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Thursday, 19 December, 2024
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अवैध खनन, जंगल पर अतिक्रमण सहित कर्नाटक के नए वन मंत्री पर दर्ज हैं 15 आपराधिक मामले

सीएम बी.एस. येदियुरप्पा ने वन विभाग को चार बार के विधायक आनंद सिंह, जो कई अवैध खनन और वन मामलों के आरोपी हैं, को वन विभाग का काम सौंपा.

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बंगलुरू: कर्नाटक के नए फॉरेस्ट मंत्री आनंद सिंह पर फॉरेस्ट कानून के तहत क्रिमिनल कांस्पेरेसी, क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट, धोखाधड़ी और जमीन हथियाने जैसे मामले दर्ज हैं.

विजयनगर से विधायक सिंह ने राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर इस पोर्टफोलियो के लिए दबाव बनाया और खाद्य मंत्रालय के मिलने के 24 घंटे के भीतर ही उन्हें फॉरेस्ट मंत्री बना दिया गया.

हालांकि मुख्यमंत्री के फैसले ने सिंह के अतीत को फिर से सबसे सामने लाने का काम कर दिया है. जिनके ऊपर 15 आपराधिक मामले अभी लंबित है. भाजपा के रेड्डी बंधुओं और बेल्लारी में खनन मामलों से जुड़े सिंह का करोड़ों रुपए के खनन घोटालों से संबंध है.

आलोचकों ने एक मंत्री को नियुक्त करने पर सवाल उठाए हैं, जिनपर उन अधिकारियों द्वारा मुकदमा चलाया जाएगा जो उन्हें रिपोर्ट करेंगे.

कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने पूछा, ‘इससे आप क्या संदेश देन चाहते हैं.’

रिटायर्ड जज ने बेल्लारी खनन घोटाले का पर्दाफाश किया था जिसमें 7.74 मिलियन टन आइरन ओर को 2006-07 से लेकर 2010-11 के बीच निर्यात किया गया था. जिससे 35 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ था.

हेगड़े एसआईटी की टीम का नेतृत्व कर रहे थे जिसने सिंह पर मामला दर्ज किया था.

हेगड़े ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे किसी बात से दिक्कत नहीं है. लेकिन क्या वे उन्हें कोई और जिम्मेदारी नहीं दे सकते थे? मैं उनके मंत्री बनने पर कुछ नहीं कह रहा हूं. लेकिन मैं उनके इस मंत्रालय मिलने पर सवाल कर रहा हूं.’

हेगड़े ने पूछा, ‘उन्होंने खुद अपने चुनावी हलफनामे में घोषित किया है कि उनपर फॉरेस्ट कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज हैं. मेरा सवाल ये है कि ये मामले फॉरेस्ट अधिकारियों द्वारा देखे जाएंगे लेकिन ये कितना उचित होगा कि उनके मंत्री रहते वे जांच कर पाएंगे.’

आनंद सिंह ने दिप्रिंट को कहा कि ‘ऐसे मामलों पर मैं कुछ नहीं कहूंगा.’

हालांकि उन्होंने मीडिया से पहले कहा था कि उन्होंने पोर्टफोलियो को लेकर कुछ नहीं बोला था और अपने ऊपर लगे आरोपों की ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन से तुलना की थी.

मामला

दिसंबर 2019 में हुए उपचुनाव में दायर हलफनामे में आनंद सिंह ने बताया था कि उनपर लगे 15 आपराधिक मामले फिलहाल लंबित है. जिसमें से ज्यादातर अवैध खनन से जुड़े हैं.

ये मामले भारतीय दंड संहिता के विभिन्न धाराओं के तहत आते हैं, माइनर्स-मिनर्लस एक्ट और कर्नाटक के फॉरेस्ट एक्ट के तहत आते हैं. इन मामलों में उनपर क्रिमिनल कांस्पेरेसी, क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट, धोखाधड़ी, बेईमानी, अवैध तौर पर जंगल के सामान का निर्यात आदि शामिल है.

