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Friday, 22 November, 2024
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भाजपा में विलय के बाद बीजेपी ऑफिस में झाड़ू लगाने के लिए तैयार हूं: बाबूलाल मरांडी

हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई है. इस दौरान रघुवर दास और अर्जुन मुंडा की आपसी कलह साफ दिखाई दी है, बाबूलाल के कद को देखते हुए उन्हें बड़ी जिम्मेवारी मिलनी तय है.

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नई दिल्ली: कहीं मिलन समारोह तो कहीं महामिलन समारोह लिखा बैनर पूरे रांची शहर में लग चुका है. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की तरफ से कम, झारखंड विकास मोर्चा (खबर लिखे जाने तक) के नेताओं के तरफ से अधिक. शहर के धुर्वा मैदान में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने भव्य समारोह में बाबूलाल मरांडी बीजेपी के हो चुके हैं. अमित शाह खास इस समारोह के लिए दो घंटे के लिए यहां पहुंचे हैं.

साल 2006 में जब बाबूलाल ने बीजेपी छोड़ी तब से अब तक वह लगातार उसपर हमलावर रहे. गाहे-बगाहे चर्चा होती रही कि बाबूलाल आखिर किस मिट्टी के बने हुए हैं जो अकेले बीजेपी से लड़ रहे हैं.

क्या वह मिट्टी आज भरभरा गई? दि प्रिंट से बातचीत में वो कहते हैं- ‘लोकतंत्र में कोई किसी से लड़ता नहीं है, जनता मालिक होती है. 14 साल तक लड़ा. इस दौरान कई लोगों ने कहा कि बहुत लड़ लिए अब वापस चले जाइए.’

खुद मरांडी बीजेपी में जा चुके हैं. उनकी पार्टी (पूर्व) के दो विधायक प्रदीप यादव और बंधू तिर्की कांग्रेस में जाने को तैयार हैं. इन सब के बीच जेवीएम और उसके कार्यकर्ता रह गए. क्या जेवीएम के साथ उनके तीनों विधायकों ने धोखा नहीं किया? इसके जवाब में बाबूलाल कहते हैं- ‘नहीं कोई किसी के साथ धोखा नहीं किया है. मैंने पार्टी के कार्यकर्ताओं से पूछ कर ऐसा किया है. विलय पर जिनकी सहमति नहीं थी, वह कहीं और जा रहे हैं, उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है. हमने उन दो विधायकों को आज़ाद कर दिया जहां जाना है जाइए.’

बता दें कि विधायक प्रदीप यादव और बंधू तिर्की को पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होने के आरोप में कुछ दिन पहले ही पार्टी से निष्काषित किया गया है. ऐसा दल-बदल कानून के प्रावधानों को देखते हुए किया गया, ताकि किसी के विधायकी पर कानून की तलवार न लटके.

विलय पर मात्र एकबार अमित शाह से हुई है बात

झारखंड के राजनीतिक हलकों में चर्चा होती रही कि हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में जेवीएम को बीजेपी ने आर्थिक मदद की है. एकमात्र विधायक वाली पार्टी दो-दो हेलिकॉप्टर से चुनाव प्रचार कर रहे थे. क्या उसी का परिणाम है यह विलय. बाबूलाल सधा हुआ जवाब देते हैं- ‘अब तक मैंने कांग्रेस, जेएमएम, टीएमसी सबके साथ गठबंधन करके यहां चुनाव लड़ा है. तब किसी ने यह आरोप नहीं लगाया. इस बार अकेले लड़ा तो इस तरह के आरोप लग रहे हैं, जिसमें कोई दम नहीं है. मैं इसके बारे में सोचता भी नहीं हूं. राजनीति में हर कोई खुद आगे बढ़ना चाहता है और दूसरों को पीछे धकेलना चाहता है. उसके लिए यह तरकीब निकालते हैं.’

14 वर्षों के बाद भाजपा में वापसी का कारण#Jharkhand_with_Babulal

Babulal Marandi यांनी वर पोस्ट केले रविवार, १६ फेब्रुवारी, २०२०

आखिर विलय का मंच कब और कैसे तैयार हो गया? राज्य के पहले मुख्यमंत्री कहते हैं- ‘अमित शाह से पिछले आठ तारीख को पहली बार बात हुई है. उससे पहले फोन पर एकाध बार बात हुई है.’

विधानसभा चुनाव के दौरान बाबूलाल के करीबियों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया था कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले वह असम गए थे. अचानक अमित शाह का फोन आया और तत्काल स्पेशल विमान से वह दिल्ली पहुंचे. उस वक्त भी विलय पर ही बातचीत हुई थी. लेकिन बात बनी नहीं.

मेरा राजनीतिक पुनर्जन्म नहीं, तप का समय पूरा हो गया है

साल 2003 में जब बाबूलाल मरांडी से मुख्यमंत्री पद से बीजेपी ने इस्तीफा ले लिया था. उस वक्त वैंकेया नायडू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. विरोधियों की ओर से फैलाए गए तर्कों को मंच दिल्ली में ही दिया गया था. जिसके बाद अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया था. इधर एक कार्यक्रम के सिलसिले में उप-राष्ट्रपति वैंकेया नायडू रांची में हैं. बाबूलाल कहते हैं,  ‘दिल्ली नहीं, स्थानीय स्तर पर जो उनके खिलाफ साजिश हुई, उसके वह शिकार हुए थे.’

