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Friday, 22 November, 2024
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माओवादी नेता हिडमा ने ली रमन्ना की जगह, सुरक्षा बलों के लिए बढ़ा चैलेंज

छत्तीसगढ़ पुलिस के खुफिया विभाग और नक्सल विरोधी ऑपरेशन में शामिल वरिष्ठ अफसरों की मानें तो रमन्ना की मौत के बाद कमान उससे भी ज्यादा क्रूर और दुर्दांत नक्सली हिडमा को दे दी गई है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ पुलिस के खुफिया विभाग और नक्सल विरोधी ऑपरेशन में शामिल वरिष्ठ अफसरों की मानें तो मोस्ट वांटेड माओवादी नेता रमन्ना जिसके सिर पर 1.4 करोड़ रुपए का इनाम था की मौत के बाद सुरक्षा बलों को अब उससे भी ज्यादा क्रूर और दुर्दांत नक्सली हिडमा से निपटना पड़ेगा. नक्सलियों द्वारा हमलों की योजना बनाने व उसे अंजाम देने की कमान हिडमा को दे दी गयी है. लिहाजा हिडमा का रमन्ना की जगह लेना राज्य पुलिस और नक्सल विरोधी अभियान में लगे अन्य सुरक्षाबलों के लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती है.

नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अनुसार, सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति में हिडमा और अन्य कैडर के नेताओं गणेश उइके और सुजाता को माओवादियों की राजनीतिक विंग, राज्य स्तर की जोनल कमेटी, जो अभी कुछ समय से चल रही है, स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेसी) का प्रमुख बनाने पर मंथन किया गया है. लेकिन इसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. हालांकि, हिडमा को छत्तीसगढ़ के पूरे माओवादी बेल्ट में सुरक्षा बलों के खिलाफ हमलों की योजना बनाने और उसे अंजाम देने के लिए मोआवादियों की सैन्य कार्रवाई का जिम्मा सौंपा गया है, क्योंकि दिसंबर 2019 के दूसरे सप्ताह में रमन्ना की मौत हो गई थी.

जब दिप्रिंट ने पुलिस अधीक्षक सुकमा सलाभ सिन्हा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, ‘अभी तक इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है न ही हमने कोई रिकवरी की है जो यह सुनिश्चित कर सकती है कि हिडमा को कोई नया काम सौंपा गया है, लेकिन सुरक्षा बल किसी भी स्थिति के लिए तैयार हैं.’

रमन्ना ने डीकेएसजेसी का नेतृत्व किया, जो छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के आसपास के क्षेत्रों जैसे गढ़चिरौली के लिए थिंक टैंक के रूप में काम किया, जहां माओवादियों की उपस्थिति रही है.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार 38 वर्षीय हिडमा को छत्तीसगढ़ के माओवादी आंदोलन और नक्सली हिंसा को मजबूती देने के लिए स्टेट जोनल कमेटी का मुखिया बनाये जाने की कवायद काफी दिनों से चल रही है लेकिन अंतिम निर्णय आना अभी बाकी है. माओवादी विरोधी ऑपरेशन में शामिल पुलिस अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल हिडमा को पूरे प्रदेश में माओवादी हमलों की कमान दे दी गयी है लेकिन स्टेट कमेटी के मुखिया का कार्यभार अभी नहीं सौंपा गया है. बस्तर में पदस्थ एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि हिडमा बहुत ही खतरनाक और हिंसक नक्सली कमांडर है जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर होने साथ साथ हमलों को अंजाम तक पहुंचाने का एक मझा हुआ रणनीतिकार भी माना जाता है.

प्रदेश के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पिछले माह हुई 150 सुरक्षबलों की मौत का जिम्मेदार नक्सली रमन्ना की मृत्यु के बाद राज्य में माओवादी नेतृत्व को एक बड़ा झटका लगा है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का नेतृत्व इस खालीपन को जल्द भर लेना चाहता है जिससे उनकी गतिविधियां किसी प्रकार से कमजोर न हों.

