कोरोना संकट के बीच इस्लामी पुनरुत्थानवादी संगठन तबलीगी जमात सुर्खियों में है. 1925 में स्थापित जमात की पहचान राष्ट्रवादी संगठन की रही है. आजादी के आंदोलन में कांग्रेस का समर्थन करने वाली जमात ने मुस्लिम लीग और उसकी पाकिस्तान की मांग का पुरजोर विरोध किया था. हालांकि बंटवारे के खिलाफ उसका तर्क मजहबी था. जमात का मानना था कि विभाजन के कारण मुस्लिम समुदाय कमजोर होगा. उसकी एकजुटता जरूरी है. दरअसल तबलीगी जमात का मकसद भारतीय राष्ट्रवाद और मुस्लिम कौम दोनों को मजबूत करना था.
आजादी के बाद तबलीगी जमात ने राजनीति से अपने को अलग कर लिया. मजहब और मुस्लिम समाज तक उसकी भूमिका सीमित हो गई लेकिन उसने अपने दायरे का विस्तार किया. धीरे-धीरे तबलीग एक बहुराष्ट्रीय धार्मिक नेटवर्क बन गया. तबलीग का मकसद इस्लामी पुनरुत्थान जरूर है, लेकिन रूढ़िवाद, कट्टरता और जेहाद से इसका कोई संबंध नहीं है. बारबरा मेटकाफ ने अपने अध्ययन में पाया है कि तबलीग जेहादी इस्लाम से अलग हैं. इसके संस्थापक मौलाना इलियास कंधालवी ने अपनी तकरीरों में इंसान के भीतरी जेहाद पर जोर दिया है. यही कारण है कि तमाम इस्लामी जेहाद की पैरोकारी करने वाले संगठन तबलीग को गैर-इस्लामी तक करार देते हैं.
मौलाना इलियास की तालीम इस्लामी कानून की हनाफी शाखा के विख्यात देवबंद मदरसे में हुई थी. इसलिए जमात पर देवबंद स्कूल की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव है. सर सैयद के सुधारवादी आधुनिक मूल्य भी तबलीग की शिक्षाओं में शामिल हैं. तबलीग की मूल शिक्षाओं में शाहदाह (अल्लाह के अलावा न तो कोई और खुदा है और न ही मुहम्मद साहब के अलावा कोई दूसरा पैगंबर है), सलात ( सलीके से नमाज अदा करना), जिक्र (अल्लाह का आह्वान) शामिल हैं. तबलीग का विचार है कि व्यक्ति को इस्लाम के प्रति पूर्ण समर्पित होना चाहिए.
इलियास के काम को उनके बेटे मौलाना यूसुफ ने आगे बढ़ाया. यूसुफ ने दो बड़े काम किए. एक,जमात का विस्तार भारत की सीमाओं के बाहर किया. कई देशों में जाकर उन्होंने अपनी प्रभावशाली तकरीरों से मुस्लिम समुदाय को तबलीग के साथ जोड़ा. दूसरा, उन्होंने तबलीग में महिलाओं को शामिल किया, लेकिन सीमित भूमिका के साथ. उनका मानना था कि सभी धार्मिक पाबंदियों के साथ मुस्लिम औरतों को धार्मिक साहित्य पढ़ना और दूसरों को सुनाना चाहिए. बाद में स्त्रियों की जमातों को भी संगठित किया गया. यूसुफ के बाद इमानुल हसन कंधालवी तबलीग के सदर हुए. उनके बाद मौलाना साद ने संगठन की बागडोर संभाली. यही आजकल सुर्खियों में हैं.
तबलीगी जमात धर्म का प्रचार और मुस्लिम समुदाय को एकजुट करता है
तबलीगी जमात के साथ दो हिन्दुत्ववादी संगठनों की तुलना की जा सकती है- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद. अजीब संयोग है कि आरएसएस का गठन भी 1925 में ही हुआ था. इसका लक्ष्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान है. वास्तव में संघ हिन्दुत्व को राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करना चाहता है. धर्म और राजनीति से अपने संबंधों को खारिज करने वाला संघ पहले जनसंघ और अब भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ा है. वास्तव में भाजपा की असली जमीनी और वैचारिक ताकत संघ ही है. उसकी निगहबानी में ही भाजपा काम करती है. सरकारी फैसलों में भी संघ का प्रभाव रहता है. जहां तक तबलीगी जमात का संबंध है उसका ताल्लुक किसी राजनीतिक दल से नहीं है. उसका लक्ष्य धर्म का प्रचार-प्रसार और मुस्लिम समुदाय को एकजुट करना है.