एक मामले में होसापेटे के रेंज फॉरेस्ट अधिकारी ने सिंह पर आरोप लगाया था कि सिंह ‘पेड़ों या लकड़ी पर जालसाजी या निशान हटाने और जंगल के भीतर सीमा के निशान बदलने’ के लिए जिम्मेदार थे.

नाम न बताने की शर्त पर एक वन अधिकारी ने बताया, ‘इसका मतलब है कि सिंह ने वन भूमि पर अतिक्रमण करने की कोशिश की थी जो अवैध था.’

सिंह को अक्टूबर 2013 में सीबीआई ने बेलेकेरी अवैध खनन मामले में गिरफ्तार किया था लेकिन वो बाद में बेल पर रिहा हो गए थे. सितंबर 2019 में बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिंह पर लगे बेलेकेरी के कई मामलों में से एक मामले को हटा लिया गया. उनके साथ एक और अभियुक्त बी नागेंद्र का नाम भी हटा लिया गया था.

बेल्लारी क्षेत्र में अवैध खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले तपल गणेश ने दिप्रिंट को बताया कि सिंह जैसे व्यक्ति का मंत्री बनना न्याय पर आघात है.

गणेश ने दिप्रिंट को बताया, ‘सिंह दावा करते हैं कि लोगों ने उन्हें चुना है. वे सोचते हैं कि चुनने के बाद वो कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक की कानून को भी मोड़ सकते हैं. आनंद सिंह जैसा इंसान आगे राजनीतिक माहौल को भ्रष्ट ही करेगा.’

कौन है आनंद सिंह

विजयनगर के हैट-ट्रिक हीरो कहलाने वाले विधायक आनंद सिंह उन 17 बागी विधायकों में शामिल हैं जिसने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था. जब उन्होंने समर्थन वापस लिया था तब सिंह ने दावा किया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी ने विजयनगर को एक अलग जिले की मांग को नहीं माना था.

दिसंबर में हुए उपचुनाव में वे फिर से विजयनगर से चुनाव लड़े और 30 हज़ार वोटों से जीते.

रेड्डी बंधुओं की तरह ही सिंह खनन माफिया है जो हलफनामे में अपना व्यवसाय किसानी और खुद को बिजनेसमैन बताते हैं. उनकी संपत्ति 100 करोड़ रुपए है. सिंह रेड्डी बंधुओं के साथ हीं 2008 में राजनीति में आए थे.

2008-13 तक रही येदियुरप्पा सरकार में सिंह पर्यटन मंत्री थे. हालांकि वे भाजपा छोड़ 2018 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. पार्टी के भीतर चल रहे मनमुटाव को कारण बताया गया था.

सूत्रों ने कहा था, मई 2018 में, जब येदियुरप्पा ने सरकार बनाने के लिए विपक्षी विधायकों को लालच देना शुरू किया, सिंह उन कुछ विधायकों में से एक थे, जो भाजपा का समर्थन करने के लिए सहमत हुए थे.

हालांकि, 19 मई को जब येदियुरप्पा को अपने महत्वपूर्ण विश्वास मत का सामना करना था, तो सिंह गायब हो गए. दिप्रिंट ने बताया था कि सिंह ने दावा किया था कि उन्हें भाजपा द्वारा ‘आपराधिक मामलों की धमकी’ दी गई थी और येदियुरप्पा के पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर किया जा रहा था. बाद में उन्हें कर्नाटक विधानसभा में देखा गया, जिसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डी.के. शिवकुमार लेकर आए थे.

उस समय, येदियुरप्पा जिन्हें पता था कि वे संख्या की कमी के कारण विश्वास मत खो देंगे, उन्होंने बिना वोट दिए इस्तीफा दे दिया, कांग्रेस और जेडी (एस) के लिए गठबंधन सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया.

बाद में वे बागी विधायकों में शामिल हो गए और मुंबई चले गए. वो वहां तब तक रहे जब तक कि जुलाई 2019 में कुमारास्वामी की सरकार नहीं गिर गई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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