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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतनदी बहे या नहीं इसपर भी सत्ता का नियंत्रण, इवांका ट्रंप और आत्मबोधानंद उसकी पहली तस्वीरें हैं

नदी बहे या नहीं इसपर भी सत्ता का नियंत्रण, इवांका ट्रंप और आत्मबोधानंद उसकी पहली तस्वीरें हैं

गंगा के कई तटों के जीर्णोद्धार का काम निजी कंपनियों को दिया गया है. सहज गणित का ज्ञान बता देगा कि आम आदमी को नदी से कैसे दूर किया जा रहा है.

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परिस्थितियां बदलना जब असंभव हो जाए तो पिक्चर ही बदल लेनी चाहिए. कैमरा झूठ नहीं बोलता- आज का नया उभरता झूठ है.

इन दो तस्वीरों को देखिए– एक आत्मबोधानंद हैं जिन्होने गंगा के लिए जल त्याग दिया. पुलिस ने उन्हें जबर्दस्ती दिल्ली एम्स में भर्ती कराया. तीन दिन बाद एम्स से उन्हें डिसचार्ज कर दिया गया. वे अगले तीन दिन एम्स के गलियारे में बैठे रहे लेकिन मीडिया से लेकर सरकार तक किसी का कैमरा वहां नहीं पहुंचा. वैसे कैमरा वहां पहुंचना भी नहीं था क्योंकि साधु की तपस्या विलासिता के लिए नहीं होनी चाहिए! जी, विलासिता.

नदी बहेगी, जरूर बहेगी लेकिन सिर्फ उनके लिए जो सक्षम है और जिनकी जेब में पैसा है. एक नज़र इवांका ट्रंप की तस्वीर पर डालिए. पीछे दिख रहा नीला पानी वास्तव में कभी नीला नहीं रहता उसे नई नीली टाइल्स लगाकर और फोटोशॉप की मदद से खूबसूरत दिखाया गया. ताजमहल के पीछे बह रही यमुना की असलियत किसी से छिपी नहीं है. लेकिन ट्रंप परिवार के लिए यमुना को बहाया गया. इसके लिए हरिद्वार के भीमगौड़ा बैराज से पांच सौ क्यूसेक पानी छोड़ा गया जो बुलंदशहर होता हुआ ठीक चार दिन में आगरा पहुंच गया. कैल्कुलेशन ऐसा किया गया था कि जब ट्रंप परिवार ताज परिसर में मौजूद हो तो पीछे कलकल बहती यमुना नज़र आए. 18 साल पहले राजकुमारी डायना ताजमहल देखने पहुंची थीं. उनके ऊपर खुबसूरत दिखने का कोई दबाव नहीं था. चाहे तो गूगल कर डायना की इसी जगह मौजूद फोटो को देख लीजिए. फर्क समझ आ जाएगा.

ताकतवर के लिए नदी को बहाने और रोकने का यह एकमात्र और पहला उदाहरण नहीं है. पिछले सालों में यह कई बार दोहराया गया है, जो बताता है कि आत्मबोधानंद की ‘समाज के लिए नदी ‘ वाली मांग गलत है. बानगी देखिए– 2014 में चीनी राष्ट्रपति साबरमती के किनारे प्रधानमंत्री के संग झूला झूल रहे थे. उस समय साबरमती में नर्मदा का पानी डायवर्ट करके डाला गया था. नर्मदा का यह जल कच्छ के किसानों के लिए होता है. 2017 में गुजरात चुनाव के दौरान सी प्लेन साबरमती में उतारने के लिए भी यही प्रक्रिया दोहराई गई थी. यानी जब सत्ता को जरूरत है तब नदी बहेगी, इसके अलावा नदी का बहना पानी की बर्बादी मानी जाती है.

प्रधानमंत्री मोदी दो साल पहले जब चीन दौरे पर गए थे तो वुहान के ईस्ट लेक में भी पानी का इंतजाम किया गया था. क्योंकि दोनों नेताओं को झील किनारे टहलना था. अन्यथा चीन में मीठे पानी की यह सबसे बड़ी झील वुहान शहर के उत्पादन कचरे का बोझ ठोने को मज़बूर थी.


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कुंभ प्रशस्ति गाने वालों को एक बार इलाहाबाद में गंगा की वर्तमान तस्वीर जरूर देखनी चाहिए. उन्हें आसानी से समझ आ जाएगा कि नाले बंद करना वास्तव में एक जुमला था और स्नान के लिए अतिरिक्त पानी छोड़ा गया था. यह सभी इंतज़ाम सिर्फ कुंभ के लिए थे उसके बाद नदी जस की तस. गोया गंगा न हुई स्वीमिंग पुल हो गई कि जब हमें स्नान करना हो तो साफ बहे बाकि वक्त उसमें मल-मूत्र और सरकारी नाले सबकुछ बहाया जाए. कुंभ के बाद से गंगा में नाले यथावत बह रहे हैं. हां, उन नालों को मुख्यमंत्री योगी की गंगा यात्रा के समय भी बंद किया गया था.

गंगा के कई तटों के जीर्णोद्धार का काम निजी कंपनियों को दिया गया है. सहज गणित का ज्ञान बता देगा कि आम आदमी को नदी से कैसे दूर किया जा रहा है.

इस बीच मातृसदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद ने खुद उपवास पर बैठने की घोषणा कर दी है. लेकिन मीडिया को वह भी नज़र नहीं आएंगे, उनकी फोटो सुंदर नही आती. वे सच बोलते हैं और आवाज़ की कोई तस्वीर खींची नहीं जा सकती और वो एडिट भी नहीं होती.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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