यह भी पढ़ें: कोरोना से ग्रसित अमेरिका और चीन के विपरीत भारत के ऊपर एक अनूठा सुपरक्लाउड आकार ले रहा है
आरएसएस की सौ से अधिक संस्थाएं हैं. इनके माध्यम से संघ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम संचालित करता है. कार्यक्रमों के जरिए हिन्दुत्व का प्रचार-प्रसार होता है. खासकर दलितों और आदिवासियों में हिन्दू धर्म के संस्कारों को स्थापित करके राजनीतिक ताकत के लिए उनका इस्तेमाल करना संघ का सबसे कामयाब एजेंडा है.
मध्यकाल में विशेषकर शूद्र या दलित जाति के लोगों ने इस्लाम अपनाया. धर्मान्तरण का मूल कारण था- भेदभाव और शोषण पर आधारित हिन्दू धर्म की ब्राह्मणवादी व्यवस्था. इस व्यवस्था से निजात पाने के लिए दलित-शूद्र मुसलमान बन गए. इसके बरक्स चूंकि आदिवासी जंगलों और पहाड़ों पर रहते थे, इसलिए न तो हिन्दू धर्म की सामाजिक विद्रूपता का उन पर असर हुआ और न ही मुस्लिम शासन सत्ता ने उनके जीवन में हस्तक्षेप किया.
औपनिवेशिक काल में ईसाई मिशनरियों ने आदिवासियों के बीच आधुनिक शिक्षा और चिकित्सा जैसी सुविधाओं और आर्थिक प्रलोभनों के द्वारा धर्म प्रचार का काम किया. फलस्वरूप प्रकृति की पूजा करने वाले और स्वतंत्र जीवन-शैली जीने वाले विभिन्न आदिवासी समुदायों ने ईसाई धर्म अपनाया. आरएसएस ने आदिवासियों के बीच वनवासी कल्याण आश्रम खोले. आदिवासियों को हिन्दू रीति रिवाज से जोड़ा. रामकथा परंपरा में आदिवासियों को हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, शबरी आदि का वंशज बताकर उन्हें हिन्दुत्व के भीतर समेट लिया. इसके बरक्स तबलीग का काम धर्म परिवर्तित मुसलमानों को ‘पक्का’ मुसलमान बनाना है.
तबलीग की तरह हिन्दू धर्म को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई. आरएसएस विहिप के साथ जुड़कर इसकी गतिविधियों का संचालक बन गया. विहिप ने विशेषकर धर्म परिवर्तित मुसलमानों की ‘घर वापसी’ या ‘परावर्तन’ का काम किया. आर्य समाज के शुद्धिकरण आंदोलन के बरक्स विहिप के ‘परावर्तन’ कार्यक्रम में पुरोहित द्वारा कर्मकांड किया जाता है. कर्मकांड ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देता है और ब्राह्मणवाद वर्णवाद, जातिवाद और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मजबूत करता है. विहिप ने हिन्दुओं के इष्ट के रूप में राम को स्थापित किया. हिन्दुत्व की राजनीति को भी राम के इर्द-गिर्द रचा गया. भावनायक प्रभु राम को राजनीतिक श्रीराम में तब्दील कर दिया गया. राममंदिर आंदोलन में भाजपा के साथ आरएसएस और विहिप के कार्यकर्ता शामिल थे.
जमात के धर्म प्रचार का केंद्र बनकर उभरा मेवात
तबलीग के संस्थापक मौलाना इलियास ने इस्लाम के प्रचार की शुरुआत दिल्ली से सटे मेवात से की. धर्म परिवर्तित मेवाती मुसलमानों पर इस्लाम की शिक्षाओं से ज्यादा स्थानीय प्रथाओं का प्रभाव था. वे हिन्दुओं की तरह कपड़े पहनते थे और मजारों तथा अन्य स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा करते थे. इन गरीब मुसलमानों को समझाया गया कि उनकी जहालत और तबाही का कारण खुदा का अजाब है क्योंकि वे पक्के मुसलमान नहीं हैं. धीरे-धीरे मेवात जमात के धर्म प्रचार का केन्द्र बनकर उभरा.
