कोविड-19 चिकित्सकीय सेवा टीम वेबिनार के माध्यम से 600 विदेशी अस्पतालों और डॉक्टरों को भी निरंतर अपनी सेवाएं दी हैं. जिनमें पाकिस्तान को छोड़कर जिन सार्क देशों ने एम्स रायपुर के इस कार्यक्रम में भाग लिया उनमें बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान और अफगानिस्तान शामिल हैं. इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, कोलंबिया, पेरू के डॉक्टर भी कार्यक्रम का हिस्सा बने थे.

एम्स निदेश कहते हैं, ‘संस्थान के विशेषज्ञों ने अबतक करीब 600 सार्क और अन्य देशों के अस्पताल और डॉक्टरों को कोविड-19 से बचाव और उपचार सबंधित आवश्यक जानकारी आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के अनुसार दी हैं.’

‘हमारे विशेषज्ञों ने 17 मार्च से 21 मार्च के दौरान एक विशेष वेबिनार कार्यक्रम के माध्यम से सार्क और अन्य देशों द्वारा मांगी गयी चिकित्सकीय जानकारी उनके डॉक्टरों को दी हैं. विदेशी डॉक्टरों को यह सेवा कोविड 19 ट्रीटमेंट के सामान्य परामर्श के अतिरिक्त माइल्ड, सीवियर और मॉडरेट लक्षण वाले मरीजों का इलाज अलग से कैसे किया जाए इसकी पूरी जानकारी दी गई है.


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इसके अलावा हमारे विशेषज्ञों ने अपने सफल अनुभव और आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के अनुपालन की जानकारी भी विदेशी डॉक्टरों को दिया है. बंग्लादेश के एक डॉक्टर ने आईसीएमआर की पूरी गइडलाइन कुछ परिवर्तन के साथ अपने यहां लागू करने के लिए मांग लिया है. वहीं ऑस्ट्रलिया सहित सार्क से जुड़े अन्य विदेशी डॉक्टरों के साथ-साथ देश के अन्य भागों से भी करीब 1000 से ज्यादा डॉक्टरों ने एम्स रायपुर के विशेषज्ञों से कोविड-19 ट्रीटमेंट से संबंधित जानकारी प्राप्त की है.

ज्यादा जांच एम्स में 

राज्य सरकार के अपने ही आंकड़ों के अनुसार अबतक प्रदेश में कुल 9220 कोविड-19 सैम्पलों की जांच की गई है. 80 प्रतिशत से भी ज्यादा जांच एम्स में की गई है और सभी 36 पॉजिटिव मरीजों की पुष्टि भी यहीं की जांच रिपोर्ट से हुई थी.

इनमें से 7424 एम्स और 1794 सैम्पलों की जांच रायपुर और बस्तर स्थित चिकित्सा महाविद्यालयों में कोविड-19 जांच केंद्रों द्वारा किया गया है. राज्य सरकार द्वारा सैम्पलों की जांच का आलम यह है कि मार्च अंत तक तो राज्य के किसी भी अस्पताल में इसकी कोई सुविधा ही नही हो पायी थी. सभी सैम्पलों की जांच एम्स में किया जाता था.

मार्च के महीने में सैंपल जांच की संख्या करीब 15-18 सैम्पल से बढ़कर 50 से 60 हो पायी थी. यह संख्या अप्रैल में 80-100 प्रतिदिन होकर आज करीब 900 सैम्पलों की जांच प्रतिदिन किया जा रहा है. प्रदेश में कोविड-19 जांच केंद्रों की संख्या लगातार बढ़ाने की मांग की जा रही है लेकिन राज्य इस सम्बन्ध में अभी तक निर्णय ले नही पायी है.

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