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Saturday, 23 November, 2024
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मुस्लिम आईएएस,आईपीएस अधिकारियों ने अपने समुदाय से की अपील- खुद को दोष देने का कोई कारण न दें

लगभग 80 सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों ने मुस्लिमों से सोशल डिस्टैन्सिंग का अभ्यास करने का आग्रह किया है और कुरान का हवाला देते हुए कहा है कि लापरवाही के माध्यम से बीमारी को बुलाना एक 'पाप' है.

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नई दिल्ली : लगभग 80 सेवारत और सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों ने इस्लामिक धर्म से जुड़े मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन करें और किसी को भी भारत में कोरोना के प्रसार का आरोप लगाने का मौका न दें.

अधिकारियों की अपील पिछले महीने नई दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में तबलीगी जमात कार्यक्रम के बाद आई है, जिसकी वजह से 5 अप्रैल को भारत में कुल कोरोना मामलों का लगभग एक-तिहाई इजाफ़ा हुआ है.

अफसरों ने अपनी अपील में कहा, ‘इससे समाज में एक संदेश जा रहा है कि भारत में मुस्लिम का एक समूह ‘सोशल डिस्टैन्सिंग’ और अन्य उपायों का पालन नहीं कर रहे हैं.’

वीडियो में व्यापक रूप से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर पथराव किया जा रहा है और कानून लागू करने वाले पुलिस कर्मियों के साथ मुस्लिम समुदाय के पुरुषों की झड़प हो रही है. कुछ वीडियो में पुलिसकर्मियों द्वारा लाठीचार्ज को देखा जा सकता है मुस्लिम समुदाय के पुरुष नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद जाते हुए दिखाई दें रहे हैं.

अधिकारियों ने मुसलमानों से ‘जिम्मेदारी से कार्य करने और कोरोनोवायरस के खिलाफ लड़ाई में साथी नागरिकों के लिए खड़े होने’ का आग्रह किया है. वे कहते हैं कि समुदाय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत में महामारी फैलाने के लिए मुसलमानों पर आरोप लगाने का अवसर किसी को न मिले.

उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मार्गदर्शन और सरकार के आदेशों का पालन करना चाहिए, क्योंकि जो सही है उसका पालन करना चाहिए चाहे वह किसी को धार्मिक ग्रंथों में समर्थन मिले या नहीं.

कुरान को लागू करना

अफसरों ने इस्लामी शिक्षाओं का तर्क दिया है कि लापरवाही के माध्यम से वायरस को बुलावा देना एक ‘पापपूर्ण कार्य’ है, भले ही आप संक्रमित होने वाले एकमात्र व्यक्ति हों.

अफसरों ने कहा, ‘लापरवाही से खतरे को बुलाना हराम है. यह वायरस उस व्यक्ति के शरीर तक सीमित नहीं है, जिसने इसे अपने मूर्खतापूर्ण कार्य के माध्यम से खुद को आमंत्रित किया है. यह परिवार और समाज में तेजी से फैलता है और निर्दोष लोगों की मौत होती है.’

वे कहते हैं, ‘कुरान कहता है कि अगर कोई एक निर्दोष इंसान को मारता है, तो ऐसा लगता है जैसे उसने सभी मानव जाति को मार दिया है और जो भी एक की जान बचाता है, वह ऐसा है जैसे उसने सभी मानव जाति के जीवन को बचाया है.’

हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि धार्मिक ग्रंथों के अभाव में भी यह जरूरी है कि मुसलमान क्वारंटाइन मानदंडों का सम्मान करें. यहां तक ​​कि अगर एक महामारी से बचने के लिए कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं थे या एक उग्र महामारी के दौरान क्वारंटाइन में रहना और अपने आप को इससे सुरक्षित रखने के उपायों को अपनाना अभी भी समझदारी की बात होगी.

महामारी के ख़त्म और सामान्य जीवन पटरी पर लौटने के बाद मुस्लिम सामूहिक रूप से प्रार्थना कर सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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