यह भी पढ़ें: पिछले कुछ सालों में आंबेडकर कैसे बन गए मुख्यधारा के आंदोलनों के नायक
नब्बे के दशक में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तब मेवात में तबलीगियों का काम आसान हो गया. हिन्दू राजनीति की आक्रामकता से उत्पन्न भय और नफरत ने मेवातियों को जमात के साथ जुड़ने के लिए मजबूर किया. तबलीग मुस्लिम नौजवानों को दीन के काम के लिए प्रेरित करती है. उन्हें एक साल में चालीस दिन का समय निकालकर स्वयंसेवी बनकर मुसलमानों के बीच काम करना होता है. इसे चिल्ला कहा जाता है. इसके अलावा इज्तिमा यानी समागम पर जोर दिया जाता है. तबलीग का उद्देश्य है कि धार्मिक शिक्षाओं को अशराफों (मुस्लिम अभिजन) से लेकर अजलाफ यानी गरीब-कमजोर मुसलमानों तक पहुंचना चाहिए. उनके कार्यकर्ता गांवों में जाकर चिल्ला और इज्तिमा के जरिए बड़ी सादगी के साथ मौखिक शैली में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करते हैं.
अगर तबलीग ने मेवात को धर्म प्रचार का केन्द्र बनाया तो विहिप ने ‘परावर्तन’ के लिए अजमेर के ग्रामीण इलाके को चुना. इसके बाद पाली, राजसमंद और भीलवाड़ा में रहने वाले मेरात मुसलमानों की घर वापसी कराई गई. मेरात ऐसे मुसलमान थे जो इस्लाम के कुछ रिवाजों के साथ देवी-देवताओं की पूजा और फेरों वाली शादी करते थे. विहिप ने परावर्तन करके इन्हें हिन्दू बना दिया. तबलीग और विहिप दोनों स्थानीय रीति रिवाज और संस्कृति को मिटाकर एक खास तरह की संस्कृति हिन्दुओं और मुसलमानों पर थोपते हैं.
विहिप और तबलीगी जमात के काम करने के तरीके में कई समानताएं
एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में तबलीग एशिया, अफ्रीका से लेकर यूरोप और अमेरिका के करीब 150 देशों में सक्रिय है. पाकिस्तान और बांग्लादेश में आयोजित होने वाले सालाना जलसों में दस लाख से भी ज्यादा लोग शामिल होते हैं. तबलीग इस्लामी एकजुटता को सुनहरे इस्लामिक अतीत से जोड़ती है. इसी तरह से विहिप ने अपना वैश्विक नेटवर्क स्थापित किया. विहिप क्षेत्रीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विराट हिन्दू सम्मेलन आयोजित करती है. इन सम्मेलनों में हिन्दू धर्म के वैभवशाली अतीत और इसके विस्तार की जरूरत पर बल दिया जाता है. तबलीग को बड़े पैमाने पर विदेशों से चंदा मिलता है. इसका ज्यादातर इस्तेमाल मस्जिदों के निर्माण पर होता है. इसी तरह विहिप और संघ को भी विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों से खूब चंदा मिलता है. इस रकम का उपयोग भी मंदिरों के निर्माण और धार्मिक सम्मेलनों के लिए होता है. एक अनुमान के मुताबिक राममंदिर निर्माण के लिए विहिप और संघ को सैकड़ों करोड़ का चंदा मिला है.
हालांकि दोनों संगठन एक दूसरे से एकदम अलग लगते हैं. लेकिन दोनों के काम करने के ढंग और नेतृत्व में समानता है. तबलीग और विहिप या संघ के नेतृत्व करने वाले अभिजन हैं. इनमें देशी-विदेशी सभी शामिल हैं. दोनों संगठन गरीब पिछड़े, दलित और आदिवासियों के बीच काम करते हैं. तबलीग और विहिप दोनों भले ही प्रतिद्वंदी लगते हों लेकिन सोच और रवैये के स्तर पर भी दोनों में अद्भुत समानता है.
समाजशास्त्री शैल मायाराम के अनुसार, ‘आधुनिकता के प्रति नजरिया हो, नेतृत्व की सामाजिक जड़ों का सवाल हो, लैंगिक प्रश्न हो, भारतीय जाति व्यवस्था के साथ अन्योन्यक्रिया का मामला हो, बहुसांस्कृतिकता का पहलू हो, अनिवासी नागरिकों के बीच काम का दायरा हो या हिन्दुओं और मुसलमानों की आस्थाओं और विश्वासों की विविधता-बहुलता के ऊपर समरूपता थोपने की कोशिश हो, ये दोनों संगठन एक ही रास्ते के राही लगते हैं. दोनों ही हिन्दुओं और मुसलमानों के पारंपरिक धार्मिक रवैये से असंतुष्ट हैं और उसे अपने-अपने समुदाय की कमजोरी की वजह करार देते हैं.’
