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Monday, 4 November, 2024
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ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद इन छह युवा कांग्रेसी नेताओं को कैसे सहेजेगी पार्टी, सब पूछ रहे हैं अब किसकी है बारी

कांग्रेस पार्टी में युवा नेताओं को लगातार दरकिनार किया जाता रहा है चाहें वो सचिन पायलट हों, जितिन प्रसाद, दीपेंद्र हुडा ,कुलदीप बिश्नोई, मिलिंद देवरा हों या फिर संदीप दीक्षित.

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नई दिल्ली: बात सिर्फ पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार सांसद रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की नहीं है कि उन्हें पार्टी ने उनके काम के अनुरूप स्थान नहीं दिया या उनके काम को नहीं पहचाना. और तो और पार्टी में लगातार उन्हें यह महसूस होता रहा कि उनकी उपेक्षा हो रही है. अब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को छोड़ भाजपा के कमल को अपने हाथों से थाम लिया है. लेकिन ज्योतिरादित्य वाला हाल कांग्रेस के आधे दर्जन युवा नेताओं का है जो इसी तरह की दुविधा में जी रहे हैं कि कभी उन्हें पार्टी में पहचान मिलेगी?

अब तो पार्टी के युवा नेताओं में बढ़ते असंतोष को देखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शामिल भूपेश बघेल ने भी दिप्रिंट के संवाददाता से कहा, ‘कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी वर्ना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता, फ्लोर टेस्ट होने दीजिए सब साफ हो जाएगा.’

सिंधिया का इतना बड़ा बदलाव सिर्फ अपने करियर ग्रोथ को लेकर नहीं है बल्कि अब कांग्रेस के युवा नेताओं को लगने लगा है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने उनके करियर में ग्रोथ संभव नहीं है. वहीं कुछ नेता खुलकर भारतीय जनता पार्टी के  अनुच्छेद 370, जनसंख्या नियंत्रण सहित कई निर्णयों में पार्टी लाइन से इतर उनके साथ नजर आए, जिसमें मिलिंद देवरा, संदीप दीक्षित, जितिन प्रसाद, शशि थरूर जैसे कई नेता शामिल हैं. जिसके बाद यह हल्ला भी हुआ कि वह पार्टी लाइन से हटकर बयान दे रहे हैं और इस दौरान उन नेताओं के पार्टी छोड़े जाने की भी बातें भी सामने आईं.

नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता ने बताया, ‘पार्टी में कई युवा नेता हैं जिन्हें लगने लगा है कि उनकी पार्टी में राजनीतिक कोई ग्रोथ नहीं होने दी जा रही है. उनके करियर में एक तरह की शीशे की दीवार है जो उन्हे राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने नहीं दे रही है. ‘

शायद यही वजह है कि देशभर में अच्छे युवा और वाइब्रेंट नेता होने के बाद भी कांग्रेस में बुजुर्ग नेताओं का बोलबाला है और युवा नेताओं में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है.

जैसे ही ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अलग हुए तो पार्टी में इसबात को लेकर हलचल बढ़ गई कि अब कांग्रेस के कई युवा नेता छिटकेंगे.

सचिन पायलट

वैसे राहुल गांधी के करीबी दो ही नेता थे एक सचिन पायलट और दूसरे ज्योतिरादित्य. 42 वर्षीय सचिन ने भी डूबती पार्टी को वापस स्थान दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की है. लेकिन पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है. जबकि राजस्थान में कांग्रेस की वापसी हो या फिर मध्यप्रदेश में इन दोनों युवा नेताओं का बड़ा योगदान रहा है.

सचिन और ज्योतिरादित्य राहुल के साथ ठीक वैसे ही थे जैसे पिता राजीव के साथ राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया. उस दौर में राजेश और माधव राजीव की परछाईं हुआ करते थे और पिता की तर्ज पर तीनों बेटों की दोस्ती भी गाढ़ी रही लेकिन अब कड़ियां बदल रही हैं.

राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान यह माना जा रहा था कि पार्टी सचिन को ही अपना सीएम चेहरा बनाएगी क्योंकि पार्टी की जीत के लिए पायलट और उसके समर्थकों ने जी जान लगा दी थी. लेकिन राजस्थान में जीत के बाद पार्टी ने वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को अपना नेता चुना और सचिन को उप मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा.

