कॉक्स बाजार: दक्षिण बांग्लादेश के निकट रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर जा रही एक नाव मंगलवार सुबह डूब गई. इस हादसे में कम से कम 14 लोगों की डूबने से मौत हो गई और 70 लोगों को बचा लिया गया.
तटरक्षक कमांडर नईम उल हक ने बताया, ‘अब तक 14 शव मिले हैं, 70 लोगों को बचाया गया.’
उन्होंने बताया कि सेंट मार्टिन द्वीप के निकट तटरक्षक की नावें अब भी तलाश कर रही हैं.
म्यामां में 2017 में सैन्य कार्रवाई से घबराकर भागे 7,00,000 से अधिक रोहिंग्या लोग बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों को छोड़कर समुद्री मार्ग से मलेशिया जाने का प्रयास कर रहे हैं.
रोहिंग्या मामलों में साक्ष्य जुटा रही है अंतरराष्ट्रीय अदालत
अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीसी) के एक अधिकारी ने बताया कि आईसीसी रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यामां द्वारा किए गए कथित अत्याचारों को लेकर साक्ष्य जुटा रहा है.
आईसीसी के अभियोजन कार्यालय के ‘अधिकार क्षेत्र, अनुपूरक और सहयोग विभाग’ के निदेशक पाकिसो मोकोकोको ने कहा कि जांचकर्ताओं की एक टीम साक्ष्य जमा करने के लिए रोहिंग्या शरणार्थी शिविर जा रही है. उन्होंने कहा कि म्यामां सहयोग करे या ना करे न्याय जरूर होगा.
ढाका में मोकोकोको ने संवाददाताओं से कहा कि भले ही म्यामां आईसीसी की स्थापना वाली रोम संधि का हिस्सा नहीं है, इसके बावजूद द हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत इस मुकदमे को चलाएगी. उसने म्यामां से इसमें सहयोग करने को कहा है.
वहीं म्यामां ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ किसी भी अत्याचार या नरसंहार के आरोपों से साफ इंकार किया है.
उन्होंने कहा कि अदालत के पास मुकदमा चलाने का अधिकार है क्योंकि रोहिंग्या मुसलमान भागकर बांग्लादेश में आए हैं और बांग्लादेश रोम संधि का सदस्य है.
म्यांमार पैनल ने माना रोहिंग्या लोगों के खिलाफ सेना ने युद्ध अपराध किए लेकिन ये जनसंहार की श्रेणी में नहीं
रोहिंग्या लोगों पर अत्याचारों की जांच के लिए गठित म्यांमार का पैनल सोमवार को इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि कुछ सैनिकों ने संभवत: रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ युद्ध अपराधों को अंजाम दिया लेकिन सेना जनसंहार की दोषी नहीं है.
पैनल की इस जांच की अधिकार समूहों ने निंदा की है.
‘इंडिपेंडेंट कमीशन ऑफ इन्क्वायरी (आईसीओई)’ ने यह स्वीकार किया कि कुछ सुरक्षाकर्मियों ने बेहिसाब ताकत का इस्तेमाल किया, युद्ध अपराधों को अंजाम दिया और मानवाधिकार के गंभीर उल्लंघन किए जिसमें निर्दोष ग्रामीणों की हत्या करना और उनके घरों को तबाह करना शामिल है. हालांकि उसने कहा कि ये अपराध जनसंहार की श्रेणी में नहीं आते हैं.
पैनल ने कहा, ‘इस निष्कर्ष पर पहुंचने या यह कहने के लिए सबूत पर्याप्त नहीं हैं कि जो अपराध किए गए वे राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को या उसके हिस्से को तबाह करने के इरादे से किए गए.’
यह पहली बार है जब म्यांमार की ओर से की गई किसी जांच में अत्याचार करना स्वीकार किया गया.
वहीं बर्मीज रोहिंग्या ऑर्गेनाइजेशन यूके ने पैनल के निष्कर्षों को खारिज कर दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया.
इसके प्रवक्ता तुन खिन ने कहा कि यह रोहिंग्या लोगों के खिलाफ म्यांमार की सेना तात्मादॉ द्वारा बर्बर हिंसा से ध्यान भटकाने और आंखों में धूल झोंकने का प्रयास है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के फिल रॉबर्टसन ने कहा कि रिपोर्ट में सेना को जिम्मेदारी से बचाने के लिए कुछ सैनिकों को बलि का बकरा बनाया गया है. जांच करने वाले पैनल में दो सदस्य स्थानीय और दो विदेशी हैं.