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस से 300 से अधिक भारतीयों की मौत और करीब 200 लोग लॉकडाउन की भेंट चढ़े
दोनों संगठन अपना संख्याबल बढ़ाने में मुब्तिला हैं. विहिप और संघ हिन्दुओं में भ्रम फैलाते हैं कि मुसलमान चार शादियां और सोलह बच्चे पैदा करते हैं, इसलिए जल्दी ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. यह डर और नफरत पैदा करके सैकड़ों सालों से एक साथ रहने वाले हिन्दू मुसलमानों में दूरियां और तनाव बढ़ा है. हिन्दुत्व के प्रचार और मुसलमानों के प्रति नफरत के कारण आज का हिन्दू नौजवान संविधान के मूल सिद्धांत पंथनिरपेक्षता को नकारकर सांप्रदायिक कहलाने में गर्व महसूस करता है.
बहुसंख्यकवाद की राजनीति के कारण एक तरफ हिन्दुत्व की कट्टरता और उसका हिंसक स्वरूप सामने आ रहा है और दूसरी तरफ तबलीग जैसे संगठनों का विस्तार हो रहा है. मुसलमानों पर बढ़ते हमले उन्हें धार्मिक रूप से संकीर्ण बना रहे हैं. मजहब पर खतरा दिखाकर तबलीग जैसे संगठन मुसलमानों को धर्मांध बनाकर इस्लामी एकजुटता का पाठ पढ़ा रहे हैं. नतीजतन मुसलमान तबलीग के साथ जुड़ रहे हैं. हिन्दुओं और मुसलमानों में ऐसे संगठनों के मार्फत फैल रही धर्मांधता और कट्टरता से सबसे ज्यादा नुकसान उस भारतीयता का हुआ है जिसकी बुनियाद बहुलता और सौहार्द पर आधारित है.
(लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर हैं. यह उनके निजी विचार हैं)
Gandhi and Nehru and other congress leaders couldn’t stop Jinnah’s dream, At that time there was no influential Hindu organization. Actually communal division of India and Muslim fundamentalism has created Hindu organizations, even today 90% of Muslims are Fundamentalists against 10% of Hindus.
Ravikant ji sham on ur thougt …kitani gandi soch or standerd hai apka…is desh ke logo ke liy………kitana badnam hinduo ko aap log karte hai iske liy aapko Atma kabhi apko maaf nahi karegi……..jhuuth ka koi pair nahi hota…or the print tum log to kisi ka b lekh chap dete ho Bina soche samjje…kun samaz Mai nafrat bhar rahe ho…..the print apna standerd maintain kro
बहुत ही सटीक विश्लेषण है। संघ और जमात दोनों संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। दोनों का नेतृत्व सवर्णों के हाथ में है। सवर्ण मुसलमान पिछड़े मुसलमानों का 99% हिस्सा खा रहा है वही काम सवर्ण हिंदू करता है वह अपने पिछड़े हिंदुओं का 90 फ़ीसदी हिस्सा अकेले खा रहा है।
मुस्लिम लीग और तबलीगीयोंमें हेतु और उद्देश्य के बारे में कोई फर्क नहीं, रास्ते के चुनाव में फर्क है। लीगी चाहते थे हंसते लेंगे पाकिस्तान लडकर लेंगे हिंदुस्तान। सारे मुसलमानों ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया फिर भी हिन्दुस्तान में रह गए। तबलीगीयोंमें धीरज था। वे चाहते थे कि कुछ देरी से ही सही पर खाएंगे पूरा हिंदुस्तान।
Mere bhai tabligi jamaat sirf apne Muslim bhaiyo per hi to kam karti h or vo un sab ko bhaichare ka part sikhati h taki hmare mulk india mae aman rhe uska app 100 year ki history ko dekh sakte ho usne kesa kam kiya h bhaiyo us jamaat ke bare mai asi soch mat rakho kisi ke bare mai asa kehna se phele us ke kam ko dekho tab us ke bare mei kuch kaho vo dunya mai ayk akeli asi jamaat h jo apna pesa or apna time leker chalti h use na to koi parti pesa deti h na koi or vo apna jan or mall ko leker sirf apne Muslim bhaiyo ke pass icile jate h taki vo bhi namaj ko pdh ne lage vo vo bhi chori karna chod de vo bhi jhut bolna chod de vo bhi apne padosi ka sat dene lage or uski help ker ne lage chahe vo padosi Muslim ho ya fir ger Muslim vo asi jamat h jo apne mulk mai aman chahati h or mare bhai is jamaat mai doctor and adveket and engineers bhi kam karte yadi yah jamat kuch galt kam karti to ya log us mai kam na karte isi liya mere bhaiyo kisi ke kamo per is thra mat bolo kisi ka dharm galt bat nhi sikhata h isi liya apsa mai ham sab ko mohabbat rkhni chahiya tbhi hmara mulk ko faida hoga