हिडमा बस्तर के सुकमा जिले के पूवर्ती गांव का स्थानीय नक्सली नेता है जो अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता है. अधिकारियों का कहना है की पिछले 8-9 वर्षों में प्रदेश में होने वाली सभी वामपंथी हिंसक गतिविधियों और सुरक्षाबलों के खिलाफ हमलों में हिडमा शामिल था. इन हिंसक घटनाओं में 2013 का झीरम घाटी हमला जिसमें नक्सलियों द्वारा 27 कांग्रेस नेताओं की हत्या की गयी और 2017 का बुर्कापाल हमला जिसमें 25 सीआरपीएफ जवानों की जानें गई भी शामिल हैं.

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बस्तर के जंगल में अपने बोरिया-बिस्तर के साथ नक्सली\ विशेष व्यवस्था से

हालांकि पुलिस अधिकारी हिडमा के नियुक्ति की पुष्टि नहीं कर रहें हैं परंतु कुछ का कहना है कि माओवादी लड़ाकों में नेतृत्व की कमी के साथ साथ सुरक्षाबलों द्वारा बस्तर के कई हिस्सों में कमजोर पड़ रहे कैडर को जल्द मजबूती देने के लिए नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी द्वारा स्टेट जोनल कमेटी के मुखिया का निर्णय या तो ले लिया गया होगा या फिर जल्द ले लिया जाएगा. अधिकारियों का कहना है इसकी पुष्टि होने में समय लग सकता है क्योंकि नक्सलियों द्वारा ऐसे निर्णयों की जानकारी अधिकारिक रूप से नहीं दी जाती बल्कि उनके अपनी पत्रिकाओं में छपे लेखों या फिर समारोह के जरिये मिलती है. ऐसा बहुत कम होता है जब नक्सली इन मामलों में अपनी कोई आधिकारिक विज्ञप्ति जारी करते हों.

नक्सल विरोधी ऑपरेशन में लगे एक अन्य पुलिस अधिकारी का कहना है कि हिडमा को गुरिल्ला युद्ध में महारथ हासिल है लेकिन उसकी गतिविधियां अभी सुकमा जिले तक ही सीमित है. इस अधिकारी के अनुसार स्टेट कमेटी का मुखिया बनने के बाद हो सकता है कि फिलहाल कुछ क्षेत्रों में सुरक्षबलों के हाथों में कमजोर हो रही नक्सली गतिविधियों में तेजी दिखे. अधिकारी का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो सुरक्षाबलों के लिए यह एक बड़ा चैलेंज होगा.

एक प्रमुख के रूप में जो बातें हिडमा के खिलाफ जाती हैं

हालांकि दिप्रिंट से बात करते हुए बस्तर रेंज के आईजी विवेकानंद सिन्हा कहते हैं, ‘जानकारी के अनुसार हिडमा को राज्य में वामपंथी मिलिट्री ऑपरेशन हेड बनाने की कवायद काफी दिनों से चल रही थी लेकिन अंतिम निर्णय का कुछ पता नही. जहां तक स्टेट कमेटी का मुखिया बनाने की बात है तो लगता नहीं है की ऐसा होगा.’ सिन्हा का मनना है कि हिडमा का पूर्ववर्ती रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. वह ग्रामीणों से जबरन वसूली और लूटमार में भी निरंतर शामिल रहा है जिससे संगठन में उसके प्रति विश्वसनीयता की कमी होगी. इसके अलावा सीपीआई (माओवादी) का आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के वर्चस्व वाला नेतृत्व भी हिडमा की नियुक्ति के आड़े आ सकता है.

वहीं दूसरी तरफ माओवादी लड़ाकों में स्थानीय आदिवासी नेताओं की लगातार हो रही कमी के कारण संगठन के लिए हिडमा ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है. वहीं स्थानीय होने के नाते उसकी क्षेत्र में अच्छी पकड़ और भौगोलिक जानकारी होने का फायदा भी बस्तर में नक्सली आंदोलन को मिलेगा.

90 के दशक के अंतिम दौर में माओवादी कैडर में शामिल होने वाले हिडमा ने अपनी हिंसक प्रवृत्ति और बड़े से बड़े हमलों को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने की वजह से बहुत कम समय में संगठन के अंदर एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है. दो वर्ष पूर्व हिडमा को सीपीआई (माओवादी) की मुख्य निर्णायक सेन्ट्रल कमेटी का सबसे युवा सदस्य के रूप में शामिल किया गया. वर्तमान में वह सुकमा जिले में स्थापित नक्सली बटालियन 1 का कमांडर भी है.

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