नई दिल्ली: राजनीति वैज्ञानिक आशुतोष वार्षणेय ने बुधवार को वाशिंगटन में कहा कि भारत में प्रस्तावित एनआरसी, नागरिकता संशोधन कानून का इस्तेमाल कर बड़ी संख्या में मुस्लिमों को राज्यविहीन कर सकता है.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर यूएस कमीशन में नागरिकता कानून और भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर बोलते हुए ब्राउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वार्षणेय ने कहा, ‘सीएए के जरिए एनआरसी बड़ी संख्या में मुस्लिमों को राज्यविहीन कर सकती है. यहां तक उनको भी जो भारत में जन्मे हो या दशकों से देश में रह रहे हों…यही महत्वपूर्ण कारण है कि सीएए विरोधी प्रदर्शन बंद नहीं हो रहे हैं.’
वार्षणेय ने कहा कि सीएए के काफी गंभीर और भयानक परिणाम हो सकते हैं और भविष्य में भारतीय मुस्लिमों को ‘प्रताड़णा’ और ‘भेदभाव’ का सामना करना पड़ सकता है.
भारत में दंगों के इतिहास पर विशेषज्ञता रखने वाले आशुतोष ने दिल्ली में पिछले हफ्ते हुए दंगों पर कहा कि देश के कई हिस्सों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. उन्होंने कहा कि जब सीएए विरोधी प्रदर्शन का मुख्य चेहरा मुस्लिम समुदाय बना हुआ है तब गैर-मुस्लिमों का एक बड़ा तबका भी इससे जुड़ा हुआ है.
वार्षणेय ने कहा कि भारत में लगभग 80 फीसदी हिंदू हैं और 15 प्रतिशत से थोड़े कम लगभग 180-190 मिलियन मुस्लिम हैं.
यह भी पढ़ें: निर्भया के दोषियों के लिए जारी हुआ नया डेथ वारंट, मां बोलीं- 20 मार्च की सुबह हमारे जीवन का सवेरा होगा
उन्होंने कहा कि ‘कुछ बहुत बुरा हो सकता है जब मुस्लिम अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकार छीने जाएंगे.’
ये सुनवाई कमीशन द्वारा उठाए गए सवालों के तीन महीने बाद हो रही थी जिसमें गृह मंत्री अमित शाह और नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ नेताओं के खिलाफ इस विवादित बिल पर सेंक्शन की बात कही गई थी.
‘भारत के बुनियादी मूल्य’
वार्षणेय ने कहा कि भारत कभी भी ‘हिंदुओं का घर’ की सोच पर नहीं बना था. उन्होंने कहा कि देश हमेशा से संविधान में निहित बिना किसी धार्मिक भेदभाव के नागरिकता जैसे सिद्धांतों पर आजादी के समय से ही कायम रहा है.
उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका का संवैधानिक मूल्य समानता का अधिकार है तो भारत का बुनियादी मूल्य समानता है जिसमें ‘धार्मिक समानता, विविधता और सहिष्णुता है’. उन्होंने कहा कि इन्हीं बुनियादी मूल्यों का उल्लंघन हो रहा है.
Here are @USCIRF hearings that took place in Washington earlier today – on Citizenship Laws and Religious Freedom, with a focus on India and Burma | I spoke as a panelist | @SouthAsiaBrown @WatsonInstitute https://t.co/jZrIxaPXmc via @YouTube
— Ashutosh Varshney (@ProfVarshney) March 5, 2020
पिछले साल दिसंबर में लाया गया नागरिकता संशोधन कानून जिसके तहत तीन पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों को नागरिकता देने की बात है, उसके बाद देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए. लोगों में ये डर बन गया कि प्रस्तावित एनआरसी सीएए के साथ आया तो उससे मुस्लिमों की नागरिकता जा सकती है.
वार्षणेय ने कहा, ‘एक असंगत नागरिकता के विरोध के बाद, एनआरसी को संसद में कानून बनाया जाएगा या आने वाले महीनों में एक कार्यकारी डिक्री के रूप में घोषित किया जाएगा लेकिन मुस्लिम अल्पसंख्यक के लिए भयानक रूप से इसके निहितार्थों को स्पष्ट रूप से समझने और नोट करने की आवश्यकता है.’
‘एनआरसी ने अवैध इमिग्रेशन के प्रोपगैंडा को सामने लाकर रख दिया’
असम से मानवाधिकार वकील अमन वदूद (जो खुद भी यूएससीआईआरएफ की सुनवाई में शामिल थे) के अनुसार राज्य में एनआरसी की प्रक्रिया ने पहले ही दिखा दिया है कि भारत के मुस्लिम समुदाय के साथ सीएए क्या कर सकता है.
असम में कोई भी अवैध इमिग्रेंट्स नहीं है. एनआरसी ने राज्य में एक बड़े प्रोपगैंडा को सामने लाकर रख दिया है जिसमें अवैध इमिग्रेंट्स की बात कही गई थी….
उन्होंने कहा, ‘नागरिकता जाने के खतरे की वजह से लोग प्रदर्शन करने पर मजबूर हुए, सड़कों पर आए खासकर महिलाएं जिन्होंने बताया कि वो डिटेंशन सेंटर नहीं जाएंगी. प्रदर्शन सीएए, एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ है.
आलोचकों का कहना है कि जनगणना के तहत आने वाला एनपीआर प्रस्तावित एनआरसी की तरफ मोदी सरकार का पहला कदम है.
रोहिंग्या का सवाल
यूएससीआईआरएफ की सुनवाई में म्यांमार में बड़े स्तर पर नरसंहार झेले हुए रोहिंग्या शर्णार्थियों के बार में भी सुनवाई हुई.
यूएससीआईआरएफ कमिश्नर अनुरिमा भार्गव ने कहा, ‘सीएए इन पड़ोसी देशों में मुसलमानों की दुर्दशा को ध्यान में नहीं रखता है और न ही यह रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में रहने वाले हिंदुओं को मानता है.’
भार्गव ने कहा, ‘बर्मा (म्यांमार) में, सरकार रोहिंग्या की पहचान को नकारती है, जो जन्म प्रमाण पत्र सहित किसी भी प्रकार के पहचान दस्तावेजों को रखने में महत्वपूर्ण बाधा है.’
यह भी पढ़ें: जब देश सांप्रदायिक हिंसा से जलता रहा, तब बिहार में अमन-चैन कैसे बना रहा
एक तीसरे गवाह, अज़ीम इब्राहिम, निदेशक (विस्थापन और प्रवास) सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी ने कहा कि रोहिंग्याओं को 2013 और 2018 के बीच उनके जन्म स्थान से निष्कासित कर दिया गया था और इसकी ‘गूंज’ आज के भारत में है.
इब्राहिम ने कहा कि मुस्लिम परिवार जो पिछले 40-70 वर्षों से भारत में रह रहे हैं, वे खुद को राज्य विहीन होने की स्थित में देख रहे हैं.
यूएससीआईआरएफ के निदेशक टोनी परकिंस ने कहा, ‘नागरिकता देने से मना करना बड़ी सामूहिक अत्याचार के लिए एक बड़ा संकेत हो सकता है.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)