लखनऊ: भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद चुनावी राजनीति में उतरने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं लेकिन 15 मार्च को इसकी औपचारिक घोषणा करेंगे. इसदिन बहुजन समाज पार्टी के फाउंडर और दलित आइकन कांशी राम की जयंति भी है. चंद्रशेखर की आंखे दलित, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक पर ही रहने वाली है.
दिप्रिंट से बातचीत में चंद्रशेखर ने कहा कि पार्टी के नाम की घोषणा 15 तारीख को ही करेंगे और घोषणा के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव व यूपी पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी जो इसी साल के अंत में होने वाली है.
यही नहीं पार्टी उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले राज्य चुनाव की 403 सीटों पर भी चुनाव लड़ सकती है.
आजाद के अनुसार, वह चाहते हैं कि वह ‘बहुजन’ की मजबूत आवाज बनें. वह आगे कहते हैं कि भीम आर्मी लगातार उनके अधिकारों के लिए सड़कों से आवाज उठाती रही है अब समय आ गया है कि उनकी बात सदन से उठाई जाए.
आजाद ने कहा, ‘सत्ता की कुर्सी पर बैठे जो लोग हमारा हक मार रहे हैं उन्हें हटाकर अपने लोगों को बैठाना है.’
दलित-मुस्लिम एकता के पक्षधर चंद्रशेखर की नजर अब ओबीसी समीकरण पर भी है. इसी सिलसिले में उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से भी मुलाकात की.
वहीं खबर यह भी है कि बीएसपी के कई नेताओं ने भी लखनऊ में भीम आर्मी ज्वाइन की है. ऐसे में अपनी पार्टी के जरिए चंद्रशेखर दलित, मुस्लिम व पिछड़े वर्ग को एक विकल्प देने का प्रयास करेंगे.
राजभर से मुलाकात पिछड़े समीकरणों पर नजर
बीते सोमवार यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर से चंद्रशेखर की मुलाकात ने यूपी में नई सियासी सुगबुगाहट की चर्चा बढ़ा दी है.
राजभर की अगुआई में ‘भागीदारी संकल्प मोर्चा’ तैयार किया जा रहा है जिसमें भीम आर्मी शामिल भी होगी. 2022 के चुनाव से पहले सभी पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यकों को इस गठबंधन के सहारे एक करने की कोशिश है. इस मोर्चा में मायावती सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा भी शामिल हैं.
राजभर और कुशवाहा पिछड़े वर्ग से आते हैं तो वहीं चंद्रशेख दलित और मुस्लिम एकता की वकालत करते रहे हैं. ऐसे में इस मोर्च की नजर दलित, मुस्लिम व ओबीसी को जोड़ने की है.
ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के यूपी में चार विधायक हैं. 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था लेकिन बाद में अलग हो गए थे. पूर्वांचल के कुछ जिलों में उनकी अच्छी पकड़ है.
बाबू सिंह कुशवाहा बुंदेलखंड से हैं जो ओबीसी बहुल इलाका माना जाता है. वहीं चंद्रशेखर की पश्चिम यूपी में अच्छी पकड़ मानी जाती है. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बिजनौर समेत तमाम जिलो में दलित और मुस्लिम वोटर्स की संख्या काफी अधिक है. ऐसे में पूर्व, पश्चिम व बुंदेलखंड के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ये मोर्चा तैयार हो रहा है.
बसपा छोड़ कई नेता भीम आर्मी से जुड़ रहे
मीडिया से बातचीत में चंद्रशेखर अक्सर बसपा सुप्रीमो मायावती का पूरा सम्मान करने की बात कहते रहे हैं लेकिन अब चुनावी राजनीति में उतरकर वह खुद बसपा का विकल्प के तौर पर भी तैयार कर रहे हैं. उनके साथ बसपा के कई नेता व कार्यकर्ता जुड़े रहे हैं.
हाल ही में बसपा से पूर्व एमएलसी सुनील चित्तौड़ ने भीम आर्मी ज्वाइन की. वहीं बीएसपी के ही वरिष्ठ नेता रामलखन चौरसिया, इजहारुल हक और अशोक चौधरी ने भी भीम आर्मी ज्वाइन की.
बसपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो चंद्रशेखर की पार्टी के औपचारिक ऐलान के बाद कई अन्य बसपा नेता भी जुड़ सकते हैं.
मायावती के छोड़े खाली स्थान को भरने की कोशिश
लखनऊ यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर कविराज की मानें तो यूपी के दलित समाज के बीच आज भी मायावती को लेकर बड़ा सम्मान है. चंद्रशेखर को एक्टिविस्ट के तौर पर तो युवा पसंद कर रहे हैं लेकिन मायावती के विकल्प के तौर पर कितनी स्वीकारता मिलेगी ये कहना अभी जल्दबाजी होगी.
चंद्रशेखर उस स्पेस को भरने का पूरा प्रयास कर रहे हैं जो मायावती ने छोड़ा है. वह सड़क पर दलितों के लिए आवाज उठाते दिखते हैं, जेल भी जाने को तैयार रहते हैं लेकिन चुनावी राजनीति समीकरणों पर ज्यादा निर्भर रहती है. अगले कुछ महीने बाद ही ये तस्वीर साफ होगी कि क्या वह चुनावी विकल्प के तौर पर भी दलित वर्ग में स्वीकार किए जाएंगे.
कितने असरदार हैं ये समीकरण
चंद्रशेखर दलित, मुस्लिम व ओबीसी के जिन समीकरणों को लेकर चुनावी राजनीति करना चाहते हैं उसमें उनकी सबसे बड़ी चुनौती सपा व बसपा हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही पक्ष में न रहे हों लेकिन समाजवादी पार्टी की पिछड़े व मुस्लिम समुदाय में पकड़ मजबूत मानी जाती रही है.
अखिलेश की अपनी साफ छवि के भरोसे पार्टी को भरोसा कि यूपी का विधानसभा चुनाव ‘अखिलेश बनाम योगी’ के तौर पर लड़ा जाएगा. वहीं इस बीच बसपा से भी कई नेता सपा आए हैं तो कुछ ने भीम आर्मी जाॅइन की है. ऐसे में कुल मिलाकर चंद्रशेखर की नई पार्टी बसपा का नुकसान ज्यादा कर सकती है. हालांकि मायावती फिलहाल चंद्रशेखर के इस नए कदम पर चुप हैं लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों में चंद्रशेखर के इस नए कदम की काफी चर्चा है.