रांची: झारखंड में कोरोनावायरस के 414 संदिग्धों को सर्विलांस पर रखा गया है. इसमें 121 की 28 दिनों की सर्विलांस अवधि पूरी हो चुकी है. राहत की बात ये है कि पूरे राज्य में अभी तक एक भी मामले की पुष्टि नहीं हुई है. इस बीच बर्ड फ्लू की पुष्टि हो गई है. रांची के बिरसा मुंडा ज़ू के निदेशक वेंकटेश्वर ने सरकार को इसकी जानकारी दी है.
ओरमांझी स्थित ज़ू में बीते 23 फरवरी को दो गरुड़, तीन उल्लू और दो सफेद आईबीस पक्षियों की मौत हो गई थी. जांच के लिए सैंपल कोलकाता और भोपाल भेजे गए थे. जिसमें बर्ड फ्लू (एच5एन1) की पुष्टि हुई है. भोपाल स्थित लैब में 9 मार्च को ही इसकी पुष्टि कर दी गई थी.
इसके बाद राज्य पशुपालन विभाग की ओर से पूरे राज्य में अलर्ट जारी किया गया है. सभी जिलों को बर्ड फ्लू पर निगरानी रखने को कहा गया है. साथ ही मुर्गियों के व्यापार और बिक्री पर नज़र रखने को कहा गया है.
ज़ू के डॉक्टर अजय कुमार ने बताया कि 25 फरवरी के बाद किसी तरह की घटना नहीं हुई है. लेकिन यह अलार्मिंग सिचुएशन ज़रूर है. क्योंकि यह ऐसी बीमारी है जिसके बारे में पक्षियों के मरने के बाद ही पता चलता है. उन्होंने कहा कि बीते माह राज्य में अन्य जगहों पर भी पक्षियों की मौत हुई थी लेकिन उसकी जांच नहीं कराई गई. जब जांच ही नहीं होगी, तो पता कैसे चलेगा.
डॉ. अजय ने बताया कि जनवरी से फरवरी माह के बीच पक्षियों के बीच रानीखेत नाम की वायरल डिजीज भी फैलती है. इसमें भी उसके बचने की संभावना न के बराबर होती है जहां तक इंसानों के इससे बचाव की बात है, तो फ्लू वाले इलाके में नहीं जाना चाहिए. कोरोनावायरस से बचने के ले जितने तरीके से खुद को सैनेटाइज़ करते हैं, वही इसमें भी करना है.
हालांकि, फ्लू वाले मुर्गा या बत्तख खाते भी हैं तो इससे कोई नुकसान नहीं होता है. बशर्ते वह 50-56 डिग्री तापमान पर पका हो. क्योंकि इतने तामपान में बर्ड फ्लू वायरस मिनटों में मर जाता है.
कोरोना से फैले अफवाह के बीच बीते 17 मार्च को हज़ारीबाग जिले में एक पोल्ट्री संचालक ने दो छोटे ट्रकों में भरे मुर्गियों को जंगल में फेंक दिया था. वहीं चूजे को मिट्टी में जिंदा दफना दिया था. पोल्ट्री फार्म वाले मुर्गे कहीं 50 तो कहीं 60 रुपए में बिक रहे हैं. वहीं देसी मुर्गे के दाम में बढ़ोत्तरी है. मुर्गा व्यवसायी अनवर ने बताया कि बीते 20 दिनों से हालत खराब हैं. बिक्री में 50-70 प्रतिशत की गिरावट है.
बीते दो महीने से राज्य के कई जिलों में बड़ी संख्या में पक्षियों के मरने की खबर आती रही है. 4 फरवरी को पलामू जिले के पलामू टाइगर रिजर्व में दुर्लभ प्रजाति के दो हरियाल की मौत हो गई थी. 5 से 7 फरवरी के बीच खूंटी में 50 से अधिक कौए मृत पाए गए थे. लोहरदगा में कौए, कोयल और चमगादड़ों की मौत हुई थी.
इसके बाद जिले के कुडू प्रखंड में डॉक्टरों की एक टीम जांच के लिए पहुंची. उसका सैंपल भी जांच के लिए रांची के पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान भेजा गया था. यही नहीं, लातेहार में खेत, सड़क और लोगों के घरों के आगे मरे हुए कौए पाए गए थे. यहां के पशुपालन अधिकारी आरएस राम ने सैंपल लेने की बात कही थी, लेकिन जांच के लिए उसे रांची या फिर कहीं और भेजने की बात से इंकार कर दिया था.
इससे पहले बीते साल भी बर्ड फ्लू ने यहां पक्षियों को अपनी चपेट में लिया था. उस वक्त भी भोपाल स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के लैब में सैंपल भेजा गया जहां बर्ड फ्लू (एच5एन1) की पुष्टि हुई थी. वहीं 2011 में झारखंड में भी बर्ड फ्लू ने अपना कहर बरपाया था. उस दौरान पूरे राज्य में कई जगहों पर बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत हुई थी.
बीते जनवरी में पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के कोरिया में बर्ड फ्लू की बात सामने आने पर 15 हजार से अधिक मुर्गियों को दफना दिया गया. साथ ही हजारों अंडों को भी नष्ट कर दिया गया. ओडिशा में भुवनेश्वर के ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी के पोल्ट्री फॉर्म में भी जनवरी में ही बर्ड फ्लू पाया गया है.
मुर्गी पालकों, व्यवसाइयों को क्या करना है? पहले कोरोना और फिर बर्ड फ्लू की वजह से कारोबार पर पड़े असर के लिए क्या उपाय हैं? निगरानी के लिए क्या सिस्टम बनाए गए हैं? आमजन के लिए सरकार किन माध्यमों से क्या हिदायत दे रही है? इन सब सवालों का जवाब लेने के लिए कृषि एवं पशुपालन मंत्री को 18 बार फोन किया, लेकिन उन्होंने बात करना जरूरी नहीं समझा. उनका पक्ष मिलते ही रिपोर्ट को अपडेट किया जायेगा.
(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार है, रांची से दिप्रिंट के लिए लिखते हैं)