सचिन शांत नहीं रहे उन्होंने अपने पद के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है और लड़ रहे हैं…खबर आ रही थी कि सचिन और उनके समर्थकों को साइड करने के लिए गहलोत अपने मंत्रिमंडल में विस्तार करने वाले थे लेकिन उन्होंने अभी यह विस्तार अनिश्चित कालीन के लिए टाल दिया है.

सचिन ने ज्योतिरादित्य के जाने पर ट्वीट किया है, ‘ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से जाना दुर्भाग्यपूर्ण है, काश चीजों को पार्टी के भीतर ही सहयोगपूर्वक हल किया जाता.’

ज्योतिरादित्य के हटने से पूरी पार्टी और उसके कार्यकर्ता हिल चुके हैं.

इधर, एमपी में जो हालात हैं उसके बाद से पायलट खेमे को उम्मीद है कि प्रदेश में भी राजनीतिक समीकरण बदलेंगे. पायलट की पूछ बढ़ेगी. राज्यसभा प्रत्याशियों का चयन हो या फिर राजनीतिक नियुक्तियों का मामला पायलट की सलाह के बिना कुछ नहीं होगा. वहीं पार्टी नेतृत्व को इस बात का डर जरुर होगा कि कही पायलट भी सिंधिया के रास्ते ही नहीं चल पड़ें.

कुलदीप विश्नोई

कांग्रेस के दिग्गज नेता और हरियाणा के तीनों लालों में से एक भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई की पार्टी से नाराजगी 2019 के लोगसभा चुनाव में ही दिख गई थी.

बिश्नोई कांग्रेस की बैठकों और चुनावी सभाओं से गायब नजर आए थे. उस दौरान उनके भाजपा में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन बाद में राहुल गांधी की परिवर्तन रैली में शामिल होकर उन्होंने इन अफवाहों पर विराम लगा दिया था.

जनसंघ छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने वाले भजनलाल ने 2007 में पार्टी छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बना ली थी. भजनलाल को गैर जाटों को लामबंद करने वाले नेता के तौर पर जाना जाता रहा है.

2016 में उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस को कांग्रेस पार्टी में शामिल कर लिया. कुलदीप बिश्नोई लगातार चौथी बार आदमपुर विधानसभा सीट से जीते हैं.

जितिन प्रसाद

ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद राहुल गांधी के एक और करीबी जितिन प्रसाद को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
46 वर्षीय जितिन कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं लेकिन यूपी कांग्रेस में उनको कोई अहम पद नहीं मिला है. इसी कारण उनको लेकर भी कयास लगने शुरू हो गए हैं. पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान भी जितिन के बीजेपी में शामिल होने की चर्चाएं तेज हो गईं थीं. उन्होंने अपना फोन तक बंद कर लिया था लेकिन बाद में प्रियंका गांधी की कोशिशों के कारण वह मान गए.

जितिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के ब्राह्मिण चेहरा हैं और वह भी पार्टी में उचित स्थान न दिए जाने के कारण कई बार विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं. जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद और दादा ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस पार्टी के वफादार रहे हैं.

पिछले साल ही अक्टूबर में जितिन प्रसाद को यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठी लेकिन उनके बजाय विधायक अजय लल्लू को अध्यक्ष बना दिया गया जिससे जितिन समर्थक नाराज हो गए. हालांकि जितिन ने दिप्रिंट से बताया कि वे इस ‘रेस’ में थे ही नहीं.

वह एक कार्यकर्ता की तरह कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का काम करेंगे लेकिन जितिन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मन में इस बात की टीस जरूर है कि राहुल गांधी का करीबी होने के बावजूद भी उन्हें कोई अहम पद क्यों नहीं दिया जा रहा.

वह भले ही लगातार तीन चुनाव हार गए हों लेकिन शाहजहांपुर व उसके आसपास के जिलों में उनकी मजबूत पकड़ आज भी मानी जाती है. 2004 में महज 30 साल की उम्र में वह शाहजहांपुर से सांसद बने. फिर 2009 में वह धौरहारा सीट से दोबारा सांसद बने. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद एक दौर में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे.

अक्सर शांत दिखने वाले जितिन विवादों से खुद को दूर रखते हैं. उनको करीब से जानने वाले कहते हैं कि जितिन के मन में क्या है इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं रहता लेकिन वह यूपी में किसी भी पार्टी के लिए बड़ा ब्राह्मण चेहरा साबित हो सकते हैं. ये बात बीजेपी भी जानती है लेकिन कांग्रेस आलाकमान इस बात को नहीं समझ रहे.

