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Friday, 22 November, 2024
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लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र में लावणी कलाकारों के सभी कार्यक्रम रद्द, उद्धव ठाकरे से की मदद की अपील

कई लावणी कलाकारों के अनुसार वे वेतनभोगी नहीं है कि हर महीने एक निर्धारित राशि उनके बैंक खातों में आ जाए और जिससे वे अपनी दैनिक उपयोग की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें.

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पुणे: महाराष्ट्र में लावणी कलाकार महासंघ के अध्यक्ष संतोष लिंबोरे ने राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से अपील की है कि कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के बाद राज्य में सभी जगह पूर्व निर्धारित लावणी सांस्कृतिक कार्यक्रम अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गए हैं जिस कारण इससे जुड़े कलाकारों की रोजीरोटी पर संकट आ गया है.

संतोष लिंबोरे का कहना है, ‘लावणी कार्यक्रमों की सारी बुकिंग रद्द हो चुकी है. इस कारण लावणी जैसे मनोरंजन के परम्परागत कला व्यवसाय से जुड़े कलाकारों और उन पर निर्भर अन्य कर्मचारियों की सभी गतिविधियां भी स्थगित हो गई हैं. ऐसी हालत में इस नृत्य और संगीत से जुड़े कई परिवारों के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है.’

संतोष लिंबोरे के मुताबिक जो परिस्थिति है उसमें उन्हें नहीं लगता कि आने वाले कई दिनों तक कोरोना संकट का समाधान निकलेगा. इसलिए, उन्होंने राज्य सरकार से यह मांग की है कि जब तक यह संकट कायम रहता है तब तक सरकार लावणी लोक कलाकारों के परिवारों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए राहत पैकेज जारी करें.

वहीं, लावणी कलाकार महासंघ ने इस बारे में बात करने के लिए राज्य के संस्कृति मंत्री अमित देशमुख से भी संपर्क साधा है. महासंघ को उम्मीद है कि राज्य संस्कृति विभाग उनके निवेदन पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगा और उन्हें आर्थिक तौर पर मदद देने के लिए जल्द ही कोई न कोई हल निकालेगा.

कई लावणी कलाकारों के अनुसार वे वेतनभोगी नहीं है कि हर महीने एक निर्धारित राशि उनके बैंक खातों में आ जाए और जिससे वे अपनी दैनिक उपयोग की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें.

लॉकडाउन के बाद पुणे से उस्मानाबाद अपने घर लौटीं एक लावणी कलाकार सुरेखा जुम्बाड़े बताती हैं कि उनकी तरह ज्यादातर कलाकार अलग-अलग लावणी समूहों में अनुबंध के आधार पर काम करते हैं और उन्हें कार्यक्रम होने के बाद जो मेहनताना दिया जाता है उससे ही उनकी घर-गृहस्थी चलती है.

इस वर्ष मार्च और अप्रैल के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द हो चुके हैं और उसके बाद के आयोजन भी निर्धारित नहीं हुए हैं. इसलिए, सुरेखा जुम्बाड़े जैसी कई लावणी कलाकारों की माली हालत तंग है.


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बता दें कि लावणी सांस्कृतिक कार्यकर्मों के आयोजन की दृष्टि से वर्ष में मार्च से मई की अवधि महत्त्वपूर्ण मानी जाती है. इस दौरान गन्ना आदि की फसल काटने के बाद गांव-कस्बों में लावणी समूहों को कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बुक किया जाता है. इसलिए, इन तीन महीनों के दौरान ग्रामीण अंचलों में कई सांस्कृतिक मंडल मनोरंजन के लिए लावणी कलाकारों को आमंत्रित करते हैं. इसलिए, इस दौरान विशेषकर महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों से लावणी कार्यक्रम आयोजित कराने की मांग रहती है.