क्या बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक रूप से पुनर्जन्म हुआ है? वह कहते हैं- ‘देखिये मैंने पार्टी छोड़ी जरूर थी, कहीं गया नहीं था. पूरे 14 साल तक छह से सात लाख किलोमीटर का सफर राज्य में किया. लोगों के दर्द को समझा. ये 14 साल राजनीतिक जीवन का तप था. अगर मैं बीजेपी में रहता तो एक ही प्रकार के कार्यक्रमों में रहते. बाहर हुए तो कई तरह की चीजों को समझा, जाना.’

लालकृष्ण आडवाणी, यशवंत सिन्हा, गोविंदाचार्य बीजेपी में साइडलाइन कर दिए गए हैं. बाबूलाल ने इनके साथ ही राजनीति की. गोविंदाचार्य को वह अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं. ऐसे में क्या वह बीजेपी में उसके तौर तरीकों से सर्वाइव कर पाएंगे. एक बार फिर मरांडी कहते हैं- ‘नरेंद्र मोदी ने यह अच्छा नियम बनाया कि उनकी पार्टी में 75 के बाद सक्रिय राजनीति से हटना होगा. इस नियम का स्वागत होना चाहिए.’  नेशनल इलेक्शन वॉच  के मुताबिक खुद बाबूलाल की उम्र 62 है. कह सकते हैं कि बीजेपी में उनकी राजनीतिक उम्र 13 साल बची है.

जेवीएम के नेताओं को बीजेपी जगह मिलेगी कि नहीं, मेरे दिल में जरूर है

हिन्दुस्तान अखबार में छपी खबर की मानें तो उन्हें विधायक दल के नेता का पद दिया जा सकता है. साथ ही पार्टी अध्य़क्ष पद की जिम्मेवारी मिलने की चर्चा भी है. हालांकि इसपर स्थिति तो बाद में ही स्पष्ट होगी. एक सधे हुए राजनेता की तरह वह कहते हैं- ‘मैं पद लालसा में नहीं गया हूं. पार्टी अगर कहेगी तो वह ऑफिस में झाड़ू लगाने का काम भी करने को तैयार हैं.’

बाबूलाल के कद को देखते हुए बीजेपी में उन्हें बड़ी जिम्मेवारी मिलनी तय है. ऐसे में जेवीएम के बड़े पदाधारियों, जिलाध्यक्षों का क्या होगा. क्या विलय में इसको लेकर भी कोई खाका तैयार हुआ है. बचते हुए मरांडी कहते हैं- ‘किसी भी जिला में कोई एक ही अध्यक्ष होगा न. जेवीएम में भी तो कोई एक ही अध्यक्ष था न. दल से ज्यादा दिल में उन्हें जगह देने की जरूरत है. मेरे दिल में उनके लिए जगह है.’

रांची के डिबडीह स्थित जेवीएम के मुख्य कार्यालय में रविवार की शाम कई कार्यकर्ता बैठे थे. बाबूलाल के भतीजे अर्जुन मरांडी कहते हैं, ‘उन्हें नहीं पता क्या होगा. यह ऑफिस रहेगा कि नहीं, हमलोग किस रूप में काम करेंगे. इतना तय है कि रहेंगे तो बाबूलाल के साथ ही.’ ऑफिस में काम करनेवाले एक कार्यकर्ता ने कहा कि देखते हैं क्या होता है. नौकरी बची तो ठीक, नहीं तो कहीं और देखेंगे.

इधर प्रदीप यादव के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर पार्टी के अंदर विरोध अभी से शुरू हो चुका है. विधायक इरफान अंसारी ने साफ कहा है कि अगर प्रदीप शामिल होते हैं तो वह इस्तीफा दे देंगे. मौके पर चौका मारते हुए बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा है कि अगर प्रदीप यादव कांग्रेस में जाते हैं तो वह वर्तमान सरकार गिरा देंगे. क्योंकि उनके संपर्क में दस कांग्रेस विधायक हैं जो प्रदीप यादव के जाने पर पार्टी छोड़ने को तैयार हैं.

हालांकि उनकी बात को कांग्रेस विधायक और राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि कोई भी कांग्रेसी विधायक उनके संपर्क में नहीं हैं. निशिकांत अपनी नेतागिरी बचाने के लिए ऐसा बयान दे रहे हैं.

वहीं दूसरी तरफ बाबूलाल मरांडी की पार्टी के भाजपा में विलय पर झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मीडिया से बातचीत में कहा,’ जो अंदेशा था वही हुआ. भाजपा के बिना अपने आपको अधूरा समझने वाले मरांडी का सपना अब पूरा हो गया है और साथ ही उनका ढ़ोंग भी उजागर हो गया है जो वह आदिवासी, अल्पसंख्यक समाज के साथ होने और विपक्ष को साथ लेकर भाजपा विरोधी होने का ढोंग रचते थे. वह एक पॉलिटिकल सेलर हैं.’

हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई है. इस दौरान रघुवर दास और अर्जुन मुंडा की आपसी कलह साफ दिखाई दे गई. सरयू राय पार्टी छोड़ चुके हैं. चुनाव बाद तक राज्य बीजेपी अध्यक्ष रहे लक्ष्मण गिलुआ लगातार दो चुनाव हार चुके हैं. ऐसे में इस पार्टी को एक बड़े नेता की तलाश थी. आगामी चुनावों को देखते हुए बाबूलाल मरांडी फिलहाल बीजेपी के सभी उम्मीदों पर खड़े उतर रहे हैं. यही वजह है कि उनके आने पर पार्टी में एक छोटा सा विरोध का स्वर अब तक देखने को नहीं मिला है. कह सकते हैं कि दोनों को एक-दूसरे की सख्त जरूरत है.

(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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