वैसे जितिन उन कांग्रेसी नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने भाजपा का अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर खुल कर समर्थन किया था. जितिन ने नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी ट्वीट किया था और कहा था, ‘ समय आ गया है कि लोगों जनसंख्या नियंत्रण और बढ़ने से रोकने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाए और कांग्रेस पार्टी भी पंचमढ़ी शिविर में दो बच्चों के संकल्प को दोहराए. यही नहीं उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी 10 परिवारों को गोद लेने और जागरूक करने के लिए कदम बढ़ाने की बात कही.

जितिन के हर दल के नेताओं से सहज रिश्ते हैं. वहीं युवाओं के बीच में उनका चार्म है लेकिन जिस तरह से कांग्रेस उन्हें साइडलाइन करके चल रही है इससे जितिन के समर्थकों में काफी नाराजगी है.

मिलिंद देवरा

मुंबई से आने वाले सांसद मिलिंद देवरा कांग्रेस के दिग्गज नेता मुरली धर देवरा के बेटे हैं और वह भी राहुल गैंग के एक सदस्य रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से पार्टी ने उनके साथ व्यवहार किया है ज्योतिरादित्य के बाद पार्टी छोड़ने में उनका नाम भी अग्रिम पंक्तियों में है. लोकसभा चुनाव के दौरान 43 वर्षीय देवरा को पार्टी ने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनाया गया. लेकिन लोकसभा चुनाव में हार के बाद ही मिलिंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. तभी से देवड़ा पार्टी में साइडलाइन कर दिए गए हैं.

देवरा भी पार्टी के वफादारों में से एक गिने जाते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वह पहले कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस कदम के लिए समर्थन किया था. वह देवरा ही थे जिन्होंने भाजपा सरकार की वन नेशन वन इलेक्शन का भी समर्थन किया था. तब उन्होंने बयान जारी कर कहा था

पूर्व में हुए चुनाव का जिक्र करते हुए उन्होंने अपने लिखित बयान में कहा कि हमें ये बिलकुल भी नहीं भूलना चाहिए कि देश में 1967 से पहले देश में एक साथ ही चुनाव होते थे. पूर्व सांसद होने के नाते मैं मानता हूं कि लगातार होने वाले चुनावों की वजह से सरकार चलाने में बहुत दिक्कत आती है. चुनाव के चलते अच्छे से सरकार नहीं चल पाती है.

‘एक देश एक चुनाव’ का विचार तो बहुत बढ़िया है, लेकिन संविधान में संशोधन कर विधायिकाओं का निश्चित कार्यकाल किए बिना यह संभव नहीं है.

दीपेंद्र हुडा

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा भी कांग्रेस की यंग ब्रिगेड का हिस्सा हैं. और वह भी पार्टी में साइडलाइन ही रहे हैं जबकि वह दो बार के सांसद भी हैं.

वह राज्यसभा में अपना नाम चाहते हैं लेकिन उनकी आगे की कतार में कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला का नाम चल रहा है जिसकी वजह से पार्टी में कलह की स्थिति बनी है. बता दें कि दीपेंद्र को पार्टी ने कोई संस्थानात्मक जिम्मेदारी भी नहीं दी गई है. दीपेंद्र भी अनुच्छेद 370 के समर्थन में उतरे थे.

मोदी सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए, 42 वर्षीय दीपेंद्र ने कहा था कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करना “राष्ट्रीय अखंडता” के हित में है.

संदीप दीक्षित

दिल्ली में 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी उन युवा नेताओं में शामिल हैं जिन्हें पार्टी ने कोई बड़ा रोल नहीं दिया है और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है. सदीप दीक्षित 55 साल के हैं. फरवरी में  हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी संदीप दीक्षित किसी बड़े रोल में नजर नहीं आए और न ही पार्टी ने उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी ही दी.

पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इसबार भी 70 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एक भी सीट नहीं जीतने पर संदीप ने कहा था कि मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हो रहा है.

कांग्रेस पार्टी की लचर स्थिति और आंतरिक कलह को देखते हुए जहां इससे अच्छे नेता छिटक रहे हैं वहीं दीक्षित ने कहा था,’ हमलोग कहीं नहीं है. हम शीला दीक्षित द्वारा किए गए काम को दिखाने की कोशिश तो की लेकिन हमने सुभाष चोपड़ा को जिम्मेदारी बहुत देर से दी और प्रचार का काम भी बहुत देर से शुरू हुआ.

(राहुल संपाल, प्रशांत श्रीवास्तव, मौसमी दासगुप्ता और ज्योति यादव के इनपुट्स के साथ )

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