सुरेखा जुम्बाड़े बताती हैं, ‘यही समय होता है जब लावणी कलाकारों की आमदनी होती है. इसलिए, कमाई के लिहाज से यही हमारा सीजन है. पर, इस साल कोरोना संकट के बाद सभी कार्यक्रम स्थगित हो गए हैं. इससे हमारी पूरी साल की योजना पर पानी फिर गया है.

बता दें कि हर वर्ष सीजन के दिनों में पूरे राज्य से सैकड़ों की संख्या में लावणी के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. एक लावणी समूह में सामान्यत: सैकड़ों की संख्या में कलाकार होते हैं. हर वर्ष मार्च से मई के दौरान करीब 70-80 आयोजनों से राज्य की परंपरागत कला से जुड़े लावणी समूहों की कुल कमाई करोड़ों में पहुंच जाती है. इसके बाद जून से बरसात का मौसम शुरू हो जाता है और आमतौर पर कई महीनों तक कोई भी लावणी के कार्यक्रम नहीं होते हैं.

हालांकि, दशहरा के बाद दोबारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित कराने की मांग आने लगती है. लेकिन, इस बीच कई महीने जब लावणी कलाकारों के पास काम नहीं होता है तो वे मेहनताना के बचत की राशि से अपने परिवारों को पालते हैं.

दूसरी तरफ, राज्य सरकार के सामने मौजूदा परेशानी कहीं बड़ी है. वजह, महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण का संकट विकराल रूप ले चुका है. वहीं, लॉकडाउन के कारण राज्य के अलग-अलग वर्ग और व्यवसाय से जुड़े लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है. इस तरह, इस संकट से सिर्फ लावणी लोक कलाकार ही नहीं जूझ रहे हैं बल्कि मछुआरे, किसान, मजदूर और लघु उद्योगों के कारीगरों से लेकर कड़ाई-सिलाई और स्वयं-सहायता समूहों में कार्य करने वाली महिलाएं खाली हाथ घर पर हैं और वे राज्य सरकार को ज्ञापन देकर उन्हें आर्थिक संकट से उबारने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार तुरंत किसी एक वर्ग या व्यवसाय से जुड़े लोगों को ध्यान में रखकर फैसला नहीं ले पा रही है. यही वजह है कि राज्य सरकार फिलहाल इस बारे में किसी तरह का कोई आश्वासन या प्रतिक्रिया देने से बच रही है.

सतारा में रहने वाली एक अन्य लावणी कलाकार संहिता काले कहती हैं, ‘कोरोना के चलते जब आम जीवन रुक गया है तब नाच-गाकर अपने परिवार को चलाने वाले लोक कलाकार सरकार और दूसरों पर निर्भर हो गए हैं. पर, इस मुसीबत से तो सभी सामना कर रहे हैं. इसलिए, सवाल है कि समाज में कौन हैं जो लावणी लोक कलाकारों की मदद करेंगे? इसलिए, हम लावणी लोक कलाकारों को अंत में राज्य सरकार से ही उम्मीद है.’

वहीं, लावणी कलाकार महासंघ का मानना है कि यह पहला मौका नहीं है जब उन्हें इस तरह की विपत्ति का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन, इस बार मुसीबत बड़ी और दीर्घकालिक है.


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संतोष लिंबोरे की मानें तो इससे पहले देश में नोटबंदी लागू होने के दौरान भी लावणी समूहों को आयोजन के लिए बहुत कम आमंत्रण प्राप्त हुए थे. इसके अलावा, मराठवाड़ा और विदर्भ इलाकों में पड़ने वाले सूखे भी उनके कारोबार पर बुरा प्रभाव डालते हैं. कई बार चुनाव आचार संहिता की वजह से उनकी सांस्कृतिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं.

लेकिन, इन दिनों कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन ने ऐसी स्थिति तैयार कर दी है कि वे लंबे समय तक घर बैठने के लिए मजबूर हो गए हैं और उन्हें महीनों इसी हालत में यदि नाच-गाने का मौका नहीं मिला तो कमाई पूरी तरह रुक जाने से परिवार की दालरोटी चलानी मुश्किल हो जाएगी.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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