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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकश्मीर में पाबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इंटरनेट मौलिक अधिकार, जरूरी सेवाओं के लिए इसे बहाल किया जाए

कश्मीर में पाबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इंटरनेट मौलिक अधिकार, जरूरी सेवाओं के लिए इसे बहाल किया जाए

जम्मू-कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों पर फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है. हम सुरक्षा के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से इंटरनेट के निलंबन के सभी आदेशों की समीक्षा करने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में स्थिति और इंटरनेट और फोन पर लगाए गए प्रतिबंध की सुनवाई करते हुए जम्मू कश्मीर सरकार एक सप्ताह के भीतर सभी प्रतिबंधात्मक आदेशों की समीक्षा करें. सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में फ्रीडम ऑफ स्पीच सबसे अधिक जरूरी है. इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराया जाना अनुच्छेद 19 (1)(a)के तहत मौलिक अधिकार है.

उच्च्तम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों पर फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है. हम सुरक्षा के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे.

न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अनिश्चित काल के लिए इंटरनेट को निलंबित करने का आदेश स्वीकार्य नहीं है. अदालत ने कहा, ‘निलंबन आदेश की समय-समय पर समीक्षा करने के लिए एक समिति होगी.’

अदालत ने कहा कि जब भी सरकार इंटरनेट को निलंबित करने का निर्णय लेती है, तो उसे अदालत को उसका विस्तृत कारण बताना होगा. न्यायाधीशों ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इंटरनेट का पूर्ण रूप से बंद किया जाना एक कठोर उपाय है और सरकार इसका सहारा तभी ले सकती है जब किसी स्थिति से निपटने का कोई दूसरा विकल्प न हो.

धारा 144 पर भी अदालत ने फैसला सुनाया कि सेक्शन का इस्तेमाल किसी के ‘मत’ को दबाने के उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता है.

न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जारी किए गए सभी प्रासंगिक आदेशों को प्रस्तुत किया गया उससे देखने से इनकार कर दिया.

अधिवक्ता सदन फरसाट ने बताया कि सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा अनिश्चितकालीन इंटरनेट प्रतिबंध हमारे संविधान के तहत स्वीकार्य नहीं है और यह शक्ति का दुरुपयोग है.

याचिकाकर्ताओं के तर्क 

जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के सरकार के निर्णय के बाद इस पूर्व राज्य में लगाये गये प्रतिबंधों के खिलाफ कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया.

न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी.

केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाये गये प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था. केन्द्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी.

गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुये याचिकाएं दायर की थीं.

केन्द्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुये कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिये एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह ‘मूर्खता’ होती.

केन्द्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिये थे.

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