नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की बेंच ने 2010 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार को सेना में महिला अधिकारियों को तीन महीने के भीतर स्थायी कमीशन प्रदान करने को कहा है जिन्होंने इसके लिए आवेदन किया है.
SC says that the contentions of centre, regarding the issue of physiological limitations & social norms to deny an opportunity to women officers is disturbing & can't be accepted.
Also says – Centre, by not giving permanent commission to women officers, had prejudiced the case. https://t.co/XvaHS4MNKy
— ANI (@ANI) February 17, 2020
वहीं वकील और भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने अपनी सरकार की पीठ थपथपाने के साथ न्यायालय के इस फैसले की तारीफ की है. उन्होंने कहा यह न्यायालय द्वारा एक शानदार निर्णय है. सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति लागू की गई. अब, अदालत ने इसे लागू किया है और उन अधिकारियों को अलग-थलग कर दिया है जो इसे लागू नहीं कर रहे थे.
We dispose off the petitions and necessary compliance of this court's order within a period of 3 months, says Justice Chandrachud. https://t.co/dQYt7hwhhe
— ANI (@ANI) February 17, 2020
एससी ने केंद्र को उन सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया, जो इसका विकल्प चुनती हैं और यह भी कि अधिकारी सेना में कमांड पोस्टिंग के लिए पात्र होंगे. सत्तारूढ़ सरकार का पूर्वव्यापी प्रभाव रहेगा. अदालत ने केंद्र को अपने आदेश को लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया है.
एससी ने बताया कि 2019 में आठ धाराओं में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की अनुमति वाली अधिसूचना जारी होने से पहले केंद्र ने नौ साल तक इंतजार किया.
हालांकि, अदालत ने कहा कि एसएससी महिला अधिकारियों को इस आधार पर स्थाई कमीशन देने से इंकार की नीति कि उन्होंने 14 साल की सेवा को पार कर ली है, यह न्याय का द्रोह होगा. यह उन सभी के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए जो वर्तमान में सेवा में हैं भले ही वे 14 साल की सेवा को पार कर चुके हों.
अदालत ने यह भी कहा कि महिलाओं को कमांड पोस्टिंग पर नियुक्ति दिए जाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन का हवाला देते हुए सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन नहीं देने की बात कही गई थी.
अदालत ने कहा कि यह दलील परेशान करने वाली और समानता के सिद्धांत के विपरीत है.
पीठ ने कहा कि अतीत में महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया है और सशस्त्र सेनाओं में लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए सरकार की मानसिकता में बदलाव जरूरी है.
अदालत ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के 2010 के, दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक न होने के बावजूद केंद्र सरकार ने पिछले एक दशक में सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने में आनाकानी की.
गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने का आदेश 2010 में दिया था.
एससी ने बताया कि 2019 में आठ धाराओं में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की अनुमति वाली अधिसूचना जारी होने से पहले केंद्र ने नौ साल तक इंतजार किया.